USD कीमत का इतिहास

NZD/USD - न्यूजीलैंड डॉलर अमरीकी डॉलर
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NZD/USD - न्यूजीलैंड डॉलर अमरीकी डॉलर समाचार
अंबर वारिक द्वारा Investing.com- ज्यादातर एशियाई मुद्राएं गुरुवार को बढ़ीं, जबकि फेडरल रिजर्व के अपेक्षाकृत नरम संकेतों के कारण डॉलर पीछे हट गया, उम्मीदें बढ़ गईं कि अमेरिकी.
पीटर नर्स द्वारा Investing.com - बुधवार को शुरुआती यूरोपीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर कमजोर हो गया, फेडरल रिजर्व की नवीनतम बैठक के मिनट जारी होने से पहले पीछे हट गया, जो भविष्य में.
अंबर वारिक द्वारा Investing.com-- चीन में बढ़ते COVID-19 मामलों और नए प्रतिबंधों की शुरुआत के कारण अधिकांश एशियाई मुद्राओं में बुधवार को मामूली बदलाव आया, जबकि केंद्रीय बैंक द्वारा.
NZD/USD - न्यूजीलैंड डॉलर अमरीकी डॉलर विश्लेषण
S&P 500 ने अब साल के पहले 178 दिनों के कारोबार में अपना छठा सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया है यू.एस. बेंचमार्क इंडेक्स भी रिकॉर्ड पर एक वर्ष में सबसे अधिक नकारात्मक शुक्रवार को.
बैंक ऑफ कनाडा ने बुधवार को निवेशकों को चौंका दिया, ब्याज दरों में 100bp की वृद्धि की, जो 24 वर्षों में केंद्रीय बैंक के लिए एक महीने की सबसे बड़ी वृद्धि है। बैठक में जाने से.
अगले 24 घंटों में वैश्विक तंगी का दौर जारी है और दो केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाने के लिए तैयार हैं। एशिया सत्र में, रिज़र्व बैंक ऑफ़ न्यूज़ीलैंड से व्यापक रूप से अपनी लगातार.
तकनीकी सारांश
कैंडलस्टिक पैटर्न
NZD/USD कोट्स
आर्थिक कैलेंडर
केंद्रीय बैंक
करेंसी एक्स्प्लोरर
NZD/USD आलोचनाए
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डॉलर के मुकाबले भले ही गिर रहा है रुपया लेकिन पाउंड, यूरो, स्विस फ्रैंक के मुकाबले हुआ इतना ज्यादा मजबूत
Indian rupee Vs other currency: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया गिर रहा है, लेकि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है, भारत दूसरी करंसी के मुकाबले बेहतर स्थिति में है. दूसरे देशों की करंसी के हालात क्या है, चलिए जान लेते हैं
TV9 Bharatvarsh | Edited By: अंकित गुप्ता
Updated on: Jul 11, 2022, 1:05 PM IST
डॉलर (Dollar) के मुकाबले भारतीय रुपया (Indian Currency) गिर रहा है, लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है, हम ग्लोबल इकॉमनी का हिस्सा हैं, ऐसे में दुनियाभर में होने वाले घटनाक्रम का असर हम पर भी पड़ेगा, लेकिन भारत दूसरी करंसी के मुकाबले बेहतर स्थिति में है. पिछले एक महीने यानी 11 जून से 11 जुलाई के बीच भारतीय करंसी की तुलना दूसरे देशों की करंसी (Global Currency) से करें तो क्या हालात रहे, चलिए जान लेते हैं…
ब्रिटिश करंसी: पिछले एक महीने में ब्रिटिश करंसी पाउंड (Pound) की वैल्यू भी गिरी है. 11 जुलाई को 1 पाउंड की वैल्यू 95 रुपये थी जो 14 जून को गिरकर 93.55 तक पहुंच गई. पिछले एक महीने में 16 जून को इसमें सर्वाधिक बढ़त 96.35 तक देखी गई. वर्तमान में यह करंसी भी गिरावट की ओर है. 11 जुलाई को इसकी वैल्यू 95.05 रही.
यूरो करंसी: सभी बड़ी देशों की अर्थव्यवस्था की तुलना करें तो यूरो करंसी (Euro Currency) सबसे ज्यादा गिरावट की ओर है. 11 जुलाई को 1 यूरो की वैल्यू 82.19 रुपये थी. 83.12 रुपए की वैल्यू के साथ 28 जून को यह अपने सर्वाधिक ऊंचाई पर थी. 4 जुलाई से 11 जुलाई तक इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई. 11 जुलाई को एक यूरो गिरकर 80.85 रुपये तक पहुंच गया.
स्विस करंसी: अगर स्विस करंसी फ्रैंक की तुलना करें तो 11 जून को भारतीय मुद्रा में इसकी कीमत 79.13 थी. पिछले एक महीने में 29 जून USD कीमत का इतिहास को इसने सर्वाधिक 82.74 के आंकड़े को छुआ, लेकिन स्विस करंसी की वैल्यू फिर गिरावट की ओर है. 11 जुलाई को यह गिरकर 81.13 तक पहुंच गई.
ऑस्ट्रेलियन डॉलर: पिछले एक महीने में ऑस्ट्रेलियन डॉलर में भी गिरावट दर्ज की गई है. 11 जून को 1 ऑस्ट्रेलियन डॉलर की वैल्यू 55.04 रुपये थी. एक माह में अंदर इसकी वैल्यू में कई उतार-चढ़ाव देखे गए. वर्तमान में यह करंसी भी गिरावट की ओर है. 11 जुलाई को एक यूरो की वैल्यू 54.09 रुपये रही. (नोट: 11 जुलाई के आंकड़े दोपहर 12 बजे तक के हैं.
अभी और रुलाएगी महंगाई
बाजार में मंहगाई घटने का नाम नहीं ले रही है, पर महंगाई और बढ़ने के कारण बढ़ते जा रहे हैं. सरकार महंगाई कम होने के प्रयासों के दावे करती है कि महंगाई बढ़ने का एक और नया कारण सामने आकर सरकारी दावों की पोल खोल देता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य घटता जा रहा है. अगर यही हाल रहा तो जो थोड़ी बहुत मंहगाई घटने के आसार दिख रहे थे, वह फिर से बढ़ जाएगी. कैसे? जरा इधर गौर कीजिए.
11 जून को बाजार के खुलते ही डॉलर के मुकाबले रुपया फिर गिरकर 58.95 के स्तर पर पहुंच गया. डॉलर के मुकाबले रुपए की लगातार घटती यह कीमत अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. विशेषज्ञों की मानें आने वाले दिनों में इसके और गिरने के आसार हैं. 1966 से पहले तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाउंड में मापा जाने वाला रुपया जब 1966 से डॉलर में मापा जाने लगा तो 1 डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत थी मात्र 7.5 रुपए. उस वक्त महंगाई भी इतनी थी. आप 10 रुपए में कई सामान ले आते. आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1 डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत है 58.95 रुपए. आज महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि 10 रुपए में एक किलोग्राम तो क्या, शायद आधा किलोग्राम सब्जी भी न आए. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए का घटता मूल्य चिंतित करने वाला है.
कमजोर वैश्विक रुख और आयातकों द्वारा डॉलर की मांग बढ़ने से रुपये के मूल्य में गिरावट आती है. अमेरिका में नए आर्थिक आंकड़ों को लागू USD कीमत का इतिहास किए जाने के बाद यह गिरावट और बढ़ रही है, रुकने का नाम नहीं ले रही. लगातार पांच सप्ताह से यह स्थिति संभलने की बजाय और बदतर USD कीमत का इतिहास होती जा रही है. पर इसकी मुख्य कारण आयात-निर्यात के तत्वों में छुपा है. देश में ज्यादा आयात करने से विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा डॉलर बाहर भेजने से उसकी मांग बढ़ती है और निर्यातों के बढ़ने और विदेशी निवेशकों द्वारा विदेशी मुद्रा लाए जाने से डॉलरों की पूर्ति बढ़ती है. ऐसे में जब भी आयातक ज्यादा आयात करते हैं या विदेशी निवेशक डॉलर बाहर भेजते हैं तो स्वाभाविक तौर पर रुपया कमजोर होता है यानी प्रत्येक डॉलर के लिए अब ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं.
गिरता रुपया बढ़ाएगा महंगाई
अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की घटती कीमतें घरेलू बाजार में महंगाई का बड़ा सबब हैं. घरेलू बाजार में इससे तेल, पेट्रोल की कीमतों में बढ़त की आशंका बढ़ जाती है. आप सोचेंगे रुपए के मूल्य से पेट्रोल, तेल की कीमतों का क्या वास्ता? पर है. भारत अपनी कुल जरूरत के 80 प्रतिशत तेल के लिए आयात पर निर्भर है. इसके अलावे एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईरान के अलावे बाकी सभी देश डॉलर में व्यापार करते हैं. ईरान ही एकमात्र देश है जो तेल व्यापार रुपयों के मूल्य में करता है. पर भारत की विडंबना देखो कि अमेरिका के दबाव में यह ईरान से कच्चे तेल के आयात में बहुत अधिक कमी कर चुका है. इस प्रकार अन्य देशों पर कच्चे तेल के निर्यात के लिए भारत की निर्भरता बढ़ी है.
1960 के बाद से भारत में कच्चे तेल की मांग में भी बहुत वृद्धि हुई है. इस प्रकार डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य घटने से तेल के आयात में सरकार को पहले की तुलना में अधिक रुपए खर्च करने पड़ेंगे. इससे जाहिर है घरेलू बाजार में भी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य बढ़ने की आशंका बनी रहेगी क्योंकि सरकारी घाटे की क्षति पूर्ति के लिए सरकार के पास यही विकल्प बचता है. इसके अलावे आयातों पर भी कर बढ़ेगा. इससे छोटे आयातकों के व्यापार को नुकसान पहुंचेगा. इसका सीधा असर घरेलू बाजार में उत्पादों के मूल्य वृद्धि के रूप में दिखेगा.
यूं तो किसी भी देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उसकी करेंसी का मूल्य गिरना कभी भी फायदेमंद नहीं हो सकता. विभिन्न आयामों पर यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था को तोड़ने का काम करती है. महंगाई बढ़ने से आम जनता को सीधे तौर भी इसके दुष्प्रभावों से रूबरू होना पड़ता है. फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें इससे लाभ पहुंचता है, जैसे; रिजर्व बैंक और वैसे आम भारतीय जिनके रिश्तेदार विदेशों में रहते हैं. रिजर्व बैंक सोने के आयात पर कर बढ़ा सकता है. इसके अतिरिक्त अन्य आयात-निर्यात की वस्तुओं पर कर लगाने से रिजर्व बैंक को लाभ होगा. इसके अलावे जिन आम भारतीयों के कमाऊ परिजन विदेश में हैं, उन्हें भी डॉलर एक्सचेंज करवाने पर उसके मुकाबले ज्यादा रुपया मिलेगा.
रुपये के मुकाबले पहली बार इतना महंगा हुआ डॉलर
चालू वित्त वर्ष 2018 में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 10% गिर गया है। सोमवार को जब शेयर बाजार बंद हुए तो एक डॉलर की कीमत 69.9287 रुपये थी।
घरेलू मुद्रा (रुपए) ने तुर्की आर्थिक संकट के पीछे सोमवार को भारी मूल्यह्रास दर्ज किया जिसके बाद अधिकांश एशियाई मुद्राओं में मंदी देखी गई।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। रुपए की कीमत आज तक के इतिहास में पहली बार इतनी कम हुई है। डॉलर के मुकाबले रुपया 70.07 के स्तर तक पहुंच गया USD कीमत का इतिहास है। सोमवार को जब शेयर बाजार बंद हुए तो एक डॉलर की कीमत 69.9287 रुपये थी। घरेलू मुद्रा (रुपए) ने तुर्की आर्थिक संकट के पीछे सोमवार को भारी मूल्यह्रास दर्ज किया जिसके बाद अधिकांश एशियाई मुद्राओं में मंदी देखी गई। चालू वित्त वर्ष 2018 में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 10% गिर गया है।
शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया आज (14 अगस्त) 23 पैसे सुधरकर 69.68 पर खुला और इस तरह वह अपने सर्वकालिक निम्नस्तर 69.91 से ऊपर आया। कल डॉलर के मुकाबले रुपया 1.57% गिरकर 69.91 के स्तर पर पहुंच गया था जो उसका सर्वकालिक निम्न स्तर था। इसकी प्रमुख वजह तुर्की मुद्रा को लेकर बनी चिंताएं है जिससे वैश्विक आर्थिक संकट आने का डर है। आज सुबह में कुछ वृहद आर्थिक आंकड़ों में राहत के रुझान दिखने के बाद घरेलू मुद्रा में सुधार देखा गया।
इसके अलावा शेयर बाजारों की अच्छी शुरुआत से भी रुपया को समर्थन मिला। हालांकि अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती से रुपया में यह सुधार थम गया। मुद्रा कारोबारियों के अनुसार खुदरा मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़ों से घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावना जगी है जिससे रुपये में यह सुधार देखा गया। संभावना है कि अगली मौद्रिक समीक्षा में भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत ब्याज दरों को न बढ़ाएं। जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति 4.17% रही है जो पिछले नौ महीने का निम्न स्तर है।
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तुर्की की मुद्रा लीरा के डूबने का असर दुनियाभर में पड़ा है और घरेलू मुद्रा रुपये भी इससे अछूती नहीं है। शुरुआती कारोबार में मामूली बढ़त बनाने के बाद रुपया आज डॉलर के मुकाबले घटकर 70.09 पर पहुंच गया। यह इसका ऐतिहासिक रिकॉर्ड निम्नस्तर है। तुर्की के आर्थिक संकट से फिर एक बार वैश्विक मंदी आने का डर है जिसका असर दुनियाभर के बाजारों पर देखा जा सकता है। इसने विश्व स्तर पर निवेशकों के रुख को प्रभावित किया है और वह डॉलर को एक सुरक्षित निवेश के तौर पर देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि तुर्की लीरा का संकट पिछले हफ्ते से लगातार बना हुआ है।
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20 साल में पहली बार डॉलर के बराबर आई यूरो की कीमत
बिजनेस डेस्कः यूरोपीय यूनियन की करेंसी यूरो की कीमत में इस साल करीब 12 फीसदी गिरावट आई है और इसका एक्सचेंज रेट 20 साल में पहली बार अमेरिकी डॉलर के बराबर पहुंच गया है। दोनों करेंसीज में एक सेंट से भी कम अंतर रह गया है। सोमवार को यूरो की कीमत करीब 1.004 डॉलर पर आ गई। यूरो में यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब यूरोपियन देश इस चिंता की गिरफ्त में है कि ऊर्जा संकट की वजह से यह क्षेत्र मंदी का शिकार होगा और दूसरी तरफ अमेरिकी डॉलर मजबूत होता जा रहा है इस उम्मीद में कि फेडरल रिजर्व अपने साथियों की तुलना में तेजी से दरों में इजाफा करेगा। युद्ध से पहले यूरोपीय यूनियन की 40 फीसदी गैस रूस से आती थी लेकिन अब यह स्थिति बदल गई है।
यूरोपीय देश रूसी तेल और गैस पर अपनी निर्भरता कम करने पर काम कर रहे हैं। साथ ही रूस ने भी कुछ यूरोपीय देशों को गैस की सप्लाई कम कर दी है। हाल में उसने जर्मनी को Nord Stream पाइपलाइन के जरिए दी जाने वाली गैस की सप्लाई में 60 फीसदी कटौती कर दी थी। ऊर्जा संकट के साथ-साथ यूरोप आर्थिक सुस्ती के दौर से भी गुजर रहा है। European Central Bank ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए इस महीने ब्याज दरों में इजाफा करने के संकेत दिए हैं। साल 2011 के बाद यह पहला मौका है जब यूरोप का केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने जा रहा है।
अमेरिका फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) हाल में इंटरेस्ट रेट्स में 75 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी की है और आगे इसमें इस महीने और बढ़ोतरी का संकेत दिया है। Deutsche Global के हेड ऑफ एफएक्स रिसर्च George Saravelos ने पिछले हफ्ते एक नोट में कहा कि अगर यूरोप और अमेरिकी मंदी की चपेट में आते हैं तो यूएस डॉलर की तरफ रुझान और बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यूरो की कीमत 0.95 डॉलर से 0.97 डॉलर तक जा सकती है। यह यूरोप घूमने की योजना बना रहे अमेरिकी लोगों के लिए अच्छी खबर हो सकती है लेकिन यह इकनॉमिक ग्लोबल स्टैबिलिटी के लिए अच्छी न्यूज नहीं होगी।
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