भारत में इक्विटी में व्यापार कैसे करें

सोने के दाम किसपर निर्भर

सोने के दाम किसपर निर्भर
एक रिप्लेस का विमीय सूत्र का मान होगा दूसरा में क्या निकालना है दूसरा हमें निकालना है पी के लिए यहां पर हमें क्या बता रहे थे यहां पर हमें बता रहे हैं आपको भी मित्र का रहने वाला है आपका भी शुक्रिया पर होगा mal132 के रूप में किसी से बात करते हैं तो गाना तो क्या होगा गणपति साहब लेते हैं इसे तीन के रूप में 2 घंटे के लिए भी होता है यहां पर घनत्व और उसका मान क्या होगा यहां पर भी मित्र के रुप में यहां पर हम इसे लिखेंगे तो कल की घात 3 और टीका मान्य होगा कि वह समय से प्रदर्शित पापा नहीं होता है विश्व के मानव इसे हम समीकरण एक नाम दे देते हैं और समीकरण एक पर इन सभी के विमीय सूत्र को हम वहां पर रखेंगे तो यहां पर हम क्या लिखे हैं समीकरण एक से लिखते हैं एक से का मान क्या होगा दिखेगा मांगी थी हम रखें यहां पर यहां पर 0ld होगा और घाटियां पर कुछ होगा घातक है

सोने के दाम किसपर निर्भर

किसी गैस में ध्वनि की चाल V गै .

किसी गैस में ध्वनि की चाल V गैस के दाब P तथा उसके घनत्व d पर निर्भर करती है ध्वनि की चाल के लिए सूत्र की स्थापना कीजिए।

Updated On: 27-06-2022

UPLOAD PHOTO AND GET THE ANSWER NOW!

Solution : माना गैस में ध्वनि की चाल V, गैस के दाब P की a घात पर तथा उसके घनत्व d की b घात पर निर्भर करती है
अर्थात `VpropP^(a)` तथा `Vpropd^(b)`
या `" "V=KP^(a)d^(b)," "` जहाँ K एक विमाहीन नियतांक सोने के दाम किसपर निर्भर है |
चाल V का विमीय सूत्र `=[M^(0)LT^(-1)],` दाब P का विमीय सूत्र `=[ML^(-1)T^(-2)],` घनत्व d का विमीय सूत्र `=[ML^(-3)T^(0)]`
उपर्युक्त सूत्र में दोनों ओर की राशियों के विमीय सूत्र लिखने पर,
`[M^(0)LT^(-1)]=[ML^(-1)T^(-2)]^(a)[ML^(-1)T^(0)]^(b)सोने के दाम किसपर निर्भर सोने के दाम किसपर निर्भर `
या `[M^(0)L^(1)T^(-1)]=[M^(a+b)L^(-a-3b)T^(-2a)]`
दोनों ओर M,L तथा T की विमाओं की तुलना करने पर
`a+b=0,-a-3b=1` तथा `-2a=-1`
या `a=(1)/(2),b=-(1)/(2)`
`:." "सोने के दाम किसपर निर्भर V=KP^(1//2)d^(-1//2)`
या `" "V=Ksqrt((P)/(d))`
प्रयोगो द्वारा पाया जाता है कि नियतांक K सोने के दाम किसपर निर्भर का मान 1 है अतः गैस में ध्वनि की चाल `V=sqrt(P//d)`.

सोने की कीमतों का अमेरिका की महंगाई से कनेक्शन? दांव लगाने से पहले समझें

News18 हिंदी लोगो

News18 हिंदी 10-11-2022 News18 Hindi

© News18 हिंदी द्वारा प्रदत्त "सोने की कीमतों का अमेरिका की महंगाई से कनेक्शन? दांव लगाने से पहले समझें"

नई दिल्ली. सोने की कीमतों में आज लगातार तीसरे दिन तेजी के सोने के दाम किसपर निर्भर सथ भाव एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. इसी दौरान अमेरिकी डॉलर में कमजोरी देखी जा रही है. वहीं अब बाजार से जुड़े लोगों की नजरें अमेरिका के महंगाई के आंकड़ों पर टिकी हैं. यदि महंगाई कम होती है तो ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी थमेगी.

यहां समझने वाली बात ये है कि यदि डॉलर मजबूत होगा तो सोने की कीमतों पर दबाव बना रहेगा. ऐसे में, महंगाई के कम होने पर डॉलर स्थिर या कमजोर होगा तो सोने की कीमतों को सपोर्ट मिलेगा. यहां से सोने की कीमत किस तरफ जाएगी, यह पूरी तरह अमेरिकी डॉलर या कहें कि अमेरिका के महंगाई के आंकड़ों पर निर्भर करेगा.

किस देश के पास है सबसे ज़्यादा सोना, भारत का स्थान जानकर आपको दुःख होगा

Which country has the most gold: दुनिया का हर एक देश सोना यानी के Gold के पीछे पगलाया है। कभी भारत भी सोने की चिड़िया कहा जाता था जिसके पंख मुग़लों और अंग्रेजों ने काट कर उस चिड़िया की बिरियानी सोने के दाम किसपर निर्भर बना डाली। खैर किसी भी देश की अमीरी वहां की अर्थव्यवस्था पर निर्भर तो करती है लेकिन किसके पास कितना गोल्ड है ये भी मैटर करता है।

सबसे ज़्यादा सोना किस देश के पास है

अमेरिका :दुनिया में सबसे ज़्यादा सोना USA के पास मौजूद है। यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका ने US बुलियन डिपॉज़िटरी में अपने सोने का भंडार किया है। आपको बता दें कि अमेरिका के पास 8,133.5 टन सोना है जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है।

जर्मनी: सोने के भंडार के मामले में जर्मनी दूसरे नंबर पर है। जहां इस देश के पास 3,362.4 टन सोना है। जर्मनी में सोने का भंडार फ्रैंकफ्रंट में ड्यूश बुसेन्डबैक और अमेरिका के फेडरल बैंक और लंदन के बैंक ऑफ़ इंग्लॅण्ड में रखा हुआ है।

इटली: इटली दुनिया का तीसरा ऐसा देश है जिसके पास सबसे ज़्यादा सोना है। इटली के पास 2,451,8 टन सोना है। यह भंडार सोने की सिल्लियों के रूप है। बैंक ऑफ़ इटली सोने के भंडार की सुरक्षा करता है।

फ़्रांस: फ़्रांस हमेशा संकट के वक़्त सोना बेचकर देश को संभालता है। यह दुनिया का ऐसा चौथा देश है जिसके पास सबसे ज़्यादा सोना है। फ़्रांस के पास 2,435.7 टन सोना है।

ब्याज दर का असर

फाइनैंशल प्रॉडक्ट्स और सर्विसेस के लिए ब्याज दरों का सीधा संबंध सोने की मांग से होता है। करंट गोल्ड प्राइस किसी भी देश में इंट्रेस्ट रेट्स के लिए भरोसेमंद संकेतों की तरह माने जाते हैं। ब्याज दरों में कमी की वजह से ग्राहक कैश के बदले सोना बेचने लगते हैं और इससे गोल्ड की सप्लाई बढ़ जाती है और फिर इसके दाम कम हो जाते हैं। इसी तरह जब इंट्रेस्ट रेट्स कम होते हैं तब सोने की मांग बढ़ती है और इसकी कीमत सोने के दाम किसपर निर्भर में भी बढ़ोतरी हो जाती है।

जूलरी मार्केट

भारत में त्योहारों के वक्त जूलरी की खरीद एक धार्मिक काम की तरह होता है। ऐसे में दीवाली और धनतेरस जैसे त्योहारों के दौरान देश में सोने की मांग काफी बढ़ जाती है। ऐसे में सोने के दाम किसपर निर्भर कीमत बढ़ना भी तय है।

कई और भी हैं कारण

ऊपर जिन बातों का जिक्र किया गया है उनके अलावा भी कई ऐसे कारक हैं जो सोने की कीमत को प्रभावित करते हैं। जैसे, सोने के प्रोडक्शन में लगने वाला खर्च भी इसकी कीमत निर्धारित करता है। इन सबके अलावा जो बात गौर करने लायक है वह ये है कि मांग और आपूर्ति सोने की कीमत तय करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं।

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म. पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

रिजर्व बैंक और महंगाई

रिजर्व बैंक और महंगाई

रिजर्व बैंक द्वारा पिछले तीन महीनों के दौरान तीन बार अन्तर्बैंकिंग ऋणों पर ब्याज दरें बढ़ाने के फैसले से ही स्पष्ट है कि देश में बढ़ती महंगाई का खतरा मुंह बाये खड़ा है। फिलहाल भारत में थोक मूल्य सूचकांक में 7 प्रतिशत के लगभग की वृद्धि दर्ज है मगर खुदरा स्तर पर पहुंचते-पहुंचते यह 14 प्रतिशत से भी ऊपर तक हो जाती है जिससे आम जनता की तकलीफें बहुत बढ़ जाती हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकान्त दास को इस हकीकत का एहसास है जिसकी वजह से वह महंगाई का मुकाबला करने के लिए मौद्रिक मोर्चे पर उपाय कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि वह बाजार में रोकड़ा की उपलब्धता ‘कसना’ और महंगी बनाना चाहते हैं जिससे महंगाई पर लगाम लग सके। रिजर्व बैंक की ब्याज दर बढ़ कर अब 5.4 प्रतिशत हो गई है जिसका सीधा असर व्यावसायिक व वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये जाने वाले कर्जों की ब्याज दरों पर पड़ेगा अर्थात बैंकों से ऋण लेना अब पहले की अपेक्षा महंगा होगा। बैंक जब स्वयं ही रिजर्व बैंक से 5.4 प्रतिशत की दर से ऋण लेंगे तो सोने के दाम किसपर निर्भर आगे ग्राहकों को भी बढ़ी हुई दरों पर देंगे परन्तु अपने यहां जमा धन पर भी उन्हें ब्याज दर में आनुपातिक वृद्धि करनी होगी। किसी भी बैंक का मुनाफा और घाटा इस बात पर निर्भर करता है कि वह ब्याज की किस दर पर कर्जा देता है और किस दर पर अपने यहां जमा धन पर ब्याज देता है। इसे तकनीकी वित्तीय भाषा में ‘स्प्रेड’ कहा जाता है। इसके बाद बैंक के खर्चे आते हैं जो कर्मचारियों की तनख्वाहों व रख रखाव के होते हैं। ( यहां जड़ सम्पत्तियों अर्थात नान परफार्मिंग एसेट्स का जिक्र नहीं हो रहा है)। अतः बहुत स्पष्ट है कि जब बैंकों से कर्जा महंगा मिलेगा तो बाजार में रोकड़ा की उपलब्धता कम होगी जिसकी वजह से खुले बाजार में माल की आवक बदस्तूर समुचित रहने से उनके दामों में वृद्धि नहीं होगी। मौद्रिक मोर्चे पर महंगाई थामने के उपाय करने का अर्थ यही होता है। लेकिन जब थोक बाजार में किसी वस्तु के भाव में मसलन एक रुपये की वृद्धि होती है तो खुदरा बाजार तक पहुंचते-पहुंचते यह औसतन तीन रुपये तक हो जाती है। जिसकी वजह दुकानदारों का मुनाफा व परिवहन माल ढुलाई आदि का खर्चा होता है। यही वृद्धि सामान्य उपभोक्ता को मार डालती है और वह महंगाई का दर्द महसूस करने लगता है। लेकिन इससे निपटने के उपाय भी सरकार के पास होते हैं जिसे ‘बाजार हस्तक्षेपनीति’ कहा जाता है। इसके तहत सरकार स्वयं बाजार में अपनी विभिन्न विपणन एजेंसियों की मार्फत व्यापारी बन कर उतरती है और सीधे उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर उपभोक्ता सामग्री सुलभ कराती है। परन्तु बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दौर में यह नीति प्रायः छूट सी गई है । इसके बहुत से कारण हैं जिनका खुलासा सीमित शब्दों में किया जाना संभव नहीं है। फिलहाल यह मान कर चला जाना चाहिए कि सरकार बाजार में हस्तक्षेप नहीं करेगी और विविध बाजार मूलक उपायों से महंगाई को नियन्त्रित करने का प्रयास करेगी जिनमें से एक उपाय यही है जो रिजर्व बैंक ने किया है। यहां यह बताना आवश्यक है कि नकद फसलों ( कैश क्राप्स) जैसे सब्जी आदि की महंगाई कोई महंगाई नहीं होती है जबकि सबसे ज्यादा रोना इन्हीं का रोया जाता है। इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि देश के लगभग सभी राजनैतिक दलों के छोटे से लेकर बड़े नेता सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए आम जनता का ध्यान भी इन्हीं चीजों की तरफ केन्द्रित करने के प्रयास करते हैं। कैश क्राप्स की कीमत प्रतिदिन सब्जी मंडियों में आने वाली सब्जी की आवक पर निर्भर करती है जिसका सीधा सम्बन्ध किसान से होता है। किसान के खेत में जितनी उपज होती है वह दैनिक आधार पर मंडी में ले आता है और उस उपज को देखते हुए उस सब्जी या फल के दाम नियत हो जाते हैं। यहां से माल खुदरा बाजार में जाता है और प्रत्येक खुदरा कारोबारी के लाभ के अनुसार उसके दाम बढ़ते जाते हैं। लेकिन असली महंगाई स्थायी उपजों जैसे गेहूं, आटा, चावल, दाल, चीनी, तेल, गुड़ , मसालों, दूध, दही, घी आदि की होती है। उत्तर भारत के गांवों में एक कहावत बहुत प्र​चलित हुआ करती थी कि यदि ‘गेहूं महंगा तो सब महंगा’। मगर यह संरक्षणात्मक अर्थव्यवस्था के दौर की कहानी है। पिछले तीन दशकों में भारत बहुत बदला है और इसकी अर्थव्यवस्था के मूल मानकों में भारी परिवर्तन आया है। सेवा क्षेत्र का हिस्सा सकल विकास उत्पाद में लगातार बढ़ रहा है। औद्योगिक व उत्पादन क्षेत्र का अंश भी बढ़ रहा है। अतः हमें लोहों से लेकर सीमेंट व अन्य धातुओं के साथ औषधि क्षेत्र व घरेलू टिकाई उपकरणों ( बिजली उत्पादों समेत) के उत्पादों की महंगाई की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। इन सभी उत्पादों की कीमत बढ़ने का सीधा असर उपभोक्ता सामग्रियों पर पड़ता है। अर्थात अब अर्थव्यवस्था के समीकरण बदलने लगे हैं। भविष्य में यह चलन और गहरा होगा क्योंकि भारत तरक्की की राह पर चल रहा है और डिजिटल दौर में प्रवेश कर चुका है। अब जाकर हमें अपनी अर्थव्यवस्था के आधारभूत मानकों की तरफ देखना होगा जिनकी वजह से महंगाई पर लगाम कसे जाने की संभावनाएं पैदा होंगी। औद्योगिक उत्पादन से लेकर यदि टिकाऊ घरेलू उपभोक्ता सामग्री का उत्पादन बढ़ रहा है तो हमें ज्यादा फिक्र करने की जरूरत नहीं है और यदि सेवा (पर्यटन समेत) क्षेत्र में भी वृद्धि हो रही है तो सोने पर सुहागा। ये दोनों कारक आय में वृद्धि और उसके वितरण के वाहक होते हैं। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था को मोटे तौर पर इससे भी समझा जा सकता है। परन्तु गैस सिलेंडर से लेकर पेट्रोल व डीजल के दाम इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारें इनके मूल दामों में किस हद तक उत्पादन शुल्क या बिक्रीकर ( वैट) के मामले में समझौता करने को तैयार होती हैं। मगर यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकारों की आमदनी अन्य उत्पादनशील मदों से किस हद तक होती है। पूरा आर्थिक चित्र देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि अगले साल के शुरू तक महंगाई का चक्र उल्टा घूमना शुरू हो जाना चाहिए जैसी कि रिजर्व बैंक के गवर्नर की अपेक्षा है। मगर फिलहाल के लिए कुछ न किया जाये तो बेहतर होगा।

रेटिंग: 4.51
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 810
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *