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समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना

समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना
नवभारत टाइम्स 25-11-2022

वायदा बाजार में सोना 154 रुपये टूटा

नवभारत टाइम्स लोगो

नवभारत टाइम्स 25-11-2022

नयी दिल्ली, 25 नवंबर (भाषा) सटोरियों के सौदों का आकार घटाने से वायदा कारोबार में शुक्रवार को सोने की कीमत 154 रुपये टूटकर 52,517 रुपये प्रति 10 ग्राम पर रह गयी।

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में दिसंबर में आपूर्ति वाले अनुबंध का भाव 154 रुपये यानी 0.29 प्रतिशत की गिरावट के साथ 52,517 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गया। इसमें 3,842 लॉट का कारोबार हुआ।

बाजार विश्लेषकों ने कहा कि कारोबारियों द्वारा अपने सौदे की कटान करने से सोना वायदा कीमतों में गिरावट आई।

वैश्विक स्तर पर न्यूयॉर्क में सोना 0.43 प्रतिशत की तेजी के साथ 1,767.90 डॉलर प्रति औंस हो गया।

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स्टॉक लिमिट लगाए जाने की खबरों के कारण गिर गए खाद्य तेलों के दाम, सरसों तिलहन की कीमतों में तेजी बरकरार

तेल कारोबार के इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ है कि सूरजमुखी तेल का भाव आयातित पामोलीन से सस्ता है. उन्होंने कहा कि सूरजमुखी का तेल आज से छह महीने पहले सरसों तेल से 40 रुपए प्रति किलो ज्यादा था और पामोलीन से 55-60 रुपए प्रति किलो महंगा था.

स्टॉक लिमिट लगाए जाने की खबरों के कारण गिर गए खाद्य तेलों के दाम, सरसों तिलहन की कीमतों में तेजी बरकरार

देश में खाद्य तेल-तिलहनों पर स्टॉक लिमिट लगाए जाने की खबरों के कारण कारोबारियों और सरसों मिलों द्वारा अपने सौदे खाली करने से सरसों तेल की कीमतों में गिरावट दर्ज हुई समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना है. वहीं घरेलू बाजार की कीमतों के मुकाबले आयात सस्ता पड़ने से सोयाबीन की कीमतों में भी गिरावट आई है.

बाजार विशेषज्ञों ने बताया समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना कि सरकार ने राज्यों से खाद्य तेलों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और जमाखोरी पर अंकुश लगाने के मकसद से स्टॉक लिमिट के विकल्प पर विचार करने का अनुरोध किया है, जिसके बाद इस बंदिश के लागू होने के डर से कारोबारियों ने अपने स्टॉक खाली कर लिए. इसका असर भी खाने के तेल के भाव पर पड़ा है.

सरसों का भाव बढ़ा

उन्होंने कहा कि इसके बाद सरसों की मांग फिर से कायम होने और स्टॉक समाप्त होने की आशंका से सरसों तेल-तिलहन में सुधार का रुख कायम हो गया. सरसों की बढ़ती मांग के बीच सलोनी शम्साबाद में सरसों का दाम पहले के 8,800 रुपए से बढ़ाकर 9,200 रुपए क्विंटल कर दिया गया. इसी प्रकार जयपुर में भी सरसों के दाम में 250 रुपए क्विंटल की वृद्धि कर दी गई.

पामोलीन कांडला तेल का आयात करना महंगा पड़ता है और इस तेल के आयात में 3-4 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान है. मांग कमजोर होने से पहले इस तेल को अधिक नुकसान के साथ बेचा जाता था जिसे आयातकों ने कमतर घाटे पर बेचने का फैसला किया जिसकी वजह से पामोलीन कांडला तेल में सुधार दिख रहा है.

पामोलिन से सस्ता हुआ सूरजमुखी

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि तेल कारोबार के इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ है कि सूरजमुखी तेल का भाव आयातित पामोलीन से सस्ता है. उन्होंने कहा कि सूरजमुखी का तेल आज से छह महीने पहले सरसों तेल से 40 रुपए प्रति किलो ज्यादा था और पामोलीन से 55-60 रुपए प्रति किलो महंगा था. सूरजमुखी के आयात पर लगने वाला शुल्क 46-47 रुपए प्रति किलो था. वह अब घटकर सात रुपए प्रति किलो रह गया है.

देश में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में सूरजमुखी तेल की खपत वैसे ही होती है, जैसे उत्तर भारत में सरसों की. सरकार को यह देखना चाहिए कि सूरजमुखी के दाम कम होने के बावजूद उपभोक्ताओं को यह सस्ते में क्यों उपलब्ध नहीं है.

उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में बिनौला की नई फसल की आवक बढ़ने और गुजरात और राजस्थान में मूंगफली की नई फसलों की आवक बढ़ने से बिनौला तेल और मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट आई.

दोगुना बढ़ सकता है सरसों का उत्पादन

सूत्रों ने कहा कि देश में जाड़े के मौसम और शादी-विवाह के सत्र के दौरान सरसों के मांग बढ़ने की उम्मीद है और इस बार किसानों ने सरसों खेती का रकबा भी बढ़ाया है और सरसों का वायदा कारोबार बंद रहने से इसका उत्पादन लगभग दोगुना बढ़ सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार को सरसों की तरह बाकी खाद्य तेलों के वायदा कारोबार पर भी अंकुश लगाने के बारे में सोचना चाहिये जो तिलहन तेल के मामले में आत्मनिर्भरता की राह की बड़ी बाधा है.

सूत्रों ने कहा कि विदेशों से आयातित 75 से 80 प्रतिशत तेलों पर स्टॉक की सीमा नहीं है, तो घरेलू तेलों पर इसे लगाने का कोई औचित्य नहीं है समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना क्योंकि किसानों की नई सोयाबीन और मूंगफली की फसल की आवक शुरू हो गई है. सरकार को इसके बजाय इनकी कीमतों की निगरानी करनी चाहिए.

विदेशी बाजारों में सामान्य कारोबार के बीच अधिकांश तेल-तिलहनों के भाव स्थिर

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नवभारत टाइम्स 3 घंटे पहले

नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) विदेशी बाजारों समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना में कारोबार के सामान्य रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली जबकि सरसों और मूंगफली तेल-तिलहन, सोयाबीन तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ), बिनौला, पामोलीन तेल के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे।

बाजार सूत्रों ने कहा, ‘‘देश में खाद्य तेल आयात की कोटा प्रणाली के कारण बाकी आयात प्रभावित होने की वजह से खाद्य तेलों की आपूर्ति घट गई है जिससे सूरजमुखी और सोयाबीन डीगम के थोक भाव बढ़ गये हैं। थोक में सोयाबीन डीगम सात रुपये किलो और सूरजमुखी 20-22 रुपये किलो प्रीमियम दाम के साथ बेचे जा रहे हैं। जब विदेशों में खाद्य तेलों के दाम काफी अधिक थे तब सरकार ने कोटा प्रणाली के तहत एक निश्चित मात्रा में शुल्क मुक्त आयात की छूट दी थी लेकिन अब इन आयातित तेलों के दाम लगभग आधा टूट गये हैं और कोटा प्रणाली लागू होने के बाद बाकी आयात ठप हो जाने के बाद इन आयातित तेलों की बिक्री थोक बाजार में प्रीमियम के साथ ऊंचे दामों पर की जा रही है। सोयाबीन तेल में आई गिरावट का कारण इस तरह समझा जाना चाहिये कि शार्ट सप्लाई की वजह से थोक में ऊंचे दाम पर खाद्य तेल की बिक्री करने से व्यापारियों को जो पहले मुनाफा मिलता था वह पहले के मुकाबले कुछ घट गया है। लेकिन इसकी तुलना में खुदरा में खाद्य तेलों के भाव में अधिक कमी नहीं आई है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार ने तेल कीमतों में नरमी लाने के मकसद से कोटा प्रणाली लागू की थी, लेकिन कम आपूर्ति की स्थिति पैदा होने से ग्राहकों को खाद्य तेल प्रीमियम पर महंगे में खरीदना पड़ रहा है। आगे के महीनों में खाद्य तेलों के आयात का भाव कहीं और सस्ता बैठ रहा है और इस तरह से उस वक्त भी विदेशों में भाव आगे और घटे तो फिर से शार्ट सप्लाई की स्थिति बन सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि देश में सूरजमुखी की बुवाई होनी है और ऐसी असमंजस की स्थिति में कौन किसान इस तिलहन की बुवाई का जोखिम लेगा जबकि दाम पहले से काफी टूटे पड़े हैं। लेकिन कोटा प्रणाली तेल-तिलहन कारोबार को ‘दीमक’ की तरह नष्ट करने में लगी है इसे जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिये।’’

सूत्रों ने कहा कि प्रमुख तेल संगठन सोपा ने वायदा कारोबार नहीं खोलने का पक्ष लिया है जबकि कुछ अन्य संगठन इसे खोलने के हिमायती हैं। इनमें से किसी संगठन को बाजार की उपर्युक्त स्थिति के बारे में सरकार को आगाह समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना करना चाहिये जो उनकी जिम्मेदारी बनती है। सूत्रों ने कहा कि कोटा प्रणाली न होने के कारण पाम और पामोलीन में ज्यादा उठापटक नहीं है लेकिन यह भारी घट-बढ़ सिर्फ सूरजमुखी और सोयाबीन में ही है। उन्होंने कहा कि इसी वायदा कारोबार में 2020-21 के लगभग अक्टूबर-नवंबर के दौरान जब किसानों की फसल आई थी तो इसका भाव लगभग 4,400-4,600 रुपये क्विंटल था लेकिन बाद में इसी सोयाबीन का दाम लगभग 10,500-11,000 रुपये क्विंटल कर दिया गया था। वायदा कारोबार का सहारा लेकर सटोरिये बाजार को अस्थिर करने और देश के समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना आत्मनिर्भरता के सपने को चोट पहुंचाते हैं।

सूत्रों ने कहा कि देश के प्रमुख तेल संगठनों को सरकार को जमीनी हकीकत भी बताना चाहिये कि सस्ते खाद्य तेलों के आयात से देश के तेल तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य गंभीर रूप से प्रभावित होगा और इस स्थिति को बदलने के लिए इन सस्ते आयातित तेलों पर पहले की तरह और हो सके तो अधिकतम सीमा तक आयात शुल्क लगा दिया जाना चाहिये। अगर खाद्य तेलों के दाम कम रहे तो खल की भी उपलब्धता कम हो जायेगी।

सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन - 7,100-7,150 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

कॉटन में इस महीने 6% तक आ चुकी है गिरावट, मौसम की चाल आगे तय करेगी भाव

14 मई के वायदा कारोबार के दौरान इसमें एक बार तेज गिरावट आई और फिर उतनी ही तेजी भी देखी गई.

कॉटन में इस महीने 6% तक आ चुकी है गिरावट, मौसम की चाल आगे तय करेगी भाव

महीने के अंत तक कॉटन और लुढ़क सकता है. (Image- Reuters)

कॉटन के भाव में इस महीने अब तक करीब 6 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है. इस साल कॉटन के बंपर पैदावार के अनुमान के बाद इसके भाव में तेजी से गिरावट आई लेकिन मौसम को लेकर पूर्वानुमान से एक बार फिर कीमतों में उछाल आया. एक्सपर्ट का मानना है कि इस बार बंपर उत्पादन के कारण समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना कॉटन की कीमत इस महीने के अंत तक 19 हजार रुपये प्रति गांठ (170 किग्रा) के भाव पर आ सकता है. हालांकि उनका यह समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना भी मानना है कि अगर इस बार मानसून सही नहीं रहता है तो 2-3 महीने में भाव दोबारा 21-22 हजार रुपये का स्तर छू सकता है. गुरुवार को वायदा कारोबार में यह 21080 रुपये के भाव पर ट्रेड कर रहा है.

14 मई के वायदा कारोबार में गिरावट के बाद उछाल

14 मई के वायदा कारोबार के दौरान इसमें एक बार तेज गिरावट आई और फिर उतनी ही तेजी भी देखी गई. 14 मई के वायदा कारोबार में कॉटन 20,520 रुपये प्रति गांठ (170 किग्रा) के भाव पर खुला था और कारोबार के दौरान यह समाप्ति से पहले वायदा कारोबार बंद करना 19,950 रुपये प्रति गांठ के स्तर पर चला गया. हालांकि इसके बाद इसके भाव में तेजी देखी गई और दिन के कारोबार की समाप्ति पर यह पिछले बंद की तुलना में 0.34 फीसदी अधिक 20,850 रुपये प्रति गांठ के भाव पर पहुंचकर बंद हुआ.

आंकड़ों से गिरे भाव, मौसम के अनुमान से बिगड़ी चाल

यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (यूएसडीए) के आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में कॉटन का वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा. आंकड़ों में भारत में भी उत्पादन बढ़ने की बात कही है. इन आंकड़ों के जारी होने के बाद वायदा कारोबार में कॉटन के भाव गिरते गए. हालांकि इसके बाद स्काईमेट के मौसम पूर्वानुमान के कारण इसके भाव फिर चढ़ने लगे. स्काईमेट के मुताबिक इस बार सामान्य से कम बारिश हो सकती है. इसकी वजह से कॉटन के भाव एक बार फिर से बढ़ने लगे और 14 मई के इंट्रा-डे कारोबार के दौरान यह पिछले बंद की तुलना में 0.34 फीसदी अधिक भाव पर बंद हुआ.

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बुवाई बढ़ने के कारण 2019-20 में 14 साल का सर्वाधिक कॉटन

यूएसडीए के आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में कॉटन का उत्पादन पिछले 14 साल में सबसे अधिक करीब 12.55 करोड़ गांठ होगा. कॉटन की बुवाई 7 साल के सर्वाधिक क्षेत्रफल में हुई है जिसके कारण इसके रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है. ब्राजील में इसका रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और अमेरिका में भी 14 साल का रिकॉर्ड कॉटन उत्पादित हुआ. रिकॉर्ड उत्पादन की तुलना में मांग कम होने के कारण भाव में नरमी देखने को मिल रही है.

सीएआई के पूर्वानुमान ने चढ़ाए थे कॉटन के भाव

अजय केडिया के मुताबिक कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) का अनुमान है कि इस बार 310 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन होगा. इससे पहले अप्रैल में सीएआई ने 321 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान लगाया था. यह अनुमान भी संशोधित था. इसके पहले सीएआई ने इस बार 335 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान लगाया था. पिछले साल करीब 365 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था. अजय केडिया ने बताया कि इससे पहले 2009 में 305 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था. सीएआई द्वारा कॉटन के कम उत्पादन के अनुमान से इसके भाव तेजी से चढ़ रहे थे जिस पर ट्रेड वार के कारण ब्रेक लग गया. भारत में कॉटन सबसे अधिक गुजरात, राजस्थान, पंजाब हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में होता है. पिछले सत्र में 370 लाख गांठ कपास उत्पादित हुआ था.

ट्रेड वार के कारण फिसली कीमतें

अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार के कारण कॉटन की कीमत बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि कुछ समय पहले ट्रेड वार के धीमे पड़ने की संभावना को लेकर वायदा कारोबार में कॉटन के भाव तेजी से चढ़े थे लेकिन एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्रेड वार को गति देकर कॉटन के भाव में उछाल को रिवर्स गियर में डाल दिया. ट्रेड वार के कारण चीन द्वारा कॉटन की खरीद बुरी तरह प्रभावित हुई है जिसके कारण इसके भाव फिसल गया. कॉटन का सबसे बड़ा खरीददार दुनिया में चीन है और अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक.

महीने के अंत तक और लुढ़क सकता है कॉटन

ब्रोकरेज फर्म एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट, रिसर्च (करंसी एंड फॉरेक्स) अनुज गुप्ता के मुताबिक इस महीने के अंत तक घरेलू वायदा बाजार में कॉटन के भाव 19 हजार रुपये प्रति गांठ तक लुढ़क सकते हैं और वैश्विक कारोबार में यह 50 सेंट के स्तर तक पहुंच सकता है. अनुज गुप्ता का यह भी कहना है कि अगर स्काईमेट का पूर्वानुमान सही साबित होता है तो इसके भाव 2-3 महीने में 21-22 हजार रुपये के भी स्तर को पार कर सकते हैं. केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का अनुमान है कि स्काईमेट के असर से कॉटन के भाव बढ़ने की पूरी संभावना है लेकिन ट्रेड वार के कारण इसके भाव पर अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा.

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