म्यूचुअल फंड में निवेश अच्छा है या बुरा?

Mutual Fund क्या है? | म्यूचुअल फंड क्या है?
नमस्कार दोस्तों आप इस पोस्ट में जानने वाले हो की Mutual Fund kya hai? कोरोना काल के चलते बहुत लोग को धन की अहमियत पता चल गयी है । जो लोग इस धन को कोरोना काल के पहले कही अन्य चीजों में व्यर्थ करते थे आज वही लोग उस पैसे को अच्छी जगह निवेश करके अपना भविष्य आत्मनिर्भर बनाना चाहते है। वैसे निवेश करने के कही रास्ते है जैसे सरकारी योजनाएं, बैंक बचत खाता, F.D और भी कही आदि; उन्ही में से एक है म्यूच्यूअल फंड्स।
Mutual Fund क्या है?
पारस्परिक निधि, जो Mutual Fund का दूसरा नाम है। आसान शब्द में समझे तो Mutual Fund एक सब्जी की टोकनी है और उस टोकनी में कही प्रकार की सब्जी रखी होती है। उसी स्वरूप Mutual Fund एक टोकनी है और उस टोकनी में कही प्रकार की कंपनी के शेयर या स्टॉक (सब्जी) रखे है। वैसे कही लोगो को यही लगता है कि mutual fund सिर्फ शेयर बाजार में निवेश करता है, परंतु ऐसा नहीं है। Mutual Fund कही तरीके के होते है और अलग – अलग म्यूच्यूअल फण्ड अलग – अलग तरीके से निवेश करके आपने निवेशको को अच्छी कमाई करके देते हैं।
Mutual Fund काम कैसे करता है?
Mutual Fund का काम करने का तरीका काफी अलग होता है जहाँ एक Asset Management Company (AMC) जैसे HDFC, Axis Bank, LIC अन्य आपने द्वारा एक म्यूच्यूअल फण्ड मार्केट मे लांच करती हैं। यह Mutual Fund में निवेशक निवेश कर सकते है और जो फंड जमा होता हैं उसे हम AUM (Asset Under Management) कहते हैं। यह AUM, M.F के मालिक के निरीक्षण में होता हैं, जिसे वह और उस फंड के member शेयर बाजार, कर्जदार कंपनी, सरकारी योजनाए अन्य प्रकार में निवेश करती हैं।
Mutual Fund क्या है? | म्यूचुअल फंड क्या है?
Fund Manager
AMC
Launch Mutual Fund
Invester invest
Amount Collected
AUM (Assets Under Management)
Invest
आपको म्यूच्यूअल फण्ड के बारे मे तो पता चल ही गया होगा की आखिर ये क्या है;
आइये जानते है म्यूच्यूअल फण्ड के फायदे और नुकसान
म्यूच्यूअल फण्ड के फ़ायदे (Advantages of Mutual Fund)
1.कम पैसे और विविधता:
एक साधारण (कम राशि वाला / वाली) निवेशक के लिये काफी मुश्किल है कि कम पैसे में अपनी मन पसंद कंपनियों के स्टॉक को खरीद सके। ऐसे निवेशकों को म्यूच्यूअल फण्ड का काफी फायदा होता है जहाँ वो सीमित पैसों को निवेश करके अच्छा रिटर्न बना सकते है। अब अगर देखा जाये तो म्यूचुअल फंड में निवेश अच्छा है या बुरा? यहां निवेश को एक तीर दो निशाने जैसा लाभ होता है; एक उसका कम पैसा अच्छे से निवेश हो गया और उन पैसो को विविधता भी मिल जाती हैं।
2.चार्जेस
अब यह बात तो सबको पता है म्यूचुअल फंड में निवेश अच्छा है या बुरा? कि बिना फायदा के कोई काम नहीं करता या हो हैं।यहां भी कुछ ऐसा ही है, जब कोई निवेशक किसी भी प्रकार के mutual fund मे निवेश कर रहा होता है या करता तो उसे कुछ फीस उसे चुने हुये mutual fund के Fund Manager को देनी होती है। जो फीस यह हम भरते है यह हमारे निवेश में से ही काट ली जाती है। इसी फीस को हम Expense Ratio के नाम से भी कहते है। Expense Ratio हर प्रकार के फंड के लिये अलग अलग होता है। इसकी सादारण संख्या 0.1 – 1.5 तक होती है परन्तु कुछ फण्ड के चार्जेस इससे भी ज्यादा हो सकते है।
उदाहरण:
मान लेते है कि आपने एक mutual fund चुना जिसका Expense Ratio 0.1 है तो अगर आपने 100₹ उस mutual fund मे निवेश किये है तो 0.1₹ का expense ratio (चार्जेस) उस mutual fund के fund manager को जाता है।
3.समय:
आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी मे हर किसी के पास इतना समय नहीं होता है की वह अपने लिये कोई अच्छी कंपनी ढूंढे और उसके बारे मे research करके फिर उसमे निवेश करे, क्योंकि किसी अच्छी कंपनी को ढूंढना और उसके बारे मे रिसर्च करने मे काफी समय लगता है।
अतः Mutual Fund यह कार्य हमारे लिए यह काफी हद तक आसान करता हैं जहापे निवेशक एक अच्छे mutual fund मे निवेश करके अच्छे रिटर्न्स बना सकता हैं। तो Mutual Fund उनके लिए काफी कारगर साबित होता है जिनके पास समय काफी कम है या जिनके पास स्टॉक मार्केट की ज्यादा जानकारी नहीं होती।
म्यूच्यूअल फण्ड के नुकसान (Disadvantages of Mutual Fund)
1. Expense Ratio:
जैसे की हमने आपको बताया की expense ratio की जो साधारण संख्या है वह 0.1-1.5% होती परंतु कुछ फंड ऐसे भी होते है जिनका expense ratio इससे ज्यादा होता हैं, तो देखा जाये अगर हम ऐसे mutual fund मे निवेश करते है तो हमे काफी बड़ी मात्रा मे फीस भरनी पड़ती है और रिटर्न्स के लिये काफी देर तक रुकना पड़ता है।
2.गलत जानकारी:
जमाना डिजीटल हो रहा है परन्तु उसी के चलते गलत जानकारी काफी तेजी से फेल रही है। ऐसे जानकारी का शिकार एक साधारण निवेशक काफी जल्दी हो जाता है, जहाँ वो कुछ अच्छे रिटर्न्स देख कर उस गलत mutual fund में निवेश करता है जिसका अंजाम काफी बुरा होता है। तो यह येे म्यूचुअल फंड के फायदे और नुकसान। हमने आपको काफी सरल मे बताने की कोशिश की म्यूचुअल फंड क्या है, वह कैसे काम करता है उसके फायदे और नुकसान। उम्मीद करते है की दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी।
असेट अलोकेशन में निफ्टी से ज्यादा रिटर्न देते हैं म्यूचुअल फंड, तुरंत करें निवेश की शुरुआत
Arthlabh.com के आंकड़े बताते हैं कि म्यूचुअल फंड में निवेश अच्छा है या बुरा? परिसंपत्तियों के वर्गों के बीच में जब निवेश किया जाता है तो यह सहज निवेश के अनुभवों को लंबी अवधि में सुनिश्चित करता है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: August 20, 2019 16:36 IST
Photo:MUTUAL FUNDS
Mutual funds give more returns than Nifty in asset allocation, start investing immediately
मुंबई। म्यूचु्अल फंड में निवेश करते समय निवेशकों को जिस बात पर सबसे पहले फोकस करना चाहिए वह यह कि उनका निवेश असेट अलोकेशन पर आधारित हो। यानी वह जो निवेश कर रहे हैं वह डेट और इक्विटी दोनों में बंटा हो क्योंकि इनसे जोखिम कम होता है और रिटर्न अच्छा मिलता है। इसी पद्धति को अपनाते हुए अग्रणी म्यूचुअल फंड आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड ने रिटर्न के मामले में निफ्टी को पीछे छोड़ दिया है।
आरबीआई का फैसला, दिसंबर से NEFT के जरिए 24 घंटे फंड ट्रांसफर की मिलेगी सुविधा
PF के पैसों को लेकर अगले सप्ताह हो सकता है बड़ा फैसला, 21 अगस्त को होगी सीबीटी की बैठक
एनआईए के 3 अधिकारी ब्लैकमेलिंग के आरोप में जांच के दायरे में
Arthlabh.com (अर्थलाभ डॉटकॉम) के आंकड़े बताते हैं कि परिसंपत्तियों के वर्गों के बीच में जब निवेश किया जाता है तो यह सहज निवेश के अनुभवों को लंबी अवधि में सुनिश्चित करता है। पिछले एक दशक में जब भी बाजार तेजी या मंदी में रहा है, तो निफ्टी 50 टीआरआई ने 10.2 फीसदी का रिटर्न दिया म्यूचुअल फंड में निवेश अच्छा है या बुरा? है, जबकि इसी अवधि में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के असेट अलोकेटर फंड ने 12.1 फीसदी का रिटर्न दिया है, वह भी जब इसका एक्सपोजर इक्विटी में केवल 41 फीसदी रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि आपने अगर 2010 में निफ्टी में 10 लाख रुपए का निवेश किया होगा तो यह राशि बढ़कर 24,93,534 रुपए हो गई होगी, जबकि आईसीआईसीआई अलोकेटर फंड में यह बढ़कर 29,31,572 रुपए हो गई होगी। यानी निवेशकों को बेंचमार्क की तुलना में करीबन 4.50 लाख रुपए का अधिक फायदा हुआ है।
यही नहीं, जब भी बेंचमार्क इंडाइसेस का रिटर्न सपाट रहा है, तब भी उपरोक्त फंड दो अंकों में रिटर्न देने में सफल रहा है, जिससे पता चलता है कि असेट अलोकेशन की रणनीति कितनी फायदेमंद रहती है। ऐसा देखा जाता है कि जब भी बाजार में गिरावट होती है, निवेशक तुरंत डर के मारे इक्विटी में बिकवाली करने लगते हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत के बाहर भी ऐसा कई बार देखा गया है। जब भी बात इक्विटी निवेश और रणनीति की आती है तो निवेशकों को कम मूल्य पर खरीद कर ऊंचे मूल्य पर बेचने की रणनीति का पालन करना चाहिए। इसी तरह की रणनीति को अपनाते हुए आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल असेट अलोकेटर फंड निवेशकों को अच्छा लाभ देता है।
Arthlabh.com के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में अगस्त और सितंबर तथा 2018 में फरवरी और सितंबर ऐसे महीने रहे हैं जब बाजार का मूल्यांकन अपने शीर्ष स्तर पर रहा है। रिटेल निवेशकों ने उस समय बाजार में 16,000-21,000 करोड़ रुपए का निवेश किया, जबकि दूसरी ओर जब बाजार का मूल्यांकन जनवरी और सितंबर 2013 में निचले स्तर पर था, निवेशकों ने 17,000 करोड़ रुपए बाजार से निकाल लिए। इसी तरह का रुझान मार्च 2014 में भी देखा गया, जब निवेशकों ने 13,000 करोड़ रुपए की निकासी की। इस तरह की आदत निवेशकों की वित्तीय स्थिति पर काफी बुरा असर डालती है। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल इसके उलट असेट अलोकेशन का पालन करता है और इन हाउस मूल्यांकन मॉडल का पालन करता है, जो तमाम मैक्रो और माइक्रो कारकों पर आधारित होता है। निवेशक ऐसे मामले में इस तरह के फंड में एसआईपी के जरिए भी निवेश कर सकते हैं। लेकिन यह भी देखना होगा कि यह निवेश लंबी अवधि के लिए हो।
Long Term Investment: लॉन्ग टर्म निवेश के लिए क्या हो सकते हैं बेहतर विकल्प, आसान बिंदुओं में समझें
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं.
श्रीनिवास राव रावुरी, CIO, PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड
"यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था" -
चार्ल्स डिकेंस के अ टेल ऑफ टू सिटीज की यह शुरुआती पंक्ति है और यह संभवत: बाजार के मौजूदा परिदृश्य को सटीक तरीके से बताती है. हमारे सामने तरक्की का लंबा रास्ता है, लेकिन वैश्विक सुस्ती, भू-राजनीतिक मसलों, ऊंची ब्याज दरों जैसे तमाम मसलों का शोर भी है. भारतीय बाजारों में करीब 18 महीने तक की तेजी के बाद पिछले एक साल में मिलाजुला रुख देखा गया.
बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन इसके लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है. एक एसेट क्लास के रूप में देखें तो इक्विटीज यानी शेयरों में ऊंचा जोखिम रहता है और इसलिए उतार-चढ़ाव तो इक्विटी निवेश का एक हिस्सा है. लेकिन इसमें एक अच्छी बात यह है कि जितनी लंबी अवधि तक निवेश बनाए रहें, उतार-चढ़ाव का तत्व सीमित होता जाता है. इसलिए दीर्घकालिक रूप में इक्विटी सर्वश्रेष्ठ एसेट क्लास हैं और लॉन्ग टर्म के लिए हम भारतीय बाजारों के लिए सकारात्मक बने हुए हैं.
यह सिर्फ इसकी वजह से नहीं है कि एक लंबे समय अवधि में उतार-चढ़ाव का असर सीमित हो जाता है, बल्कि इससे भी ज्यादा इस वजह से है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और यहां के कॉरपोरेट में तरक्की की बेहतरीन संभावनाएं हैं, स्थायी-मजबूत सरकार और नीतियों का दौर है तथा वैश्विक मंच पर पहले से काफी बेहतर स्थिति (जीडीपी के % में निर्यात सात साल के ऊंचे स्तर पर) है. इसके अलावा, हम जबरदस्त टैक्स कलेक्शन, बचत दर में सुधार और भारतीय कंपनियों के बहीखातों में सुधार देख रहे हैं. इन सबकी वजह से निवेश और खर्च की दर भी सुधरती है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी.
करीब पांच साल के अंतराल के बाद क्षमता इस्तेमाल 75 फीसद तक पहुंच गई है, जिसकी वजह से हम मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय में सुधार की जमीन तैयार होते देख रहे हैं.
अब इस पर बहस की जा सकती है कि खासकर विकसित देशों में मंदी या सुस्ती का असर कम रहेगा या व्यापक रहेगा, या महंगाई टिकने वाला होगा या कुछ समय के लिए. लेकिन कमोडिटीज और एनर्जी की कीमतों (ऊर्जा आयात का हिस्सा जीडीपी के 4 फीसद तक होता है) में कमी आई है जो कुछ राहत की बात है. हम पूरे भरोसे से यह नहीं कह सकते कि मार्जिन का दबाव कम हुआ है, लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि अब चीजें सही दिशा में जा रही हैं, कम से कम कमोडिटी उपभोग के मामले में.
हालांकि, कई ऐसे जोखिम हैं जिनका हमें ध्यान रखना होगा. पहला, अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्य और सप्लाई चेन की निरंतरता के मसले लंबे समय तक बने रहने वाले हैं. दूसरा, अब करीब एक दशक के कम ब्याज दरों और आसान नकदी के माहौल से ऊंची ब्याज दरों और नकदी में सख्ती वाले माहौल की तरफ बढ़ा जा रहा है. पहले जोखिम की वजह से महंगाई न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता है और हमने यह देखा है कि केंद्रीय बैंक सख्त मौद्रिक नीतियों से इस पर अंकुश के लिए कोशिश में लगे हुए हैं.
भारत में हमें कुछ और समस्याओं के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, व्यापार घाटा ऊंचाई पर है और रुपए में काफी कमजोरी है. महंगाई लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है और पिछले करीब तीन तिमाहियों से यह रिजर्व बैंक के 6% के सुविधाजनक स्तर से ऊपर है. कई दूसरे देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है और हमारी ग्रोथ रेट भी बहुत अच्छी है, लेकिन अर्थव्यवस्था की इस अलग राह या बेहतरीन प्रदर्शन से जरूरी नहीं कि बाजार एक-दूसरे से जुड़े नहीं हों, भले ही प्रदर्शन कितना ही बढ़िया हो. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शॉर्ट टर्म में हमारे बाजार भी दूसरे बाजारों के साथ ही चलेंगे.
वैश्विक तरक्की में मौजूदा अनिश्चिचता के माहौल को देखते हुए बाजारों के लिए मौजूदा साल काफी चुनौतियों वाला हो सकता है. वैश्विक स्तर पर और भारत में ऊंची ब्याज दरों की वजह से शेयरों के वैल्युएशन में उस बढ़त पर जोखिम आ सकता है, जिसका हाल में भारतीय बाजारों को फायदा मिला है. इसके अलावा भारत के कई राज्यों में मानसून अनियमित रहने की वजह से खाद्य महंगाई भी ऊंचाई पर रहने की आशंका है.
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं। वित्तीय सेगमेंट (खासकर बैंक) अब ऐसी स्थिति में हैं जहां कर्ज की मांग और उसकी उठाव बढ़ रही है।
असेट अलोकेशन में निफ्टी से ज्यादा रिटर्न देते हैं म्यूचुअल फंड, तुरंत करें निवेश की शुरुआत
Arthlabh.com के आंकड़े बताते हैं कि परिसंपत्तियों के वर्गों के बीच में जब निवेश किया जाता है तो यह सहज निवेश के अनुभवों को लंबी अवधि में सुनिश्चित करता है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: August 20, 2019 16:36 IST
Photo:MUTUAL FUNDS
Mutual funds give more returns than Nifty in asset allocation, start investing immediately
मुंबई। म्यूचु्अल फंड में निवेश करते समय निवेशकों को जिस बात पर सबसे पहले फोकस करना चाहिए वह यह कि उनका निवेश असेट अलोकेशन पर आधारित हो। यानी वह जो निवेश कर रहे हैं वह डेट और इक्विटी दोनों में बंटा हो क्योंकि इनसे जोखिम कम होता है और रिटर्न अच्छा मिलता है। इसी पद्धति को अपनाते हुए अग्रणी म्यूचुअल फंड आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड ने रिटर्न के मामले में निफ्टी को पीछे छोड़ दिया है।
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एनआईए के 3 अधिकारी ब्लैकमेलिंग के आरोप में जांच के दायरे में
Arthlabh.com (अर्थलाभ डॉटकॉम) के आंकड़े बताते हैं कि परिसंपत्तियों के वर्गों के बीच में जब निवेश किया जाता है तो यह सहज निवेश के अनुभवों को लंबी अवधि में सुनिश्चित करता है। पिछले एक दशक में जब भी बाजार तेजी या मंदी में रहा है, तो निफ्टी 50 टीआरआई ने 10.2 फीसदी का रिटर्न दिया है, जबकि इसी अवधि में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के असेट अलोकेटर फंड ने 12.1 फीसदी का रिटर्न दिया है, वह भी जब इसका एक्सपोजर इक्विटी में केवल 41 फीसदी रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि आपने अगर 2010 में निफ्टी में 10 लाख रुपए का निवेश किया होगा तो यह राशि बढ़कर 24,93,534 रुपए हो गई होगी, जबकि आईसीआईसीआई अलोकेटर फंड में यह बढ़कर 29,31,572 रुपए हो गई होगी। यानी निवेशकों को बेंचमार्क की तुलना में करीबन 4.50 लाख रुपए का अधिक फायदा हुआ है।
यही नहीं, जब भी बेंचमार्क इंडाइसेस का रिटर्न सपाट रहा है, तब भी उपरोक्त फंड दो अंकों में रिटर्न देने में सफल रहा है, जिससे पता चलता है कि असेट अलोकेशन की रणनीति कितनी फायदेमंद रहती है। ऐसा देखा जाता है कि जब भी बाजार में गिरावट होती है, निवेशक तुरंत डर के मारे इक्विटी में बिकवाली करने लगते हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत के बाहर भी ऐसा कई बार देखा गया है। जब भी बात इक्विटी निवेश और रणनीति की आती है तो निवेशकों को कम मूल्य पर खरीद कर ऊंचे मूल्य पर बेचने की रणनीति का पालन करना चाहिए। इसी तरह की रणनीति को अपनाते हुए आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल असेट अलोकेटर फंड निवेशकों को अच्छा लाभ देता है।
Arthlabh.com के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में अगस्त और सितंबर तथा 2018 में फरवरी और सितंबर ऐसे महीने रहे हैं जब बाजार का मूल्यांकन अपने शीर्ष स्तर पर रहा है। रिटेल निवेशकों ने उस समय बाजार में 16,000-21,000 करोड़ रुपए का निवेश किया, जबकि दूसरी ओर जब बाजार का मूल्यांकन जनवरी और सितंबर 2013 में निचले स्तर पर था, निवेशकों ने 17,000 करोड़ रुपए बाजार से निकाल लिए। इसी तरह का रुझान मार्च 2014 में भी देखा गया, जब निवेशकों ने 13,000 करोड़ रुपए की निकासी की। इस तरह की आदत निवेशकों की वित्तीय स्थिति पर काफी बुरा असर डालती है। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल इसके उलट असेट अलोकेशन का पालन करता है और इन हाउस मूल्यांकन मॉडल का पालन करता है, जो तमाम मैक्रो और माइक्रो कारकों पर आधारित होता है। निवेशक ऐसे मामले में इस तरह के फंड में एसआईपी के जरिए भी निवेश कर सकते हैं। लेकिन यह भी देखना होगा कि यह निवेश लंबी अवधि के लिए हो।
Long Term Investment: लॉन्ग टर्म निवेश के लिए क्या हो सकते हैं बेहतर विकल्प, आसान बिंदुओं में समझें
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं.
श्रीनिवास राव रावुरी, CIO, PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड
"यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था" -
चार्ल्स डिकेंस के अ टेल ऑफ टू सिटीज की यह शुरुआती पंक्ति है और यह संभवत: बाजार के मौजूदा परिदृश्य को सटीक तरीके से बताती है. हमारे सामने तरक्की का लंबा रास्ता है, लेकिन वैश्विक सुस्ती, भू-राजनीतिक मसलों, ऊंची ब्याज दरों जैसे तमाम मसलों का शोर भी है. भारतीय बाजारों में करीब 18 महीने तक की तेजी के बाद पिछले एक साल में मिलाजुला रुख देखा गया.
बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन इसके लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है. एक एसेट क्लास के रूप में देखें तो इक्विटीज यानी शेयरों में ऊंचा जोखिम रहता है और इसलिए उतार-चढ़ाव तो इक्विटी निवेश का एक हिस्सा है. लेकिन इसमें एक अच्छी बात यह है कि जितनी लंबी अवधि तक निवेश बनाए रहें, उतार-चढ़ाव का तत्व सीमित होता जाता है. इसलिए दीर्घकालिक रूप में इक्विटी सर्वश्रेष्ठ एसेट क्लास हैं और लॉन्ग टर्म के लिए हम भारतीय बाजारों के लिए सकारात्मक बने हुए हैं.
यह सिर्फ इसकी वजह से नहीं है कि एक लंबे समय अवधि में उतार-चढ़ाव का असर सीमित हो जाता है, बल्कि इससे भी ज्यादा इस वजह से है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और यहां के कॉरपोरेट में तरक्की की बेहतरीन संभावनाएं हैं, स्थायी-मजबूत सरकार और नीतियों का दौर है तथा वैश्विक मंच पर पहले से काफी बेहतर स्थिति (जीडीपी के % में निर्यात सात साल के ऊंचे स्तर पर) है. इसके अलावा, हम जबरदस्त टैक्स कलेक्शन, बचत दर में सुधार और भारतीय कंपनियों के बहीखातों में सुधार देख रहे हैं. इन सबकी वजह से निवेश और खर्च की दर भी सुधरती है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी.
करीब पांच साल के अंतराल के बाद क्षमता इस्तेमाल 75 फीसद तक पहुंच गई है, जिसकी वजह से हम मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय में सुधार की जमीन तैयार होते देख रहे हैं.
अब इस पर बहस की जा सकती है कि खासकर विकसित देशों में मंदी या सुस्ती का असर कम रहेगा या व्यापक रहेगा, या महंगाई टिकने वाला होगा या कुछ समय के लिए. लेकिन कमोडिटीज और एनर्जी की कीमतों (ऊर्जा आयात का हिस्सा जीडीपी के 4 फीसद तक होता है) में कमी आई है जो कुछ राहत की बात है. हम पूरे भरोसे से यह नहीं कह सकते कि मार्जिन का दबाव कम हुआ है, लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि अब चीजें सही दिशा में जा रही हैं, कम से कम कमोडिटी उपभोग के मामले में.
हालांकि, कई ऐसे जोखिम हैं जिनका हमें ध्यान रखना होगा. पहला, अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्य और सप्लाई चेन की निरंतरता के मसले लंबे समय तक बने रहने वाले हैं. दूसरा, अब करीब एक दशक के कम ब्याज दरों और आसान नकदी के माहौल से ऊंची ब्याज दरों और नकदी में सख्ती वाले माहौल की तरफ बढ़ा जा रहा है. पहले जोखिम की वजह से महंगाई न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता है और हमने यह देखा है कि केंद्रीय बैंक सख्त मौद्रिक नीतियों से इस पर अंकुश के लिए कोशिश में लगे हुए हैं.
भारत में हमें कुछ और समस्याओं के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, व्यापार घाटा ऊंचाई पर है और रुपए में काफी कमजोरी है. महंगाई लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है और पिछले करीब तीन तिमाहियों से यह रिजर्व बैंक के 6% के सुविधाजनक स्तर से ऊपर है. कई दूसरे देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है और हमारी ग्रोथ रेट भी बहुत अच्छी है, लेकिन अर्थव्यवस्था की इस अलग राह या बेहतरीन प्रदर्शन से जरूरी नहीं कि बाजार एक-दूसरे से जुड़े नहीं हों, भले ही प्रदर्शन कितना ही बढ़िया हो. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शॉर्ट टर्म में हमारे बाजार भी दूसरे बाजारों के साथ ही चलेंगे.
वैश्विक तरक्की में मौजूदा अनिश्चिचता के माहौल को देखते हुए बाजारों के लिए मौजूदा साल काफी चुनौतियों वाला हो सकता है. वैश्विक स्तर पर और भारत में ऊंची ब्याज दरों की वजह से शेयरों के वैल्युएशन में उस बढ़त पर जोखिम आ सकता है, जिसका हाल में भारतीय बाजारों को फायदा मिला है. इसके अलावा भारत के कई राज्यों में मानसून अनियमित रहने की वजह से खाद्य महंगाई भी ऊंचाई पर रहने की आशंका है.
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं। वित्तीय सेगमेंट (खासकर बैंक) अब ऐसी स्थिति में हैं जहां कर्ज की मांग और उसकी उठाव बढ़ रही है।