डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है?

Delhi News: दिल्ली में लैंडफिल डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? साइटों से कैसे हटेंगे कूड़े के पहाड़? एक्सपर्टस ने बताया क्या है समाधान
पार्कों में बनाया जाए कंपोस्ट प्लांट
अलग-अलग तरह के कूड़े को ट्रीट करने के लिए अलग-अलग प्रकार के ट्रीटमेंट प्लांट होने चाहिए। किसी पार्क या ग्रीन एरिया से पत्तियों या घास के रूप में जो कूड़ा निकलता है, उसे बड़े ट्रीटमेंट प्लांट तक भेजने की जरूरत ही नहीं है। ऐसे कूड़े को ट्रीटमेंट के लिए तो पार्क में ही कंपोस्ट प्लांट बनाना चाहिए। दिल्ली में रोजाना जितना कूड़ा जनरेट होता है, उसका 20 प्रतिशत कूड़ा इसी तरह के होता है।
पैकेजिंग और प्लास्टिक पर नियंत्रण
वर्तमान में दिल्ली में रोजाना करीब 11,000 मीट्रिक टन कूड़ा जनरेट होता है। इसमें से 50 प्रतिशत कूड़ा पैकेजिंग मटेरियल का होता है, जिसे ड्राई कूड़ा भी कहते हैं। पैकेजिंग और प्लास्टिक मटीरियल पर पूरी तरह से प्रतिबंध प्रभावी कर दिया जाता है, तो रोजाना जितना कूड़ा दिल्ली में जनरेट होता है, उसका 40 प्रतिशत इसी से कम हो जाएगा।
सभी एजेंसियां अपना – अपना डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? ट्रीटमेंट प्लांट बनाएं
एमसीडी के कमिश्नर रहे के.एस. मेहरा के अनुसार कूड़ा कम करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण करना होगा। लेकिन, यह बेहद ही मुश्किल काम है। ऐसे में कूड़े के पहाड़ को कम करने के लिए जितनी भी डिवेलपमेंट एजेंसियां हैं, सभी अपना – अपना ट्रीटमेंट प्लांट बनाएं। सभी एजेंसियों का कूड़ा किसी एक एजेंसी की लैंडफिल साइट पर न जाए। इससे कहीं भी और कभी भी इतना ऊंचा कूड़े का पहाड़ नहीं बनेगा।
घर से करनी होगी शुरुआत, तब बनेगी बात
लैंडफिल साइट्स जब बनी तो शुरुआत में ही गलतियां हुईं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, राजधानी का लगभग आधा कूड़ा अब भी लैंडफिल साइटों पर ही जा रहा है। इसे रोकना सबसे डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? अधिक जरूरी है। ऐसा किए बिना कूड़े के पहाड़ों को खत्म करना संभव डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? नहीं है। राजधानी की लैंडफिल साइट को डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? खत्म करने को लेकर हमने सीएससी एक्सपर्ट अतिन विश्वास, इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट स्वाति सांबियाल और वेस्ट एंड सस्टेनेबल लिवलीहुड की कंसलटेंट चित्रा मुखर्जी से बात की।
बनाते वक्त नहीं दिया गया ध्यान
लैंडफिल साइट इस समय की सबसे बड़ी चुनौती और समस्या हैं। इसकी वजह यह है कि लैंडफिल साइट्स काफी बड़ी हैं, दूसरा अथॉरिटी के पास ताजा कूड़े की समस्या का कोई ठोस हल नहीं है। पहला नियम यह कहता है कि क्षमता पूरी होते ही लैंडफिल साइट पर कूड़ा डालना बंद कर दिया जाए। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लैंडफिल साइट जब बनी तो उसके पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया। गाजीपुर लैंडफिल साइट का कोई बेस नहीं है, कोई डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? कलेक्शन सिस्टम नहीं है। इसलिए जैसे जैसे यहां कूड़ा बढ़ा समस्या भी बढ़ी।
कूड़ा जहां बन रहा है वहीं उसका निस्तारण हो
कूड़ा जहां से पैदा हो रहा है वहीं उसे मैनेज किया जाए तो इस तरह की समस्या खत्म हो डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? सकती है। घरों, कॉलोनी, मार्केट, ऑफिस में कूड़े को ट्रीट करने के तरीके बताए जाएं। लोगों को रिसाइकल और रीयूज पर फोकस करने के लिए जागरूक किया जाए।
गीला कूड़ा-सूखा कूड़ा घरों पर अलग होना जरूरी
लैंडफिल साइटों पर कूड़ा कम पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि हर घर से कूड़ा कम निकले। इसलिए घर, ऑफिस, मार्केट आदि के स्तर पर ही गीला कूड़ा-सूखा कूड़ा अलग होना जरूरी है। राजधानी में इसमें अभी बड़ी कमियां हैं। इसकी वजह से लैंडफिल साइटों पर दबाव है।
बेहतर कर रहे शहरों से उदाहरण लेना जरूरी
इंदौर, भोपाल आदि शहर इस मामले में काफी अच्छा कर रहे हैं। राजधानी जहां गीले और सूखे कूड़े को अलग नहीं कर पा रही है, इन शहरों ने छह श्रेणी में कूड़े को अलग किया जाता है। इनमें गीला, सूखा, प्लास्टिक, खतरनाक, सेनिटरी और ई वेस्ट शामिल है। इंदौर में अब 95 प्रतिशत कूड़ा ट्रीट हो रहा है।
इंदौर की तरह बायो सीएनजी पर करें फोकस
इंदौर एक दिन में 550 टन गीले कूड़े से 17000 किलो बायो सीएनजी बना रहा है। राजधानी में एक दिन में करीब 11000 टन कूड़ा निकलता है। डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? इसमें से 50 से 60 प्रतिशत डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नोलॉजी क्या है? गीला कूड़ा है। ऐसे में यदि राजधानी इस तरह की शुरुआत करें तो बेहतर नतीजे मिलने के साथ सीएनजी की बढ़ती कीमतों से भी राहत मिल सकती है।