एक Price Gap क्यों बनता हैं?

क्या होती है टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling)? दांतों के लिए क्यों है जरूरी
दांतों की स्केलिंग (teeth scaling) आमतौर पर रूट प्लानिंग के साथ ही की जाती है। सरल शब्दों में इसे दांतों की सफाई के रूप में भी जाना जाता है। इसमें दांतों की समस्याओं जैसे- दांत की मैल (tartar), प्लाक (बैक्टीरिया से बनने वाली हल्के पीले रंग की परत) और दाग-धब्बे (stains) का इलाज किया जाता है। टीथ स्केलिंग और रूट प्लानिंग से पुरानी पीरियोडॉन्टल बीमारी (मसूड़ों की बीमारी) के इलाज में मदद मिलती है। तो आइए जानते हैं इस आर्टिकल में कि टीथ स्केलिंग के बारे में। यह कैसे होती है? इसके क्या फायदे हैं?
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) क्यों जरूरी है?
यह प्रक्रिया आपके मुंह को हेल्दी रखती है। अगर आपके मुंह में गंभीर पीरियोडॉन्टल बीमारी के लक्षण हैं, तो डेंटिस्ट दांतों की स्केलिंग और रूट प्लानिंग की सलाह देते हैं। यूं तो हम अपने दांत ब्रश से साफ करते हैं पर टूथब्रश से दांत के हर कोने की सफाई नहीं हो पाती है। स्केलिंग की मदद से दांतों के चारों तरफ जमी हुई सख्त गंदगी को हटाया जाता है और यदि यह गंदगी समय के साथ साफ न की जाए, तो दांतों की अन्य बीमारियां हो ने की आशंका बढ़ जाती है।
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) कैसे की जाती है ?
दांतों में जमी जिद्दी गंदगी को बाहर निकालने का ‘स्केलिंग’ एक टेक्निकल और साइंटिफिक जरिया है। दांतों की स्केलिंग के लिए दो विधियां अपनाई जाती हैं। एक विधि में डॉक्टर हाथ से उपकरण के द्वारा प्लाक को साफ करता है, दूसरी विधि में डेंटिस्ट एक अल्ट्रासोनिक उपकरण (ultrasonic) के द्वारा दांतों की सफाई करता है। यह एकदम दर्दरहित प्रक्रिया है।
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) के फायदे
टीथ स्केलिंग से डेंटिस्ट आपके मुंह की अच्छे से जांच कर पाता है क्योंकि ज्यादातर शारीरिक बीमारियों के लक्षण मुंह में दिखाई देते हैं, इसीलिए उन बीमारियों को समय से एक Price Gap क्यों बनता हैं? पहले पता लगाने का मौका भी मिलता है। टीथ स्केलिंग से दांतों और मसूड़ों के बीच गैप भी कम किया जा सकता है। मसूड़े में सूजन और मसूड़ों की बीमारी इंसान के दिल तथा रक्त वाहिकाओं संबंधी (cardiovascular) हेल्थ पर सीधा प्रभाव डालती है। टीथ स्केलिंग की सहायता से दांतों के मैल को हटाकर स्ट्रोक (stroke), हाई बीपी High blood pressure), हार्ट डिजीज, डायबिटीज और कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मुंह की दुर्गंध से निजात दिलाएंगी टीथ स्केलिंग
हां, अगर कोई व्यक्ति काफी समय से सांस की बदबू (जिसे हैलिटोसिस के नाम से जानते है) या मुंह की दुर्गंध से पीड़ित हैं, तो इससे निजात पाने के लिए भी डेंटल स्केलिंग (dental scaling) प्रभावी है। इस हिसाब से ओरल हाइजीन को मेंटेन करके कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं (health problems) के होने की संभावना कम की जा सकती है।
टीथ स्केलिंग (Teeth Scaling) के बाद सावधानियां
टीथ स्केलिंग, रूट प्लानिंग (root planning) के बाद हो सकता है। आप हल्का-सा दर्द मुंह के आसपास महसूस कर सकते हैं। कुछ लोगों में प्रक्रिया के कुछ दिनों बाद तक सूजन या ब्लीडिंग भी देखने को मिलती है, जिसको कम करने के लिए डेंटिस्ट मेडिकेटेड टूथपेस्ट (medicated toothpaste) और माउथवॉश (mouthwash) का उपयोग करने की सलाह देते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि डेंटल स्केलिंग (dental scaling) के बाद दांतों की सफाई के लिए आप डॉक्टर द्वारा बताई गई प्रक्रियाओं का उपयोग करें।
दांतों की साफ-सफाई के लिए टिप्स (oral care tips)
दांतों को बिमारियों से दूर रखने के लिए ओरल केयर (oral care) करना बहुत जरूरी है। इससे सिर्फ दांतों की नहीं बल्कि पूरे स्वास्थ को सही रखा जा सकता है। ओरल हाइजीन को मेंटेन करके दिल की कई तरह की बिमारियों से निपटा जा सकता है। दांतों के स्वास्थ्य के लिए नीचे बताई गई ये टिप्स फॉलो करें-
- दांतों की देखभाल के लिए दांतों की सफाई पर समुचित ध्यान दें। के लिए बैक्टीरिया की सफाई नियमित रूप से करें।
- ओरल केयर के लिए दिन में दो बार ब्रश करने की आदत डालें। के लिए ब्रश करने के बाद पानी से मुंह का कुल्ला करें। उसके बाद मसूढ़ों की मालिश करें, इससे रक्त संचार तेज होगा और मसूढ़े मजबूत होंगे।
- दांतों में कुछ फंस जाने पर उसे पिन, एक Price Gap क्यों बनता हैं? सुई, तीली आदि से न कुरेदें। ऐसा करने से मसूढ़ों में घाव हो सकता है।
- कुछ लोग गुस्से में दांत पीसते हैं। जो दांतों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता है।
- दूसरों के इस्तेमाल किए जाने वाले टूथब्रश का प्रयोग न करें। इससे दांतों में इंफेक्शन (teeth infection) हो सकता है।
- मीठे खाद्य पदार्थ जैसे आइस क्रीम, केक, चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स, जंक फूड आदि का सेवन कम से कम मात्रा में करें।
- धूम्रपान, शराब, पान, तंबाकू आदि का उपयोग दांतों की सेहत को सबसे ज्यादा खराब करते हैं। इसलिए, इनके सेवन से बचें।
- दांतों की साफ-सफाई के लिए ‘ऑयल पुलिंग (oil pulling)’ थेरेपी का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आप कोई भी खाद्य तेल जैसे -सरसों, तिल का तेल या नारियल तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे दांत और मसूढ़े दोनों ही हेल्दी होते होते हैं। इससे पायरिया भी नहीं होता है।
- वैसे तो दांतों के स्वास्थ्य के लिए ठंडे पेय पदार्थ, सोडा, कोल्ड ड्रिंक्स नहीं पीना चाहिए। लेकिन, अगर आपको इसका सेवन कभी कभी करना भी हो तो स्ट्रॉ का प्रयोग करें।
- गरम पेय पदार्थ के तुरंत बाद ठंडा पानी न पीएं।
- साथ में बेहतर दांतों के स्वास्थ्य के लिए साल में दो बार डेंटिस्ट को जरूर दिखाएं ताकि किसी भी प्रकार के दांतों की बीमारी या संक्रमण का समय पर पता लग सके।
- दांतों की साफ-सफाई के साथ-साथ जीभ की सफाई पर भी ध्यान दें।
- ओरल केयर के लिए आहार में गाजर, अमरुद, मूली, सेब, ककड़ी, खीरा आदि का सेवन जरूर करें।
मुंह की सेहत शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है इसलिए लगभग सभी डेंटिस्ट दांतों की स्केलिंग की सलाह देते हैं। जरूरत के अनुसार कराई गई डेंटल स्केलिंग (dental scaling) आपके मुंह और दांतों को हेल्दी बनाएं रखने में मदद कर सकती है। इसके साथ ही ऊपर बताए गए दांतों की देखभाल के टिप्स जरूर फॉलो करें। उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही अगर आपका इस विषय से संबंधित कोई भी सवाल या सुझाव है तो वो भी हमारे साथ शेयर करें।
वीर्य की जांच (Semen Analysis) क्या है और क्यों किया जाता है?
वीर्य में किसी तरह की समस्या होने पर गर्भधारण की कोशिश फेल हो जाती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर वीर्य विश्लेषण का सुझाव देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, डॉक्टर वीर्य की जांच कर उसकी गुणवत्ता और मात्रा यानी क्वालिटी और क्वांटिटी को मापते हैं।
यौन क्रिया के दौरान पुरुष के लिंग से बाहर निकलने वाला सफेद और गाढ़ा द्रव मेडिकल की भाषा में वीर्य कहलाता है। वीर्य विश्लेषण को वीर्य की जांच, शुक्राणु की जांच, शुक्राणु का विश्लेषण, स्पर्म का जांच, सर्पम का विश्लेषण या सीमन एनालिसिस आदि कई नामों से जाना जाता है।
वीर्य में शुक्राणु कोशिकाएं होती हैं जो महिला के अंडे के साथ मिलती हैं तो फर्टिलाइजेशन यानी निषेचन की प्रक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप एक भ्रूण का विकास होता है। यह गर्भावस्था का सबसे शुरुआती चरण है।
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वीर्य की जांच (वीर्य विश्लेषण/सीमन एनालिसिस) क्या है (What is sperm analysis test in Hindi)
वीर्य विश्लेषण के दौरान पुरुष के शुक्राणुओं के स्वास्थ्य और उनकी जीवन क्षमता की पुष्टि होती है। वीर्य की जांच को मुख्य तीन रूप में मापा जाता है, जिसमें शुक्राणुओं की गिनती, शुक्राणुओं का आकार और शुक्राणुओं की गतिशीलता शामिल हैं।
वीर्य के शुक्राणुओं के स्वास्थ्य की सटीक पुष्टि करने के लिए डॉक्टर आमतौर पर दो या तीन अलग-अलग जांच करने का सुझाव देते हैं। हर बार किए गए वीर्य की जांच का परिणाम अलग-अलग हो सकता है।
इसलिए जांच किए गए सभी सैंपल में पायी गयी संख्या की औसत को सबसे सटीक रिजल्ट माना जाता है। अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द क्लिनिकल केमिस्ट्री के अनुसार, वीर्य की जांच तीन महीने में सात बार और एक दिन में केवल एक बार ही करनी चाहिए।
वीर्य की जांच क्यों की जाती है (Why is sperm analysis done in Hindi)
वीर्य की जांच को कई कारणों से किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से निम्न शामिल हो सकते हैं:-
- पुरुष बांझपन:- जब कोई पुरुष बांझपन से पीड़ित होता है तो वीर्य की जांच से उसके सटीक कारण का पाए लगाया जाता है।
- नसबंदी की सफलता की पुष्टि:- अगर किसी पुरुष ने नसबंदी कराई है तो उसकी सफलता की पुष्टि करने के लिए वीर्य जांच किया जाता है।
- गर्भधारण में समस्या: जब कोई दंपति पिछले 12 महीनों में गर्भधारण करने में असफल होते हैं तो डॉक्टर वीर्य की जांच का सुझाव देते हैं।
- प्रजनन क्षमता में कमी:- इस जांच की मदद से डॉक्टर पुरुष के प्रजनन क्षमता में कमी के कारण का पता लगाकर इलाज की प्रक्रिया शुरू करते हैं।
- शुक्राणु संबंधित विकार:- इस जांच से शुक्राणुओं की कमी और एक Price Gap क्यों बनता हैं? शुक्राणु संबंधित विकारों का पता लगाया जाता है।
वीर्य की जांच की तैयारी कैसे करें (How to prepare for sperm analysis in Hindi)
वीर्य की जांच से पहले आपको किन बातों का ध्यान रखना है आदि के बारे में अपने डॉक्टर से अवश्य बात करें। इस जांच की सफलता दर को बढ़ाने के लिए आपको निम्न निर्देशों का पालन करना चाहिए:-
- जांच के 24-72 घंटे से पहले वीर्य स्खलन यानि इजाकुलेशन से बचें
- डॉक्टर के कहे मुताबिक किसी भी हर्बल दवा या हार्मोन दवा का सेवन न करें
- जांच के लगभग 1 सप्ताह पहले गांजा, शराब, ड्रग्स, कैफीन, कोकीन आदि का सेवन न करें
इन सबके अलावा, अगर आप पहले से किसी तरह की दवा का सेवन करते हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में अवश्य बताएं।
वीर्य की जांच के दौरान क्या होता है (Sperm analysis process in Hindi)
वीर्य की जांच के दौरान पुरुष अपने वीर्य का नमूना डॉक्टर को देता है। उसके बाद, डॉक्टर जांच करने के लिए वीर्य का एक अच्छा सैंपल तैयार करते हैं। इस दौरान, दो बातों का खास ध्यान रखना है जिसमें शामिल हैं:-
- वीर्य को शरीर के तापमान पर रखना होता है। क्योंकि अगर यह अधिक गर्म या ठंडा हुआ तो वीर्य जांच का रिजल्ट गलत आ सकता है।
- वीर्य को शरीर से बाहर आने के 30-60 मिनट के अंदर ही जांच के लिए डॉक्टर के पास भेज देना चाहिए।
वीर्य की जांच को घर या क्लिनिक दोनों ही जगहों पर किया जा सकता है। घर पर की जाने वाली जांच में केवल शुक्राणुओं की संख्या की ही पुष्टि कर सकते हैं। घर पर की जाने वाली जांच के दौरान शुक्राणुओं के आकार और गतिशीलता का विश्लेषण नहीं होता हैं।
प्रजनन शक्ति की पुष्टि करने और बांझपन के कारणों का पता लगाने के लिए क्लिनिक में वीर्य की जांच की जाती है। क्योंकि यहां प्रजनन शक्ति का मूल्यांकन व्यापक रूप से किया जाता है।
निम्न कारक वीर्य की जांच पर गलत प्रभाव डाल सकते हैं:-
- वीर्य का दूषित होना
- वीर्य का शुक्राणुनाशकों के संपर्क में आना
- लैब के टेक्नीशियन द्वारा कोई भूल या गलती होना
- बीमार या तनाव से ग्रस्त होने की स्थिति में वीर्य की जांच कराना
वीर्य की जांच से जुड़े कोई जोखिम नहीं हैं। अगर सभी प्रक्रियाएं सही से होने के बाद भी परिणाम सही नहीं आता है तो डॉक्टर पुरुष से शराब, कैफीन, तंबाकू, हर्बल दवाएं आदि से संबंधित प्रश्न पूछ सकते है।
क्या खाने से स्पर्म ज्यादा बनता है?
स्पर्म की संख्या बढ़ाने के लिए आप निम्न चीजों को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं:-
प्रजनन डॉक्टर के अनुसार, इन सभी चीजों का सेवन करने से वीर्य की संख्या और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी हो सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:-
पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता है?
सामान्य तरीके से बच्चा होने के लिए प्रति एमएल में कम से कम 20 मिलियन स्पर्म का होना आवश्यक है।
नगर पालिका, नगर निगम, पंचायत में क्या है अंतर?
राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनावों का बिगुल बज चुका है.
Updated: December 1, 2017 11:56 AM IST
नई दिल्ली. राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनावों के परिणाम आ रहे हैं. नगर निकाय चुनावों के परिणाम आने के साथ ही सरगर्मी तेज हो गई है और नगर पालिका, नगर निगम और पंचायत चुनावों को लेकर उलझन का दौर भी शुरू हो चुका है. राजनीति से जुड़े लोगों को छोड़ दें तो आम जनता को कई बार इनमें अंतर तक पता नहीं होता है. अब जब परिणाम का टेंपरेचर हाई है, आइए इन तीनों में अंतर को भी समझ लेते हैं.
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नगर पालिकाः एक नगर पालिका की आबादी 20 हजार या उससे अधिक की होती है. नगर पालिका है एक Price Gap क्यों बनता हैं? तो एक प्रशासनिक इकाई ही लेकिन इसमें इसका परिभाषित क्षेत्र और इसकी जनसंख्या भी अंकित होती है. आमतौर पर यह एक कस्बे, गांव, या उनमें से छोटे समूह रूप में होता है. एक नगरपालिका में प्रायः एक चेयरमैन प्रशासनिक अधिकारी होता है, व इसके ऊपर नगर परिषद या नगरपालिका परिषद का नियंत्रण होता है. प्रायः नगरपालिका अध्यक्ष ही प्रशासनिक अध्यक्ष होता है.
भारत में, एक नगर पालिका अक्सर एक शहर के रूप में जाना जाता है. यह न तो एक ग्राम और न ही बड़े शहर के बराबर होता है, वरन उनके बीच एक Price Gap क्यों बनता हैं? का होता है. एक नगर पालिका 20 हजार या उससे अधिक लोगों को मिलाकर बनता है, लेकिन अगर यह 5 लाख से अधिक जनसंख्या वाला हो जाता है तब एक नगर निगम बन जाता है.
नगर निगमः नगर निगम के एक स्थानीय शासी निकाय के लिए कानूनी नाम होता है, जो (लेकिन जरूरी सीमित नहीं) शहर, काउंटियों, कस्बों, बस्ती, चार्टर बस्ती, गांवों और नगर सहित स्थलों के लिए प्रयुक्त शब्द होता है. भारत में एक नगर निगम एक स्थानीय सरकार के रूप में 2 लाख या उससे अधिक की जनसंख्या के एक शहर का प्रशासन करता है. पंचायती राज प्रणाली के तहत, यह राज्य सरकार के साथ सीधे संपर्क रखता है, हालांकि यह प्रशासनिक दृष्टि से जिले के अधीन ही आता है व उसी में स्थित होता है. भारत में सबसे बड़ा नगर निगमों वर्तमान में दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई, मुंबई हैं.
पंचायतः पंचायत समिति, तहसील (तालुक) के रूप में भारत में सरकार की स्थानीय इकाई एक Price Gap क्यों बनता हैं? होती है. यह उस तहसील के सभी गांवों पर सामान रूप से कार्य करता है और इसको प्रशासनिक ब्लॉक भी कहते हैं. यह ग्राम पंचायत और जिला परिषद के मध्य की कड़ी होती है. इस संस्था का विभिन्न राज्यों में भिन्न नाम हैं. उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में इसे मंडल प्रजा परिषद्, गुजरात में तालुका पंचायत और कर्नाटक में मंडल पंचायत के नाम से जाना जाता है. पंचायत समिति, ग्राम पंचायत स्तर द्वारा तैयार किये गयी सभी भावी योजनाओं को संग्रहीत करती है और उनका वित्तीय प्रतिबद्धता, समाज कल्याण और क्षेत्र विकास एक Price Gap क्यों बनता हैं? को ध्यान में रखते हुये लागू करवाती है तथा वित्त पोषण के लिए उनका क्रियान्वयन करती है.
गांव कनेक्शन के मुताबिक, किसी भी ग्रामसभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है. हर गांव में एक ग्राम प्रधान होता है, जिसको सरपंच या मुखिया भी कहते हैं. 1000 तक की आबादी वाले गांवों में 10 ग्राम पंचायत सदस्य, 2000 तक 11 तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य होने चाहिए. ग्राम सभा की बैठक साल में दो बार होनी जरूरी है. जिसकी सूचना 15 दिन पहले नोटिस से देनी होती है. ग्रामसभा की बैठक बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को होता है. बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति जरूरी होती है.
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Age Gap Couples: अपने से उम्र एक Price Gap क्यों बनता हैं? में बड़े पार्टनर पर क्यों आकर्षित होते हैं लोग? ये हैं वजह
Age Gap Couples: सुष्मिता सेन और ललित मोदी के रिलेशनशिप को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा तेज है। ललित मोदी सुष्मिता सेन से उम्र में 10 साल बड़े हैं। उम्र के फासले को लेकर लोग सुष्मिता और ललित मोदी को ट्रोल कर रहे हैं। इसके पहले सुष्मिता सेन रोहमन शॉल को डेट कर रहीं थीं, जो उनसे 16 साल छोटे थे। अपने से बड़े उम्र के पार्टनर के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं। बाॅलीवुड में ही ऐसे कई कपल्स मिल जाएंगे, जो उम्र में अपने से बड़े पार्टनर के साथ हैं। सैफ अली खान ने 12 साल बड़ी अमृता सिंह से शादी की और बाद में 10 साल छोटी करीना से दूसरी शादी की। रिलेशनशिप में उम्र का फासला मायने नहीं रखता। लेकिन अपने से बड़े उम्र के शख्स के लिए आकर्षण आम बात होती जा रही है। आखिर लोग अपने से बड़े लड़के या लड़की के प्रति कैसे आकर्षित हो जाते हैं? रोहमन ने 16 साल बड़ी सुष्मिता सेन को क्यों डेट किया और सुष्मिता सेन 10 साल बड़े ललित मोदी के साथ कथित रिलेशनशिप में कैसे आ गईं? चलिए जानते हैं उम्र में बड़े पार्टनर से लगाव की वजह?
रिश्ते में समझदारी
लड़का हो या लड़की, अक्सर अपने से बड़े उम्र के पार्टनर की ओर आकर्षित होते हैं। रिश्ते में उम्र के फासले की एक वजह ये होती है कि उम्र में बड़े पार्टनर में लोग आत्मविश्वास देखते हैं, जिससे पार्टनर का अच्छा इम्प्रेशन बनता है। बड़े उम्र का पार्टनर अपने साथी को अच्छे से समझ पाता है। उनके बर्ताव को समझकर मैच्योरिटी दिखाते हुए रिश्ते को निभाते हैं। ऐसे में रिश्ते में स्थिरता बनी रहती है।
रिलेशनशिप में अगर कपल की उम्र समान होती है, तो उनमें विचारों का मतभेद कम होता है। एक दूसरे को समझने की क्षमता कम होती है। लेकिन बड़े उम्र का पार्टनर समझदारी दिखाता है और अपने साथी के प्रति अधिक केयरिंग होता है। वह रिश्ते को अधिक गंभीरता से लेता है। साथी की उम्र कम होने पर वह उसे मैच्योरिटी से अपनी बात को समझा पाता है।
आर्थिक तौर पर मजबूती
इन दिनों अपने से बड़े साथी को डेट करने की एक वजह फाइनेंसियल सिक्योरिटी भी है। पार्टनर अगर उम्र में बड़ा है, जो वह साथी की तुलना में आर्थिक तौर पर ज्यादा मजबूत होता है। उम्र के एक दौर में आकर उनका करियर उस मुकाम पर होता है, जहां से आपकी लाइफ स्टेबल होती है। जब आप उम्र में बड़े पार्टनर के साथ रिलेशनशिप में होते हैं तो आर्थिक दौर पर उनपर निर्भर हो सकते हैं। वह आपको आर्थिक सुरक्षा देते हैं। इस वजह से भी लोग स्थिर लाइफ के लिए अपने से उम्र में बड़े पार्टनर की ओर आकर्षित होते हैं।
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का डर कम
पार्टनर अगर उम्र में बड़ा होता है तो उस के धोखा देने की संभावना कम हो जाती है। उम्र में छोटे पार्टनर को डेट करने वाला साथी रिश्ते से संतुष्ट रहता है। वहीं खुद बड़ी उम्र में होने के कारण उनके लिए एक साथ दो लोगों को डेट करने की संभावना कम ही रहती है। ऐसे में कम उम्र का साथी रिलेशनशिप में सिक्योर महसूस करता है। वह अपने बड़े पार्टनर पर भरोसा करते हैं।