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मुद्रा संकट के उदाहरण

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विदेशी मुद्रा भंडार का उच्चतम स्तर: कारण और महत्त्व

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 4 सितंबर को जारी आँकड़ों के अनुसार, सप्ताह के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) का भंडार $ 3.883 बिलियन बढ़ कर $ 541.431 बिलियन के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $ 500 बिलियन को पार कर गया।

प्रमुख बिंदु:

विदेशी मुद्रा (फोरेक्स) भंडार-

अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण-

  • विदेशीमुद्राभंडारमेंवृद्धिकाप्रमुखकारण भारतीय स्टॉक बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि है। विदेशी निवेशकों ने पिछले कई महीनों में कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल की है।
  • मार्च महीने में ऋण और इक्विटी के प्रत्येक खण्डों में से 60000 करोड़ रूपए निकालने के पश्चात् इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्थामेंकायापलटकीउम्मीदसेविदेशीपोर्टफोलियोनिवेशकोंनेभारतीयबाज़ारोंमेंवापसीकी है।
  • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के कारण तेल के आयात बिल में कमी आने से विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। इसी तरह विदेशी प्रेषण और विदेश यात्राएँ बहुत कम हो गई हैं।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 20 सितंबर, 2019 को कॉर्पोरेट कर की दरों में कटौती की मुद्रा संकट के उदाहरण घोषणा के साथ ही फोरेक्स रिज़र्व में वृद्धि होना शुरू हो गया था।
  • सोनेकीबढ़तीकीमतोंनेकेंद्रीयबैंककोसमग्रविदेशीमुद्राभंडारबढ़ानेमेंमददकी है।

महत्त्व-

  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को देश के बाह्य और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में बहुत आसानी होती है।
  • यह आर्थिक मोर्चे पर किसी भी संकट की स्थिति में एक वर्ष के लिये देश के आयात बिल को कवर करने के लिये पर्याप्त है।
  • बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार ने डॉलर के मुकाबले रूपए को मज़बूत करने में मदद की है। सकलघरेलूउत्पाद(GDP)केअनुपातमेंविदेशीमुद्राभंडारलगभग15प्रतिशतहै।
  • यह सरकार को अपनी विदेशी मुद्रा आवश्यकताओं और बाहरी ऋण दायित्त्वों को पूरा करने में मदद कर सकने के साथ ही राष्ट्रीय आपदाओं या आपात स्थितियों के लिये एक रिज़र्व बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह-

  • निवेश प्रतिबंधों को कम करके FDI को और अधिक उदार बनाया जाना चाहिये। चालू खाते में और अधिक उदारीकरण किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए धन का उपयोग किया जा सकता है, जिससे अधिक रिटर्न प्राप्त किया जा सके।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण, विदेशी वित्तीय बाज़ारों में निवेश या महंगे बाह्य ऋण के पुनर्भुगतान के लिये भी इसका उपयोग किया जा सकता है

वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय घाटे का दायरा निर्धारण के लिये सिफारिश

G.S. Paper-III (Economy)

चर्चा में क्यों?

वित्त आयोग के सलाहकार पैनल के कई सदस्यों ने COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं में वृद्धि को देखते हुए केंद्र और राज्यों के राजकोषीय घाटे का एक सीधा लक्ष्य रखने के बजाय एक सीमा (Range) निर्धारण पर विचार करने का सुझाव दिया है।

मुद्रा संकट के उदाहरण

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श्रीलंकाई संकट : एक प्रबंधन त्रासदी

श्रीलंकाई संकट : एक प्रबंधन त्रासदी

कोलंबो, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। कोलंबो का हाल इन दिनों एक अंधी गली जैसा हो गया है, लेकिन उम्मीद की एक किरण बची है, क्योंकि भारत और बहुपक्षीय वित्तीय संस्थान जैसे विश्वसनीय विकास भागीदार, द्वीपीय देश को मौजूदा आर्थिक संकट से उबारने में मदद करने की कोशिश कर रहे हैं।

श्रीलंकाई आर्थिक समस्याओं में विदेशी मुद्रा/आवश्यक वस्तुओं की कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति शामिल हैं। इसके कारणों की जड़ें बहुत गहरी हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हाल ही में उल्लेख किया है कि श्रीलंका को अस्थिर ऋण स्तरों के साथ-साथ लगातार राजकोषीय और भुगतान संतुलन की कमी के कारण स्पष्ट करदान समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

बढ़ती मुद्रास्फीति (लगभग 19 प्रतिशत) और बिगड़ती जीवन स्थितियों के बीच 1948 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।

भोजन की कमी के साथ-साथ 13 घंटे की रोजाना बिजली कटौती के साथ नागरिक भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं। संकट इतना गंभीर है कि सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के गवर्नर अजित निवार्ड कैबराल ने भी पद छोड़ने की पेशकश की थी।

कुछ साल पहले तक श्रीलंका ने दक्षिण एशिया में उच्चतम प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक प्रदर्शित किया था, लेकिन एकतरफा विकास मॉडल के कारण देश आर्थिक कगार पर धकेल दिया गया था।

कोलंबो ने बीजिंग के विकास मॉडल के आधार पर एक बुनियादी ढांचा केंद्रित विकास मॉडल अपनाया। उम्मीद है कि यह रोजगार पैदा करने और द्वीप राष्ट्र के लिए समृद्धि लाने में सक्षम होगा। इसने अपनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए चीन की ओर रुख किया, जिसमें राजस्व सृजन की कोई गारंटी नहीं थी।

इस बीच, बुनियादी खाद्य उत्पादन जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों की उपेक्षा की गई। यदि कोलंबो ने कम से कम नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश किया होता तो मौजूदा संकट को कुछ हद तक टाला जा सकता था।

अपने आर्थिक विकास को गति देने के अपने प्रयासों में श्रीलंका के राजनीतिक नेतृत्व ने अदूरदर्शी योजना और त्वरित सुधारों का सहारा लिया।

बुनियादी ढांचा आधारित विकास, ठेठ चीनी मॉडल, ज्यादातर इसलिए सफल रहा, क्योंकि चीन ने अपने विनिर्माण आधार को मजबूत किया और उसी समय निर्यात को बढ़ावा दिया। हालांकि, श्रीलंका का बुनियादी ढांचा विकास उधार पर आधारित था, जबकि इसकी विदेशी मुद्रा आय पर्यटन पर अत्यधिक निर्भर रही।

अनिवार्य रूप से देश अव्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए चीन से उधार लेने और ऋण वापस करने में असमर्थ होने के दुष्चक्र में फंस गया है, जिसके परिणामस्वरूप या तो परियोजनाओं का नियंत्रण छोड़ दिया गया है या चीन को चुकाने के लिए अन्य ऋण ले रहे हैं। इसने केवल बीजिंग के रणनीतिक हित को पूरा किया है।

इसके अलावा, चीनी ऋण का उपयोग न केवल हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी जैसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए, बल्कि सड़कों और जल उपचार संयंत्रों के लिए भी किया गया था।

इसके अलावा, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीनी निवेश के परिणामस्वरूप निर्माण सामग्री के आयात में भी वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए दक्षिणी एक्सप्रेसवे के निर्माण में चीनी निर्माण उपकरण और सामग्री का महत्वपूर्ण आयात हुआ था।

श्रीलंका में आर्थिक संकट और तेज हो गया, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने अपने प्रमुख क्षेत्र, यानी पर्यटन को धीमा कर दिया, जिसने बदले में इसके विदेशी मुद्रा संकट को बढ़ा दिया।

इस निरंतर संकट का सामना करते हुए नई दिल्ली ने मानवीय आधार पर कोलंबो को दो आपातकालीन ऋण सहायता की पेशकश की है, जिसमें आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए 1 अरब डॉलर शामिल हैं। अन्य 50 करोड़ क्रेडिट लाइन के तहत, भारत ने हाल ही में कोलंबो को 40,000 मीट्रिक टन डीजल सौंपा। पिछले 50 दिनों में भारत ने श्रीलंका को 200,000 मीट्रिक टन डीजल भेजा है।

भारत के लोगों को लगता है कि भारत सरकार को श्रीलंका के आर्थिक संकट से उबारने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए। ये आकांक्षाएं लंबे समय से चले आ रहे सांस्कृतिक संबंधों और घनिष्ठ संबंधों के अनुरूप हैं।

जनवरी 2022 से, भारत अपने नागरिकों द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों को देखते हुए श्रीलंका की सहायता कर रहा है। इसने 2.4 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी थी, जिसमें 40 करोड़ का क्रेडिट स्वैप और 51.5 करोड़ डॉलर से अधिक के एशियन क्लियरिंग यूनियन भुगतान को स्थगित मुद्रा संकट के उदाहरण करना शामिल था।

इस बीच, देश में सार्वजनिक विरोध तेज हो रहा है और सरकार ने आपातकाल लगाने का सहारा लिया है। श्रीलंका के सभी कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है। राजनीतिक अनिश्चितता को टालने के प्रयास में भारत, श्रीलंका के लोगों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।

यह इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि आर्थिक संकट के साथ-साथ श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन या क्रेडिट लाइन के विस्तार की अपील के बावजूद चीन अब तक इसके लिए सहमत नहीं हुआ है। महसूस किया जा रहा है कि समय बर्बाद करने के बजाय बहुपक्षीय एजेंसियों को श्रीलंका की मदद करनी चाहिए और भारत को इसके लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। कोलंबो और संकट में घिरे श्रीलंकाई नागरिकों के लिए समय खत्म होता जा रहा है।

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______ एक स्थिति है जहाँ एक सक्षम अधिकार क्षेत्र का न्यायालय एक व्यक्ति अथवा अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर चुका हो और इसके निपटान एवं ऋणदाताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपर्युक्त आदेश पारित कर चुका हो।

Key Points

  • दिवालियापन:
    • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार की अदालत ने किसी व्यक्ति या अन्य मुद्रा संकट के उदाहरण संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया है, इसे हल करने और लेनदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए उचित आदेश पारित कर दिया है। अत: विकल्प 1 सही मुद्रा संकट के उदाहरण है।

    Additional Information

    मुद्रा संकट मुद्रा संकट एक ऐसी स्थिति है जिसमें गंभीर संदेह मौजूद है कि क्या देश के केंद्रीय बैंक के मुद्रा संकट के उदाहरण पास देश की निश्चित विनिमय दर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। संकट अक्सर विदेशी मुद्रा बाजार में एक सट्टा हमले के साथ होता है।
    ऋण शोधन अक्षमता सामान्यतया, दिवाला उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहां एक देनदार अपने द्वारा दिए गए ऋणों का भुगतान नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक परेशान कंपनी दिवालिया हो सकती है जब वह अपने लेनदारों के पैसे को समय पर चुकाने में असमर्थ होती है, जिससे अक्सर दिवालियापन दाखिल होता है।
    अशेध्य ऋण एक ऐसा कर्ज जो चुकाया नहीं जाएगा।

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    Last updated on Sep 27, 2022

    The NTA (National Testing Agency) has released the CUET Phase VI Admit Card. The exam will be conducted at 489 examination centres across India. As per the notice, the exam is scheduled to be conducted on 24th August, 25th August, and 26th August 2022. Candidates can download their admit cards by filling in the application number, date of birth, and security pin. The CUET (Central Universities Entrance Test) is a common exam that is conducted by NTA for UG admissions into all the central and many other universities of India. Check out the CUET Answer Key Details Here.

    श्रीलंका के आर्थिक संकट से सबक

    हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों की बैठक में शामिल उच्च अधिकारियों ने देश में कई राज्यों द्वारा घोषित अति लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारी मुफ्त रियायतों पर चिंताएं जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी योजनाएं और रियायतें आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं। ये लोकलुभावन योजनाएं और रियायतें कई राज्यों को श्रीलंका की तरह आर्थिक मुश्किलों के रास्ते पर ले जा सकती हैं। गौरतलब है कि श्रीलंका में पिछले कुछ समय से लागू की गई लोकलुभावन योजनाओं, करों में भारी कटौती और बढ़ते कर्ज ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया है। 2018 में वैट की दर 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी की गई और विभिन्न वर्गों को दी गई अभूतपूर्व सुविधाओं व छूटों के कारण श्रीलंका दर्दनाक मंदी और चीन के ऋण जाल में फंस गया है। श्रीलंका में इस साल महंगाई दर एक दशक में अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। आर्थिक मुद्रा संकट के उदाहरण तंगी के खिलाफ तेज होते विरोध प्रदर्शनों के बीच सरकार ने एक अप्रैल को श्रीलंका में आपातकाल लागू किया है। श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों के द्वारा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और राष्ट्रपति पर महाभियोग की तैयारी की घोषणा की गई है।

    इतना ही नहीं, श्रीलंका के द्वारा मौजूदा विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद करने के लिए भारत से आर्थिक राहत पैकेज का आग्रह किया गया है। निःसंदेह विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं और विभिन्न कर छूटों के कारण श्रीलंका आर्थिक बर्बादी का सामना कर रहा है, ऐसे में हमारे देश में उन विभिन्न राज्यों की सरकारों के द्वारा श्रीलंका के उदाहरण को सामने रखना होगा, जिन राज्यों ने लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारे प्रलोभन और छूटों का ढेर लगा दिया है और उससे उन प्रदेशों की अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रही हैं। इतना ही नहीं, विभिन्न वर्गों के लिए मुफ्त यात्रा, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी या फिर नाम मात्र की दर पर ढेर सारी सुविधाएं देने वाले विभिन्न राज्यों में लोगों की कार्यशीलता और उद्यमिता में मुद्रा संकट के उदाहरण भी कमी आई है। साथ ही ऐसे प्रदेश चुनौतीपूर्ण राजकोषीय घाटे की स्थिति में आ गए हैं और वहां बुनियादी ढांचा और विकास बहुत पीछे हो गया है। इन राज्यों में पंजाब, केरल, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ के नाम प्रमुख हैं। यदि हम देश में राजकोषीय घाटे के दलदल में पहुंच चुके विभिन्न राज्यों के द्वारा अपनाई गई मुफ्त सुविधाओं और लोकलुभावन योजनाओं के साथ केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा अपनाई गई कल्याणकारी योजनाओं की तुलना करें तो कुछ बड़े अंतर उभरकर दिखाई देते हैं। मोदी सरकार ने जो कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं, उनसे लोगों का आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है।

    परिणामस्वरूप गरीब वर्ग की कार्यक्षमता बढ़ने के साथ उनकी आमदनी में वृद्धि हो रही है। साथ ही मोदी सरकार ने विकास के लिए कठोर फैसलों की भी रणनीति अपनाई हुई है, उससे आर्थिक मुश्किलों का सामना करते मुद्रा संकट के उदाहरण मुद्रा संकट के उदाहरण हुए देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि केंद्र सरकार ने कोविड-19 के बाद अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बढ़ती महंगाई के मद्देनजर जहां आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं से लोगों की आर्थिक मुश्किलें कम करके उनके सशक्तिकरण का लक्ष्य रखा है, वहीं सरकार जीएसटी और आयकर में भारी रियायतों से दूर रही है। परिणामस्वरूप कोविड-19 के बाद लगातार टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है और देश आर्थिक पुनरुद्धार की डगर पर आगे बढ़ रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल की तरह यूक्रेन संकट से बढ़ती महंगाई के बीच एक बार फिर देश में केंद्र सरकार के द्वारा लागू आर्थिक-सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं राहतदायी दिखाई दे रही हैं। विगत 26 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने यूक्रेन संकट की वजह से महंगाई को देखते हुए इस साल सितंबर 2022 तक 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में राशन देने का फैसला किया है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की थी। गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में जनधन, आधार और मोबाइल (जैम) के कारण आम आदमी डिजिटल दुनिया से जुड़ गया है।

    एकीकृत बुनियादी डिजिटल ढांचा विकसित हुआ है, वह आम आदमी की आर्थिक-सामाजिक मुस्कुराहट का आधार बन गया है। देश में सरकार के द्वारा आम आदमी के आर्थिक कल्याण के लिए शुरू की गई जनधन योजना, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी), सार्वजनिक वितरण प्रणाली का डिजिटल होना विभिन्न योजनाओं का सही व सरल क्रियान्वयन का आधार बन गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शुरू से आखिर तक डिजिटल करने का दोतरफा फायदा मिल रहा है। यदि हम केंद्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का मूल्यांकन करें, तो पाते हैं कि अधिकांश योजनाएं राजकोषीय घाटा बढ़ाने का कारण नहीं बन रही हैं। वे आर्थिक-सामाजिक सशक्तिकरण का बेमिसाल काम कर रही हैं। ऐसी योजनाओं में एलपीजी गैस सब्सिडी, शौचालय निर्माण, घरेलू गैस में सब्सिडी, ग्रामीण विद्युतीकरण, नल जल कनेक्शन, महामारी के दौरान निःशुल्क अनाज वितरण, निशुल्क कोरोना टीकाकरण, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, पोषण कार्यक्रम, ई-रूपी, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, स्टैंड अप इंडिया और अटल पेंशन आदिश शामिल हैं। किसानों के लिए लागू कल्याणकारी योजनाओं ने कृषि क्षेत्र को नई मुस्कुराहट दी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक अब तक 11.37 करोड़ से अधिक किसानों को 1.82 लाख करोड़ रुपए दिए जाने, फसल बीमा योजना में सुधार, कृषि बजट के पांच गुना किए जाने तथा किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य मिलने से करोड़ों किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

    जिस तरह कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत के तहत कल्याणकारी योजनाओं के कारण आम आदमी की मुश्किलें कम हुई और देश की अर्थव्यवस्था को गतिशीलता मिली, उसी प्रकार अब रूस-यूक्रेन युद्ध के संकट के कारण बढ़ती महंगाई से आम आदमी को राहत दिलाने में देश की कल्याणकारी योजनाएं अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रही हैं तथा देश को आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ाया जा रहा है। साथ ही सरकार उपयुक्त रणनीति के साथ राजस्व में भी वृद्धि कर रही है। देश में सरकारी तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों के आधार पर पेट्रोल व डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि की नीति पर चल रही हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में आर्थिक और सामाजिक कल्याण की विशाल योजनाओं के लागू होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े आर्थिक पुनरुद्धार के मुहाने पर है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुद्रा संकट के उदाहरण संग्रह मार्च 2022 में 1.42 लाख करोड़ रुपए रहा, जो रिकॉर्ड है। हम उम्मीद करें कि हमारे ऐसे राज्य जो लोकलुभावन योजनाओं व ढेर सारी रियायतों के प्रतीक बन गए हैं, वे सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे श्रीलंका से सबक लेंगे। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार भी किसी नई लोकलुभावन मुद्रा संकट के उदाहरण व मुफ्त की सौगातों की योजनाओं पर ध्यान नहीं देगी। साथ ही केंद्र सरकार आर्थिक-सामाजिक कल्याण की योजनाओं के साथ-साथ विकास की वर्तमान रणनीति पर तेजी से आगे बढ़ेगी।

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