सदाबहार संपत्ति मौजूद है

गुइंडी नेशनल पार्क : Guindy National Park (Arorapedia) (Arora IAS)
गुइंडी नेशनल पार्क तमिलनाडु का 2.70 किमी 2 (1.04 वर्ग मील) संरक्षित क्षेत्र है, जो भारत के चेन्नई में स्थित है, भारत का 8 वां सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है और एक शहर के अंदर स्थित बहुत कम राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। यह पार्क राजभवन के आसपास के मैदान का एक विस्तार है, जिसे पहले भारत के तमिलनाडु के राज्यपाल के आधिकारिक निवास स्थान ‘गुंडी लॉज’ के रूप में जाना जाता था। यह सदाबहार संपत्ति मौजूद है सुंदर वनों को घेरते हुए, ज़मीनों, झीलों और नालों को घेरते हुए गवर्नर की संपत्ति के भीतर तक फैला हुआ है।
पार्क में एक्स-सीटू और इन-सीटू संरक्षण दोनों की भूमिका है और 400 ब्लैकबक्स, 2,000 चित्तीदार हिरण, 24 सियार, कई प्रकार के सांप, जेकॉस, कछुए और 130 से अधिक पक्षियों की प्रजातियों, 14 स्तनधारियों की प्रजातियों में से सदाबहार संपत्ति मौजूद है एक है। तितलियों और मकड़ियों की 60 से अधिक प्रजातियां, अलग-अलग अकशेरूकीय – टिड्डों, चींटियों, दीमक, केकड़ों, घोंघे, स्लग, बिच्छू, घुन, केंचुए, मिलीपेड और इस तरह की एक संपत्ति। ये स्वतंत्र प्रकृति के जीव हैं और मानव से न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ रहते हैं। एकमात्र प्रमुख प्रबंधन गतिविधि किसी अन्य इन-सीटू संरक्षण क्षेत्र के रूप में सुरक्षा है। पार्क हर साल 700,000 से अधिक आगंतुकों को आकर्षित करता है।
इतिहास :
एक बार कोरोमंडल तट के उष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन के अंतिम अवशेषों में से एक के 5 किमी² (1.93 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करते हुए, गुइंडी पार्क मूल रूप से एक गेम रिजर्व था। 1670 के दशक के प्रारंभ में, एक उद्यान स्थान को गिंडी जंगल से बाहर निकाला गया था और गुइंडी लॉज नामक एक आवास गवर्नर विलियम लैंगहॉर्न (1672-1616) द्वारा बनाया गया था, जिसने सेंट थॉमस माउंट को आराम और मनोरंजन के लिए एक समृद्ध स्थान बनाने में मदद की थी। वन क्षेत्र के शेष हिस्से पर गिल्बर्ट रोडेरिक्स नाम के एक ब्रिटिश नागरिक का स्वामित्व था, जिसे सरकार ने 1821 में ,000 35,000 की राशि में खरीदा था। 505 हा के मूल क्षेत्र को 1910 में रिजर्व फॉरेस्ट के रूप में स्थापित किया गया था। हालांकि यह अनुमान लगाया गया था कि चीतल (चित्तीदार हिरण) को 1945 के बाद संभवत: पार्क में पेश किया गया था, अब यह ज्ञात है कि वे वर्ष 1900 में पहले से ही मौजूद थे मद्रास के औपनिवेशिक गवर्नर सर आर्थर हैवलॉक (1895-1900) के कार्यकाल के दौरान 1961 और 1977 के बीच, लगभग 172 हेक्टेयर जंगल, मुख्य रूप से राजभवन से, विभिन्न सरकारी विभागों में स्थानांतरित कर दिए गए थे। शिक्षण संस्थानों और स्मारकों के निर्माण के लिए। 1958 में, मद्रास के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना के लिए वन क्षेत्र का एक हिस्सा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को हस्तांतरित किया गया था। उसी वर्ष, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के कहने पर, गिंडी हिरण पार्क और चिल्ड्रन सदाबहार संपत्ति मौजूद है पार्क बनाने के लिए भूमि का एक और हिस्सा वन विभाग को हस्तांतरित किया गया था। राजाजी और कामराज के स्मारक राजभवन से अधिग्रहित भूमि के पार्सल से क्रमशः 1974 और 1975 में बनाए गए थे। 1977 में, वन क्षेत्र को तमिलनाडु वन विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया था। 1978 में, शेष पूरे क्षेत्र को, जिसे तब गिंडी हिरण पार्क के रूप में जाना जाता था, राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह 1980 के दशक के उत्तरार्ध में आसन्न राजभवन और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास परिसर से हटा दिया गया था।
वनस्पति :
पार्क में सूखे सदाबहार स्क्रब और कांटे वाले जंगल , घास के मैदान और जल निकाय हैं, जिनमें झाड़ियों, पर्वतारोहियों, जड़ी-बूटियों और घासों की 350 से अधिक प्रजातियां हैं और 24 से अधिक प्रकार के पेड़ – पौधे हैं, जिनमें चीनी-सेब , अटलांटिया मोनोफिला , लकड़ी-सेब और नीम । यह वनस्पति पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियों के लिए एक आदर्श निवास स्थान प्रदान करती है। ब्लैकबक्स के लिए उस आवास को संरक्षित करने के लिए पार्क के लगभग छठे हिस्से को खुली घास के मैदान के रूप में छोड़ दिया गया है। हालांकि ब्लैकबक और चित्तीदार हिरण की दोनों प्रजातियां घास के मैदान में अपने प्राकृतिक आवास हैं, चित्तीदार हिरण झाड़ियों को पसंद करते हैं और झाड़ी के साथ कवर भूमि में समायोजित कर सकते हैं।
पशुवर्ग :
ब्लैकबक, चीतल या चित्तीदार हिरण, सियार, छोटे भारतीय सिवेट, कॉमन पॉम सिवेट, बोनट मकाक, हाइना, पैंगोलिन, हेजहोग, कॉमन मोंगोज़ और तीन धारीदार पाम गिलहरी सहित स्तनधारियों की 14 से अधिक प्रजातियाँ हैं। पार्क में ब्लैक-नैप्ड हर और कई प्रजातियों के चमगादड़ और कृंतक भी सदाबहार संपत्ति मौजूद है हैं।
निकटवर्ती ब्लैकबक को पार्क की प्रमुख प्रजाति माना जाता है, लॉर्ड विलिंगडन द्वारा 1924 में पेश किया गया था और हाल के दिनों में जनसंख्या में गिरावट देखी गई है। अब यह ज्ञात हुआ है कि ब्लैकबक्स और चीतल दोनों ही पार्क के मूल निवासी तत्व थे। भावनगर के महाराजा द्वारा कुछ अल्बिनो पुरुष ब्लैकबक्स भी पेश किए गए थे। 29 फरवरी 2004 को आयोजित जनगणना के अनुसार, ब्लैकबक की जनसंख्या 405 थी (आईआईटी परिसर में 10 स्पॉट)। पार्क में चीतल की आबादी पिछली सदी में स्थिर या बढ़ी हुई प्रतीत होती है। 29 फरवरी 2004 को आयोजित जनगणना के अनुसार, चित्तीदार हिरण की आबादी 2,650 थी। इनमें से 1,743 महिलाएं थीं और 336 जवान थे। गुइंडी नेशनल पार्क और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और राजभवन परिसर में राजा की पारगमन पद्धति का उपयोग करते हुए जनगणना ली गई, जो केवल वास्तविक आंकड़े के करीब संख्या को प्रकट करेगी।
पार्क में 150 से अधिक प्रजातियां हैं जिनमें ग्रे दलिया, कौवा तीतर, तोता, बटेर, स्वर्ग फ्लाईकैचर, काले पंखों वाला पतंग, शहद की भुजिया, परिया पतंग, गोल्डन-बैक वाले कठफोड़वा, पीले वॉट वाला लैपविंग, रेड-वॉटेड लैपविंग, ब्लू- शामिल हैं। मल्कोहा, श्रीकस, एशियन कोयल, मिनिवेट्स, मुनियास, पारेकेट, दर्जी पक्षी, रॉबिन, ड्रोंगो और पत्थर कर्ले का सामना किया। बर्ड वॉचर्स यहां प्रवासी पक्षियों का अनुमान लगाते हैं जैसे कि चैती, गार्गनी, पोचर्ड, मीडियम एग्रेस, लार्ज एग्रेट्स, नाइट हेरोन्स, पॉन्ड हेरॉन और ओपन-बिल्ड स्टॉर्क हर फॉल सीज़न।
यह पार्क उभयचरों की लगभग 9 प्रजातियों का घर है। इसमें कई तरह के सरीसृप भी पाए जाते हैं, जिनमें आरी-स्केल्ड वाइपर और पंखा-थ्रोटेड छिपकली शामिल हैं। कछुए और कछुओं की कुछ प्रजातियाँ – विशेष रूप से लुप्तप्राय तारा कछुआ, छिपकली, गीकोस, गिरगिट और आम भारतीय मॉनिटर छिपकली – यहाँ पाए जाते हैं, साथ ही मकड़ियों की 60 प्रजातियों और सदाबहार संपत्ति मौजूद है तितलियों की 60 प्रजातियों सहित बड़ी संख्या में कीड़े हैं।
सदाबहार संपत्ति मौजूद है
नई दिल्ली: धरती पर अनेकों पेड़-पौधे ऐसे है जिनकी पत्तियां सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है। इन्हें आयुर्वेद में भी कई औषधि के रूप मे उपयोग मे लाया जाता है। इन पेड़-पौधों में नीम, बेल, सदाबहार, पान के पत्ते आदि शामिल है। ये सभी कई तरह की शारीरिक समस्याओं से बचाते है। इनमें पेड़-पौधों के पत्तों में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते है,जो कई रोगों से बचाव करते है। इसलिए आज सदाबहार संपत्ति मौजूद है हम आपको इससे जूड़े कुछ फायदों के बारे में बताने वाले है।
बेल की पत्तियां यूं पहुंचाती हैं सेहत को लाभ
बता दें कि, बेल का शरबत तो आप गर्मी के दिनों में पीते होंगे, लेकिन इसकी पत्तियों का इस्तेमाल शायद ही कभी किया होगा। बेल की पत्तियां भी फल की ही तरह लाभदायक होती हैं। इसमें कई तरह के सदाबहार संपत्ति मौजूद है औषधीय गुण छिपे होते हैं। इसके पत्तों में एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल गुम मौजूद होते हैं। इसकी पत्तियों के सेवन से आप कई तरह के रोगों से बचे रह सकते हैं। पाचन संबंधित समस्या हो, पेट में कोई गड़बड़ी हो, पेट में कीड़े होने से दर्द हो रहा हो, तो बेल की पत्तियां आपके काम आ सकती हैं। इतना ही नहीं, दस्त लगने पर भी इन पत्तियों का सेवन किया जा सकता है।
सदाबहार के फूल से होते है ये फायदे
सदाबहार के फूल (Sadabahar or periwinkle) आपको हर जगह खिले हुए दिख जाएंगे। कई लोग अपने घरों में भी यह फूल लगाते हैं। पर्पल रंग का ये छोटा सा फूल देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। लेकिन, इसकी पत्तियां कितनी फायदेमंद होती हैं, बहुत कम लोग ही जानते होंगे। सदाबहार की पत्तियां डायबिटीज, कैंसर, गले में इंफेक्शन जैसी समस्याओं के होने की संभावना को कम कर सकती हैं। इसमें मौजूद तत्व शरीर में शुगर के स्तर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं।
पान के पत्तों का सेवन
पान का सेवन कुछ लोग हर दिन करते हैं, तो कुछ कभी-कभार पार्टी-फंक्शन, रेस्तरां में खाना खाने के बाद करते हैं। पान के पत्तों (betel leaves) का इस्तेमाल पूजा में चढ़ाने के लिए भी किया जाता है। यह कई तरह सदाबहार संपत्ति मौजूद है की शारीरिक समस्याओं, जैसे सिरदर्द, घाव, खांसी, सर्दी-जुकाम, स्तनों में सूजन आदि समस्याओं को दूर कर सकता है। घाव नहीं भर रहा है, तो उस जगह पर पान के पत्ते को बांध दें। घाव भर जाएगा। खांसी की समस्या परेशान कर रही है, तो पान के पत्ते को पीसकर उसका रस निकालें। इसमें आप शहद मिलाएं और खाएं। (डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सभी बातें सामान्य जानकारी के आधार पर लिखी गई है।
भोरमदेव अभ्यारण्य की ये मनोरम वादियां, यहां से करें नव वर्ष की शुरुआत
मैकल पर्वत श्रेणी पर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैला भोमरदेव अभयारण्य अपने आप में प्रकृति को समेटे हुए हैं
कवर्धा. मैकल पर्वत श्रेणी पर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैला भोमरदेव अभयारण्य अपने आप में प्रकृति को समेटे हुए हैं। छत्तीसगढ़ के खजुराहो भोरमदेव के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन यहां अभयारण्य से लोग अब भी अछूते हैं। जबकि यह क्षेत्र लोगों के लिए नया पर्यटन क्षेत्र बन रहा है।
जिले के सबसे खूबसूरत नजारे और शानदार जानवरों का ठिकाना है। यहां पर चिडिय़ों की चहचहाट से लेकर बाघों की दहाड़ भी आसानी से सुनाई देती है। क्योंकि यह क्षेत्र जंगली जानवरों के लिए वातानुकूल है। कान्हा और अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र के लगे होने के कारण यहां पर तरह की जीव जंतु दिखाई देते हैं। यहां पर नाचते हुए मोर और उछलकूद करते हुए चीतल भी नजर आते हैं। भोरमदेव अभयारण्य 352 वर्ग किलोमीटर में फैला कबीरधाम जिले का एकमात्र और राज्य का 11वां अभयारण्य है।
मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और बिलासपुर क्षेत्र के अचानकमार टाइगर रिजर्व के कॉरिडोर के रूप से अभयारण्य जाना जाता है। इस कॉरिडोर व भोरमदेव अभयारण्य में छह बाघ, बाघिन और शावक विचरण करते हैं। इसमें से दो बाघ कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से अचानकमार तक टहलते रहते हैं, जबकि बाकी बाघ और बाघिन का ठिकाना भोरमदेव अभयारण्य ही है। यह क्षेत्र बाघों के लिए वातानुकूल है। अभयारण्य दो क्षेत्रों में बंटा हुआ है। कोर और बफर जोन में। 192 वर्ग किलोमीटर में बफर जोन है जबकि 160 वर्ग किलोमीटर में कोर जोन। इन दोनों ही क्षेत्र में प्राकृति के मनोरम दृश्य मौजूद हैं। घने जंगल के बीच जलप्रपात भी दिखाई देता है और दूसरे ओर विचरण करते जंगली जानवर भी। नवंबर से मई तक अभयारण्य में मौजूद जानवरों को देखने को मिलता है। पानी पीने के लिए पहाडिय़ों से नीचे तलहटी तक पहुंचते हंै।
सदाबहार वन
अभयारण्य चारों ओर से वनों से ढका हुआ है। चिल्फी बफर जोन में साल के वृक्ष हैं, जबकि कोर जोन में विभिन्न प्रजाति के वृक्ष। इसमें सागौन, कर्रा, साजा, बीजा, शिशु, कसही, हल्दू, मुंडी, कारी, धावड़ा, भोदे, तेंदू, हर्रा, आंवला, बहेड़ा, अमलताश, महुआ, जामुन और आम प्रमुख वृक्ष हैं। चिल्फी बफर जोन साल वृक्ष की वजह से हमेशा हरा-भरा दिखाई देता है जबकि कोर जोर गर्मी में पतझड़ की चपेट में रहता है।
70 से अधिक प्रजाति के पक्षी
भोरमदेव अभयारण्य केवल जंगली जानवरों का नहीं बल्कि पक्षियों का भी ठिकाना है। इस अभयारण्य में 70 से अधिक प्रजाति के पक्षी मौजूद हंै। इसमें ट्रेंगों, ब्लेक आइबिस, राकेट टेल, मोर, तोता, बाज, नीलकंठ, उल्लू, जंगली मुर्गा, कोयल प्रमुख पक्षी है। इसके अलावा मुनिया पक्षी के आठ से नौ प्रजाति भी अभयारण्य क्षेत्र में मौजूद हैं।
चीलत, सांभर और गौर के झुंड
अभयारण्य क्षेत्र में अक्सर शाकाहारी व मांसाहारी जानवर दिखाई देते हैं। चीतल, सांभर और गौर के कई झुंड पोखर के आसपास पानी पीने हुए आसानी से दिख जाते हैं। कभी-कभी बाघ और तेंदुए भी नजर आ जाते हैं। कोर जोन और बफर जोन में 23 वॉटर बॉडी बनाए गए है ताकि जानवरों को गर्मी के दिनों में पानी की कमी न हो।
बाघ तक की मौजूदगी
भोरमदेव अभयारण्य में बिल्ली प्रजाति में दूसरा सबसे बड़ा जानवर मतलब तेंदुआ भी बड़ी संख्या में मौजूद है। यह बफर और कोर दोनों क्षेत्र में मौजूद है। अभयारण्य में लगभग 17 तेंदुए की मौजूदगी दर्ज की गई है। इसमें कवर्धा के नजदीक सरोधा जलाशय से भोरमदेव मार्ग पर भी एक तेंदुए का ठिकाना है। तेंदुआ के अलावा मांसाहारी जानवर में लकड़बग्घा, जंगली कुत्ता, सोनकुत्ता, भेडिय़ा, गीदड़, लोमड़ी मौजूद है। इसी तरह शाकाहारी में नील गाय, जंगली भैस, चीतल, कोटरी, सांबर, गौर की गिनती है। इसके अलावा भालू, जंगली सुअर, लंगुर, नेवला, खरगोश, बिज्जू आदि जानवर मौजूद हैं।
निर्धारित रूट भी
भोरमदेव अभयारण्य की सैर कराने के लिए अब तक वाहन और गाइड भी मौजूद है। 10 वाहनों को अभयाण्य क्षेत्र के निर्धारित रूट पर जाने की अनुमति है। ठंड की शुरुआत से ही यहां पर लोगों की चहलपहल प्रारंभ हो चुकी है। यह जिले के लोगों के लिए एक नया ही पर्यटन स्थल है। रोजाना सुबह व दोपहर दो ट्रीप पर यहां घुमाया जाता है। इसमें प्राकृतिक दृश्य के अलावा चीतल, गौर, सांभर आसानी से दिखाई देंगे। यदि किस्मत ने साथ दिया तो तेंदुआ और बाघ भी दिखाई दे सकता है।
मिजोरम के कूल जिले, राजकीय पशु, पक्षी, फूल पेड़ और रोचक जानकारियां
अपनी सदाबहार पहाड़ियों और घने बांस के जंगलों के लिए जाना जाने वाला मिजोरम उत्तर-पूर्व भारत के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित है। प्राकृतिक प्रेमी और फोटोग्राफर के बिच प्रसिद्द यह राज्य मिजोरम से, आज भी देश कहीं न कहीं अछूता है। इस लेख के माध्यम से आप यह जानेंगे की मिजोरम में कितने जिले हैं, इसके राजकीय पशु, पक्षी, पेड़ और फूल के साथ साथ इससे जुड़ी रोचक जानकारियों को भी पढ़ेंगे।
लेख में मौजूद सामग्री
मिजोरम बॉर्डर से सटे राज्य और देश
दिशा | राज्य / देश |
---|---|
पूर्व (East) | म्यांमार |
पश्चिम (West) | बांग्लादेश |
उत्तर (North) | असम |
उत्तर-पूर्व (North-East) | मणिपुर |
उत्तर-पश्चिम (North-West) | त्रिपुरा |
दक्षिण (South) | म्यांमार और बांग्लादेश |
मिजोरम एक नज़र में
क्षेत्रफल (Area) | 21,081 km 2 |
स्वायत जिला (Autonomous District) | 3 |
जिला (District) | 11 |
अनुमंडल (Sub Division) | 23 |
ब्लॉक (Block) | 26 |
लोकसभा सीटें (No. of Seats in Parliament) | 01 |
विधानसभा सीटें (No. of Seats in State Assembly) | 40 |
राजकीय पशु | Saza (Serow) |
राजकीय पक्षी | Vavu (Hume Bartailed Pheasant) |
राजकीय फूल | Senhri (Red Vanda) |
राजकीय पेड़ | Herhse (Mesual Ferrea/Nahar) |
मिजोरम की राजधानी, उप-राजधानी और वित्तीय राजधानी
जिला | क्षेत्रफल | |
---|---|---|
राजधानी | आइज़ोल | 21,087 km 2 |
उप-राजधानी | — | — |
वित्तीय राजधानी | — | — |
मिजोरम के कूल जिले
मिजोरम में वर्तमान में कूल 11 जिले हैं तथा इन जिलों की क्षेत्रफल और जिला कोड कुछ इस प्रकार हैं।
जिला | जिला कोड | क्षेत्रफल |
---|---|---|
आइज़ोल (Aizol) | AI | 3577 |
चम्फाई (Champhai) | CH | 3168 |
कोलासिब (Kolasib) | KO | 1386 |
लवंगत्लई (Lawngtlai) | LA | 2519 |
लुंगलेई (Lunglei) | LU | 4572 |
ममित (Mamit) | MA | 2967 |
सैहा (Saiha) | SI | 1414 |
सेरछिप (Serchhip) | SE | 1424 |
हनहतयल (Hnahthial) | HN | — |
खावजॉल (Khawzawl) | KW | — |
सैतुअल (Saitual) | ST | — |
मिजोरम से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां
- अंग्रेज़ों की हुकूमत से पहले इस क्षेत्र पर लगभग 60 स्थानीय शाशकों द्वारा शाशन किया गया था। इस दौरान अंतर जनजातीय युद्ध काफी हुआ सदाबहार संपत्ति मौजूद है और गुलामी चरम सिमा पर पहुँच चुकी थी।
- अंग्रेज़ों के समय में यह असम प्रांत का हिस्सा हुआ करता था और इस क्षेत्र का मुख्यालय अंग्रेज़ों ने आइज़ोल को बनाया था।
- मिजोरम राज्य भारत की सेवन सिस्टर राज्यों में से एक महत्वपूर्ण राज्य है।
- 1987 से पहले मिजोरम को राज्य का दर्ज़ा प्राप्त नहीं था और यह असम का हिस्सा हुआ करता था। 20 फरवरी 1987 के बाद 53वें सविधान संसोधन के पश्चात मिजोरम को 23 वां राज्य का दर्ज़ा प्राप्त हुआ।
- अगर आप मिजोरम घूमने की सोच रहे हैं तब आपको वहाँ घूमने के लिए इनर परमिट की आवश्यकता पड़ेगी। विदेशी और घरेलु पर्यटकों के लिए इनर लाइन परमिट के अलग-अलग नियम हैं।
- अगर आपको पक्षियों से लगाव है और साथ ही आप एक फोटोग्राफर भी हैं, तब आपके लिए यह राज्य सबसे अच्छा विकल्प है।
- मिजोरम का लगभग 90.68% हिस्सा आज भी जंगलों से घिरा हुआ है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार मिजोरम की साक्षरता दर लगभग 92% है जो की देश की साक्षरता दर 74% से काफी ज़्यादा है। फिर भी राज्य की 60 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है।
- कर्क रेखा मिजोरम राज्य से भी होकर गुज़रती है।
- अगर आपको पहाड़ और पर्वतों से लगाव है तब मिजोरम राज्य एक बार अवश्य पधारें क्यूंकि यहाँ लगभग 21 चोटियां मौजूद है जो पर्यटकों को आकर्षित करती है।
- इस राज्य की ज़्यादातर पर्व और त्यौहार खेती और फसल से जुडी हुई है तथा मीम कुट, पावल कुट और चापचर तीन सबसे महत्वपूर्ण पारम्परिक त्योहार हैं।
- मिजोरम में असंख्य गुफाएँ पाई जाती हैं जैसे: मिलू पुक को खोपड़ियों की गुफा भी कहा जाता है क्योंकि गुफा की खोज के समय मानव कंकालों का एक विशाल ढेर यहाँ मिला था। इन गुफाओं से दिलचस्प कहानियों जुडी है और यहां प्रकृति की सुंदर रचनाएं भी मौजूद हैं।
- मिज़ो पर्वत श्रृंखला में रहने वाली जनजातियों को कुकीज़ (KUKIS) के नाम से जाना जाता है।
- 1959 में इस राज्य में भयनक अकाल पड़ा था, क्यूंकि चूहों के बढ़ने के कारण चूहे पूरी की पूरी खेत का फसल चट कर जाते थे।
- दहेज़ प्रथा आज भी देश के कुछ हिस्सों में जोर शोर पर है जिसमे लड़के वाले लड़की के परिवार से दहेज़ के रूप में पैसे और सामान की मांग करते हैं। लेकिन मिजोरम राज्य के मिज़ो समाज में यह प्रथा बिल्कुल उलट है यहाँ लड़के वाले लड़की से शादी करने के बदले उनके परिवार वालों को कुछ रकम अदा करते हैं।
- साल 2009 में मिजोरम की सरकार ने पर्यावरण की सुरक्षा हेतु यहाँ पटाखों पर पाबंधी लगा दी थी।
अंतिम शब्द
इस लेख के माध्यम से आपने जाना की मिजोरम में कूल कितने जिले हैं और उनका क्षेत्रफल कितना है। साथ ही आपको मिजोरम से जुड़ी अन्य जानकारी भी मिली। लेख से सम्बंधित किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो तब क्षमा करें और हमें निचे कमेंट करके इसकी जानकारी अवश्य दें। इनसब के अलावा लेख से सम्बंधित किसी प्रकार का कोई सवाल या शंका आपके मन को विचलित करती हो तब आप कमेंट करके हमें अवस्य बतलायें, धन्यवाद।