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वित्तीय प्रणाली की महत्व

वित्तीय प्रणाली की महत्व

बैंक वसूली प्रोत्साहन योजना सेल

क्रेडिट आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण इनपुट है। वित्तीय प्रणाली के एक भाग के रूप में बैंकों को समग्र राष्ट्रीय नियोजन प्रक्रिया के विकास के अंतर्निहित के अनुरूप अर्थव्यवस्था और परियोजनाओं के विभिन्न क्षेत्रों के लिए संसाधन जुटाने में और उनके आवंटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

स्वतंत्रता तक, ग्रामीण आबादी अपने क्रेडिट की जरूरत के लिए संस्थागत एजेंसियों को कम या कोई उपयोग किया था। स्वतंत्रता की सुबह के साथ, सज्जित संस्थागत ऋण वित्तीय प्रणाली की महत्व प्रणाली ग्रामीण जीवन की स्थितियों को बदलने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। क्षेत्र के बजटीय आवंटन थे, एक हद वित्तीय प्रणाली की महत्व तक, राज्य की नीति चिंताओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, संस्थागत ऋण विकास रणनीतियों, कार्यक्रमों और सरकारों की योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में निर्णायक भूमिका निभाई। सरकारी एजेंसियों और अर्थव्यवस्था और आम जनता के कल्याण के विकास की दिशा में वित्तीय संस्थानों की संयुक्त प्रतिबद्धता सबसे महत्वपूर्ण बैंकों को अपने कुल अग्रिम का कम से कम 40% प्रतिबद्ध करने के लिए उम्मीद की गई थी, जो की दिशा में प्राथमिकता क्षेत्र के वित्तपोषण (पीएसएफ) में परिलक्षित होता है। अब तक, पीएसएफ में शामिल विभिन्न एजेंसियों, उनके संबंधित जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य रणनीतियों विकसित किया है, अंतर्निहित मुद्दों का एक संख्या अभी भी गंभीरता से विचार और प्रयासों की जरूरत है। बैंक बकाया की वसूली के लिए इन मुद्दों में से एक है।

हालांकि, सरकार और बैंकों के अधिक से अधिक सहयोग के लिए फोन के बीच साझेदारी को मजबूत बनाने में पूरी कवायद, बैंक बकाया की वसूली के लिए राज्य के प्रयासों के लिए अधिक से अधिक महत्व रखती है। वाणिज्यिक बैंकों को सरकार प्रायोजित कार्यक्रमों और गरीबी उन्मूलन और स्वरोजगार की योजनाओं के संस्थागत वित्त पोषण के लिए लक्ष्यों को पूरा करने में राज्य सरकार की सहायता। सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के तहत लाभार्थियों को ऋण के संवितरण लक्ष्य उन्मुख होते हैं, बहुत बार वसूलियां निशान तक नहीं हैं। ये संभव धन की रीसाइक्लिंग बनाने के रूप में वसूली, वित्तीय प्रणाली के जीवन रक्त है। इसलिए, वाणिज्यिक बैंकों को लगातार बैंकों बैठक लक्ष्यों में राज्य सरकार की सहायता, जैसे वसूली में उन्हें सहायता के लिए राज्य सरकार से अपील कर रहा है।

भारतीय वित्तीय प्रणाली में NBFCs की भूमिका

प्रश्न: NBFCS हमारे SME परिवेश को सुदृढ करने एवं आर्थिक विकास में योगदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, NBFCS द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक नियामक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय वित्तीय प्रणाली में NBFCs की भूमिका का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • हमारे SME तंत्र को सुदृढ़ करने में NBFCs की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • NBFCs द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त चुनौतियों का समाधान करने के लिए नियामक ढांचे के निर्माण की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

विगत कुछ दशकों में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs), अल्पसेवित क्षेत्रों एवं बैंकों के दायरे से बाहर के क्षेत्रों, विशेषकर लघु और खुदरा क्षेत्र, में महत्वपूर्ण वित्तीय मध्यस्थों के रूप में उभरी हैं।

  • वे समाज के बैंकों के दायरे से बाहर के क्षेत्रों को ऋण प्रदान करने में बैंकिंग क्षेत्र के पूरक के रूप में कार्य करती हैं; विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को, जो देश में उद्यमिता एवं नवाचार के आधार का निर्माण करते है।
  • ग्राहकों और उनके ऋण की बेहतर आधारभूत समझ, NBFCs को प्रोत्साहन और अपने ग्राहकों की आवश्यकता के अनुरूप उत्पादों के निर्माण की क्षमता प्रदान करती है।
  • सूक्ष्म वित्तीयन, यूज्ड व्हीकल फाइनेंसिंग या ग्रामीण आवास जैसे क्षेत्रों में अनेक NBFCs की वितरण पहुँच बैंकों की तुलना में बेहतर बनी हुई है।
  • NBFCS समाज के कमजोर वर्गों को वित्तीय समर्थन प्रदान कर और ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन, रोजगार उत्पादन, संपत्ति निर्माण और बैंक ऋण को प्रोत्साहन देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
  • ये विशिष्ट रूप से MSMEs में सीमित वित्तीय संसाधनों को पूंजी निर्माण हेतु चैनलीकृत करती हैं।

यह वित्तीय प्रणाली की महत्व इन्हें अर्थव्यवस्था को सही दिशा में अग्रसरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, भारतीय वित्तीय प्रणाली के एक अभिन्न अंग के रूप में स्थापित करता है। हालाँकि भारत में NBFCs द्वारा उपलब्ध कराया गया ऋण (credit penetration) GDP का 13% है, जो अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा कम है। यह प्रदर्शित करता है कि इनके समक्ष कुछ चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं, जिनका शीघ्र समाधान करना आवश्यक है, जैसे:

  • धन जुटाने हेतु प्रतिस्पर्धियों, बैंकों और पूंजी बाजार पर निर्भरता, जो NBFCs की संवृद्धि के लिए अहितकर है क्योंकि इन स्रोतों से बिना किसी सूचना के निधि प्राप्त होना बंद हो सकता है।
  • ऋणों के वर्गीकरण में लचीलेपन का अभाव।
  • NBFCs से बैंक ऋण के प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र वित्तीय प्रणाली की महत्व का दर्जा वापस लेना।
  • NBFCs और बैंकों में कराधान के मामले में व्यवहार में असमानता।
  • जमा स्वीकार करने वाले NBFCs के लिए न्यूनतम अनिवार्य क्रेडिट रेटिंग।

RBI द्वारा एक सुदृढ़ विनियामक फ्रेमवर्क के निर्माण किये जाने की आवश्यकता है। यह फ्रेमवर्क ऐसा हो कि NBFCs के लिए रिफाइनेंस विंडो और ऋण बीमा सहायता प्रदान करना संभव बना सके; ताकि न केवल उपर्युक्त चुनौतियों से निपटा जा सके बल्कि निम्न लागत पर निधि के सृजन में वृद्धि कर, NBFCs द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले ऋण में भी वृद्धि की जा सके। इसके अंतर्गत उधारकर्ताओं की प्रोफ़ाइल पर और वर्गीकरण के मुद्दे से निपटने के लिए वर्गीकरण के तहत आने वाली परिसंपत्तियों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। सुदृढ़ विनियामक फ्रेमवर्क के साथ-साथ NBFCs को आत्मनिर्भर बनने की भी आवश्यकता है।

NBFCs में स्थायी सुधार लाने के लिए वित्तीय समावेशन पर बनी विभिन्न समितियों, जैसे ए. सी. शाह समिति, उषा थोराट समिति, नचिकेत मोरे समिति इत्यादि की अनुशंसाओं पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है।

चीन 2025 तक आधुनिक वित्तीय प्रणाली को मजबूत बनाएगा

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद की प्रतिक्रिया की तुलना में कोविड-19 महामारी के लिए चीन की आर्थिक नीति की प्रतिक्रिया कम उत्तेजक रही है क्योंकि चीनी अधिकारियों ने वित्तीय प्रणाली में जोखिम को बढ़ाने से बचने की मांग की है। वास्तव में, चीनी अधिकारियों ने वित्तीय प्रणाली को अधिक बाजार-आधारित बनाने के लिए सुधारों को […]

February 10, 2022

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद की प्रतिक्रिया की तुलना में कोविड-19 महामारी के लिए चीन की आर्थिक नीति की प्रतिक्रिया कम उत्तेजक रही है क्योंकि चीनी अधिकारियों ने वित्तीय प्रणाली में जोखिम को बढ़ाने से बचने की मांग की है।

वास्तव में, चीनी अधिकारियों ने वित्तीय प्रणाली को अधिक बाजार-आधारित बनाने के लिए सुधारों को जारी रखा है ताकि यह चीन की अर्थव्यवस्था का बेहतर समर्थन कर सके, हालांकि राज्य वित्तीय प्रणाली में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।

इसी समय, चीन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों के लिए तेजी से महत्वपूर्ण हो गया है, मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इसके वजन के कारण, बल्कि इसलिए भी कि कुछ सीमा-पार पूंजी प्रवाह बढ़ रहे हैं।

चीन के वित्तीय नियामकों ने गुरुवार को 14वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2021-2025) में वित्तीय क्षेत्र के मानकीकरण को आगे बढ़ाने की योजना जारी की, जिसका लक्ष्य साल 2025 तक आधुनिक वित्त को अनुकूल बनाने के लिए एक वित्तीय मानक प्रणाली स्थापित करना है।

दस्तावेज़ को पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेगुलेशन, चाइना बैंकिंग एंड इंश्योरेंस रेगुलेटरी कमीशन और चाइना सिक्योरिटीज रेगुलेटरी कमीशन द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित किया गया था।

चीनी अधिकारियों ने पर्यवेक्षण, जोखिम निवारण, वित्तीय प्रौद्योगिकी, हरित वित्त और डिजिटल मुद्रा सहित कई क्षेत्रों में मानकीकरण में सुधार करने की योजना बनाई है। इस मामले में, चीन वित्तीय जोखिमों की निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी में सुधार करेगा, खासकर इंटरनेट वित्त में। क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को निर्देशित करने का प्रयास किया जाएगा।

वहीं, सार्वजनिक सुरक्षा, व्यावसायिक गोपनीयता और व्यक्तिगत गोपनीयता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय डेटा का उपयोग भी बेहतर प्रबंधन के अधीन होगा। चीनी सरकार ने साल 2016 और साल 2020 के बीच वित्तीय क्षेत्र में 137 राष्ट्रीय और औद्योगिक मानकों को प्रकाशित किया, और मानकीकरण ने वास्तविक अर्थव्यवस्था की सेवा करने, जोखिमों को दूर करने और सुधारों को गहरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(अखिल पाराशर ,चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

वित्तीय प्रणाली की महत्व

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कोरोना वायरस के बीच RBI ने तैयार किया ‘वार रूम’, जानें कैसे सुरक्षित है वित्तीय प्रणाली

rbi

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कोरोना वायरस के संक्रमण से देश की वित्तीय प्रणाली को सुरक्षित और चाक चौबंद रखने के लिये आपात स्तर पर एक ‘युद्ध-कक्ष’ तैयार किया है. इस कक्ष में रिजर्व बैंक के 90 महत्वपूर्ण कर्मचारी काम कर रहे हैं. एक अधिकारी के अनुसार, रिजर्व बैंक ने यह कक्ष ‘आकस्मिक कार्य वित्तीय प्रणाली की महत्व योजना (बीसीपी)’ के तहत तैयार किया है. यह 19 मार्च से काम कर रहा है और 24 घंटे सक्रिय है.

अधिकारी ने बताया कि इस कक्ष में रिजर्व बैंक के 90 सबसे महत्वपूर्ण लोग काम कर रहे हैं. इनके अलावा बाहरी वेंडरों के 60 मुख्य कर्मी तथा अन्य सुविधाओं के करीब 70 लोग भी कक्ष के लिये काम कर रहे हैं. रिजर्व बैंक के कर्मचारियों के साथ ही देश की वित्तीय प्रणाली की सुरक्षा के लिये कक्ष का परिचालन इस तरह नियंत्रित है कि किसी भी समय एक साथ सिर्फ 45 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं, शेष 45 को काम का बोझ बढ़ने की स्थिति के लिये सुरक्षित रखा जा रहा है.

अधिकारी ने पीटीआई -भाषा से कहा, ‘‘यह पहली बार है जब दुनिया के किसी भी केंद्रीय बैंक ने इस तरह की बीसीपी पर अमल किया है. यह हमारे इतिहास में भी पहली बार है क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध के समय भी हमने इस तरह की व्यवस्था नहीं की थी.’’ यह कक्ष जिन महत्वपूर्ण क्रियाकलापों को संभाल रहा है, उनमें ऋणपत्र प्रबंधन, भंडार प्रबंधन और मौद्रिक परिचालन शामिल है. बीसीपी के तहत रिजर्व बैंक के अन्य डेटा सेंटर स्ट्रक्चर्ड फाइनेंशियल मैसेजिंग सिस्टम (एसएफएमएस), रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (एनईएफटी) जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं संभाल रहे हैं.

इनके अलावा ई-कुबेर की भी व्यवस्था की गयी है, जिसके तहत केंद्र तथा राज्य सरकारों के लेन-देन और एक बैंक से दूसरे बैंक के लेन-देन आदि को संभाला जा रहा है. अधिकारी ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मॉडल है जिसे हमारी वित्तीय प्रणाली में तथा संभवत: पूरी दुनिया में पहली बार अमल में लाने का प्रयास किया जा रहा है. सामान्य बीसीपी सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर की दिक्कतों, आग लगने तथा प्राकृतिक आपदाओं के लिये होता है. इस तरह की योजना किसी के पास नहीं है जैसी रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस महामारी के लिये तैयार की है.’’

सामान्यत: रिजर्व बैंक अरबों लेन-देन का प्रबंधन करता वित्तीय प्रणाली की महत्व है और इसके केंद्रीय व 31 क्षेत्रीय कार्यालयों में करीब 14 हजार लोग काम करते हैं। जिन महत्वपूर्ण सेवाओं को कक्ष से संभाला जा रहा है, इनका प्रबंधन करीब 1,500 लोग मिलकर करते हैं. आरबीआई के कर्मचारी संगठन के सूत्रों के अनुसार, एक सप्ताह से अधिक समय से केंद्रीय कार्यालय में महज 10 प्रतिशत कर्मचारी ही आ रहे हैं.

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