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खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है
3. सावधि जमा खाता

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लेखांकन के कार्य – Function Of Accounting In Hindi

लेखांकन के 6 महत्वपूर्ण कार्य हैं। जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं –
1.लेखा कार्य
2.व्याख्या कार्य
3.संप्रेषण कार्य
4.वैधानिक कार्य
5.व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा प्रदान करना
6.निर्णय लेना

1.लेखा वर्क – लेखांकन का यह आधारभूत कार्य होता है। इस कार्य के अंतर्गत व्यवसाय के प्रारंभिक बहियों (Book) में तिथिवार, क्रमबद्ध तरीके से,उनको सही खाते में वर्गीकरण करना,एवं उनसे खाते तैयार करना शामिल होता है। इसमें तलपट का कार्य भी सम्मिलित होता है जिसके आधार पर अंतिम खाता बनाया जाता है ।अंतिम खाता के अंतर्गत व्यापार खाता (Trading Account) ,लाभ- हानि खाता (Profit & Loss A/C) तथा आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) तैयार किया जाता है।

2. व्याख्या वर्क – इसके अंतर्गत लेखाकर्म का मुख्य काम सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों ke लिए वित्तीय विवरण (Financial Statement) व रिपोर्ट का व्याख्या तथा विश्लेषण करना होता है।

लेखांकन के अन्य कार्य

4. वैधानिक वर्क – वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना लेखांकन का अहम् कार्य होता है। कई तरह के कानूनों विधान जैसे की- बिक्री कर अधिनियम, आयकर अधिनियम, कंपनी अधिनियम आदि द्वारा खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है कई तरह के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है। उदाहरण में – आयकर रिटर्न, बिक्री कर रिटर्न, अंतिम खाते आदि।यह कार्य तभी पूरा हो सकता है जब लेखांकन ठीक से रखा जाए।

5. व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा देना – व्यवसाय की संपत्तियों को सुरक्षा देना यह लेखांकन का महत्वपूर्ण कार्य होता है। यह कार्य तभी सफल हो सकता है जब सभी संपत्तियों का उचित लेखा – जोखा रखा खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है गया हो।

6. निर्णय लेना – लेखांकन करने से किसी भी व्यवसाय में एक महत्वपूर्ण आंकड़ा उपलब्ध होता है । जिससे कि निर्णय लेने में सुविधा होती है। यह लेखांकन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है।

अंकेक्षण का वर्गीकरण अथवा प्रकार

जब अंकेक्षण कराना किसी विधान द्वारा अनिर्वाय हो तो वह वैधानिक या अनिर्वाय अंकेक्षण कहलाता है। इसमे अंकेक्षण का क्षेत्र विधान द्वारा तय होता है। अंकेक्षण व नियोक्ता इसे किसी समझौते द्वारा खत्म नही कर सकते है। भारत मे कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार," हर कंपनी जिसका रजिस्ट्रेशन इस अधिनियम के अंतर्गत हुआ है उसको अपने खातों का अंकेक्षण किसी योग्य अंकेक्षण से कराना होगा।" इसके अलावा सरकार ने कुछ अन्य अधिनियम भी पास किये है, जिनके अनुसार सार्वजनिक प्रन्यास, बिजली कंपनियों, गैस कंपनियों आदि हेतु अपने खातों का अंकेक्षण कराना अनिवार्य है।

2. निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण

जो अंकेक्षण निजी, एकांकी व्यापारी, साझेदारी फर्म अथवा अन्य संस्था के हिसाब-किताब की जांच करने के लिये कराया जाता है, उसे निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण कहते है। इस अंकेक्षण मे कार्यक्षेत्र किसी विधान द्वारा निश्चित नही होता बल्कि यह पूर्णतया खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है अंकेक्षण व नियोक्ता के समझौते पर निर्भर होता है।

(ब) अंकेक्षण का लेखों की प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण

1. लागत अंकेक्षण

किसी संस्था के लागत लेखों की जांच को लागत अंकेक्षण कहते है। लागत अंकेक्षण का उद्देश्य, गहन जांच करके उत्पादन लागत के औचित्य के बारे मे जानकारी प्राप्त करना है।

2. वित्तीय अंकेक्षण

जब अंकेक्षक प्रारम्भिक पुस्तकों, लाभ हानि खाते व चिट्ठे का अंकेक्षण करता है तो उसे वित्तीय अंकेक्षण कहा जाता है। साधारण भाषा मे अंकेक्षण से तात्पर्य वित्तीय अंकेक्षण से ही लगाया जाता है।

(स) अंकेक्षण का व्यावहारिक वर्गीकरण

1. पूर्ण अंकेक्षण

यदि किसी अवधि विशेष से संबंधित सभी लेखा पुस्तकों की विधिपूर्वक जांच हो, जिससे कोई भी लेन-देन या लेखा न छूट जाये तो इस प्रकार की जांच को पूर्ण अंकेक्षण कहते है।

2. आंशिक अंकेक्षण

यदि संस्था का स्वामी अपने व्यापारिक वर्ष के संपूर्ण लेखो का अंकेक्षण न कराकर उसके स्थान पर उसके कुछ अंश का अंकेक्षण कराता है तो इसे आंशिक अंकेक्षण कहते है। आंशिक अंकेक्षण भी दो प्रकार का होता है--

(A) समयानुसार आंशिक अंकेक्षण

यदि 3 या 4 माह के हिसाब से अंकेक्षण कराया जाये तो उसे समयानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।

(B) कार्यनुसार आंशिक अंकेक्षण

समस्त लेखा पुस्तकों के स्थान पर किसी विशेष लेखा पुस्तक का अंकेक्षण कराया जाये तो उसे कार्यानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।

3. सामयिक खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है अंकेक्षण

वर्गीकरण की परिभाषाएं (Definition of data in hindi)

आइये हम वर्गीकरण से संबंधित कुछ परिभाषाओं (Vargikaran ki paribhasha) का अध्ययन करते हैं। जिनसे यह स्पष्ट हो जाएगा कि वर्गीकरण के लक्षण व महत्व क्या है?

एल. आर. कार्नर के अनुसार- "वर्गीकरण वस्तुओं को समूह अथवा वर्गों में उसकी समानता और सजातीयता के आधार पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। जिससे व्यक्तिगत इकाइयों की विविधता में एकता व्यक्त की जा सकती है।"

स्पूर एवं स्मिथ के अनुसार- "संबंधित तथ्यों को व्यवस्थित करके, विभिन्न वर्गों में प्रस्तुत करने की क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है।"

होरेक्स सेक्राइस्ट के अनुसार- "वर्गीकरण समंकों को उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर क्रम या समूहों में क्रमबद्ध तथा संबंधित विभिन्न भागों में अलग-अलग करने की प्रक्रिया है।"

शुक्ल और सहाय के अनुसार, "समंकों के अव्यवस्थित विशाल ढेर को, वर्गीकरण के द्वारा एक व्यवस्थित रूप दिया जाता है ताकि भविष्य का कार्य सरल हो सके।"

वर्गीकरण के लक्षण | Main features of classification in hindi

समंकों के वर्गीकरण के निम्नलिखित लक्षण या आँकड़ों के वर्गीकरण की मुख्य विशेषताएँ (Vargikaran ki visheshtayen) निम्न हैं-

2. वर्गीकरण आँकड़ों की समानता, सादृश्यता या उनके गुणों के आधार पर होता है।
3. यह पदों की विभिन्नता के बीच में भी उनकी 85 को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है।
4. वर्गीकरण समूह की इकाइयों को भिन्न-भिन्त्र वर्गो में विभाजित करने की एक युक्ति है।
5. वर्गीकरण अथवा समंकों का विभाजन वास्तविक अथवा काल्पनिक दोनों रूप में हो सकता है।

वर्गीकरण के उद्देश्य (Objects of Classification in hindi)

1. वर्गीकरण का उद्देश्य जटिल व बिखरे हुए तथ्यों को सरल व संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाना होता है।
2. समान गुण रखने वाले तथ्यों को एक वर्ग में रखा जाता है। जिससे तथ्यों में पायी जाने वाली समानता व असमानता स्पष्ट हो जाती है। जैसे- साक्षर-निरक्षर, पुरुष-स्त्री आदि।

किसी भी आदर्श वर्गीकरण में होने वाली विशेषताएँ (Adarsh vargikaran ki visheshtaen) निम्नलिखित होनी चाहिए। जिससे यह पता लगाया जा सके कि एकत्रित समंकों को विशेष सजातीयता के आधार पर विभक्त किया गया है। आइये हम वर्गीकरण की विशेषताएं जानते हैं-

1. उद्देश्य की अनिरुपता- वर्गीकरण का रूप, अनुसन्धान के रूप में और उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए। वर्गीकरण का आधार, वर्गों के गुण, उनकी संख्या आदि को इस तरह निर्धारित करना चाहिए ताकि उस अनुसंधान विशेष के उद्देश्य की पूर्ति हो।

भारतीय बैंकों में कितने प्रकार के खाते खोले जाते हैं?

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता, मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

चेक के प्रकार: Types of Cheques कितने हैं?

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चेक एक कागज़ है. है न? कागज़ ही तो है. भले ही उसकी वैल्यू लाखों की हो सकती है….पर चेक एक कागज़ ही है…ठीक नोट की तरह….पर परीक्षा में ऐसे लिखिएगा तो आपको जीरो मार्क्स खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है मिलेंगे. परीक्षा में ऐसे लिखना होगा:—- चेक बैंक द्वारा अकाउंट होल्डर को दिया जाने वाला वह भुगतान का साधन है जिससे ग्राहक किसी अगले व्यक्ति को अपने अकाउंट से डायरेक्ट कैश न देकर भुगतान कर सकता है. यह हुई न बात! अब मिलेंगे आपको १० में से १०. भले ही शिक्षक को समझ न आये!

चेक में आप किसे पैसे दे रहे हैं, उनका नाम लिखना होता है…वह किसी व्यक्ति का नाम भी हो सकता है या किसी फर्म का. चेक में आपको यह भी भरना होता है कि आप कितने पैसे उस व्यक्ति को दे रहे हैं (शब्द और संख्या में), कब दे रहे हैं (Date)…और अंत में आपको सिग्नेचर करना पड़ता है. आपका चेक लेकर बन्दा अपने अकाउंट में डाल देता है और आपने जितना अमाउंट उसे दिया था वो उसके अकाउंट में ट्रान्सफर हो जाता है.

चेकों का वर्गीकरण: मूल्य के आधार पर

१. साधारण मूल्य वाले चेक -Normal Value Cheques

1 लाख से कम मूल्य वाले चेक नॉर्मल वैल्यू चेक कहलाते हैं.

२. ऊँचे मूल्य वाले चेक -High Value Cheques

1 लाख से ऊपर वाले चेक हाई वैल्यू चेक कहलाते हैं.

३. उपहार चेक – Gift Cheques

अपने प्रिय जनों को उपहारस्वरूप दिए जाने वाले चेक गिफ्ट चेक कहलाते हैं. उपहार चेकों की राशि 100 रु. से लेकर 10,000 रु. तक हो सकती है.

चेक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –

1. खुला चेक – Open Cheque

खुला चेक वह चेक होता है जिसे बैंक में प्रस्तुत कर काउंटर पर ही नकद प्राप्त किया जा सकता है. Clarence के लिए आपको इंतज़ार करने की जरुरत नहीं है. गीव एंड टेक…..ओपन चेक को धारण करने वाला व्यक्ति काउंटर में जा कर, चेक दिखाकर….पैसे ले सकता है और या तो अपने अकाउंट में पैसे को ट्रान्सफर कर सकता है या चेक के पीछे हस्ताक्षर कर के किसी अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत (authorize) कर सकता है.

2. बेयरर चेक – Bearer Cheque

बेयरर चेक वह चेक है जो खाताधारी (account holder) का कोई भी प्रतिनिधि बैंक में जाकर भुना सकता है. प्रतिनिधि को चेक देते समय चेक के पीछे हस्ताक्षर करने की आवश्यकता नहीं होती एवं खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है मात्र चेक दे देने से निकासी हो जाती है. ये चेक risky भी हो सकते हैं क्योंकि अगर यह चेक अगर भुला गया तो कोई भी बैंक जा कर इसे भुना सकता है.

चेक का वर्गीकरण: गारंटी भुगतान के आधार पर

1. सेल्फ चेक – Self Cheque

सेल्फ चेक वह होता है जिसे खाताधारी बैंक में प्रत्यक्ष भुगतान के लिए स्वयं प्रस्तुत करता है. इसमें भुगतान पाने वाले के नाम की जगह पर “Self” लिखा जाता है.

2. आगे की तारीख वाला चेक – Post-dated Cheque (PDC)

आगे की तिथि में भुगतान वाला चेक एक ऐसा क्रॉस किया हुआ बेयरर चेक होता जिसमें आगे की तिथि अंकित की जाती है. इसका अर्थ यह हुआ है कि इस चेक का भुगतान अंकित तिथि खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है या उसके बाद हो सकता है.

3. पीछे की तारीख वाला चेक – Ante-dated Cheque (ADC)

इस चेक में बैंक में प्रस्तुत करने के पहले की तिथि होती है. यह चेक अंतिम तिथि से तीन महिना के पूरा होने के तक भुनाया जा सकता है.

4. काल बाधित चेक – Stale Cheque

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