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किस ब्रोकर का उपयोग करना है?

किस ब्रोकर का उपयोग करना है?

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एल्गो ट्रेडिंग में किस्मत आजमाएं तो कम ही पूंजी लगाएं

शेयर बाजार की तेजी छोटे निवेशकों को इक्विटी की ओर खींच रही है। ऐसे में कुछ निवेशक एल्गोरिदम कारोबार में भी किस्मत आजमा रहे हैं। कंप्यूटर-प्रोग्राम पर आधारित कारोबार में खुदरा निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी के कारण ब्रोकर भी उनको इस सुविधा की पेशकश करने लगे हैं। पिछले कुछ महीनों में 5पैसा, जीरोधा, एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज और अपस्टॉक्स जैसे शेयर ब्रोकरों ने अपने प्लेटफॉर्मों पर छोटे निवेशकों को ऑटोमेटेड सौदे करने की सुविधा दी है। 5पैसा के मुख्य कार्याधिकारी प्रकाश गगडानी ने कहा, 'हमने हाल में जब से एल्गोरिदम कारोबार के लिए प्लेटफॉर्म शुरू किया है, तब से हमको एल्गोरिद्म कारोबार के बारे में छोटे निवेशकों से बड़ी तादाद में पूछताछ मिल रही है।' वह कहते हैं कि इनमें से कई निवेशक या तो एल्गो ट्रेडिंग को आजमाना और जानना चाहते हैं कि यह प्रणाली किस तरह काम करती है या फिर उनकी अपनी खुद की रणनीति है और इसके लिए वे इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना चाहते हैं। ब्रोकरों और निवेशकों की मांग को देखते हुए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) भी एल्गो ट्रेडिंग में छोटे निवेशकों की भागीदारी के लिए नियमों की योजना बना रहा है। बाजार नियामक एक ऐसे श्वेत पत्र पर काम कर रहा है जो यह स्पष्टï करेगा कि किस हद तक व्यक्तिगत निवेशकों को कंप्यूटर प्रोग्राम पर आधारित सौदों के इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए। इस समय खुदरा निवेशकों के लिए एल्गोरिदम ट्रेडिंग के कोई नियम-कानून नहीं है।

एल्गो ट्रेडिंग एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है जो निवेशक द्वारा तय नियमों के आधार पर खरीदारी या बिकवाली कर देता है। यदि निवेशक किसी विमानन कंपनी का शेयर तब खरीदना चाहता है जब तेल कीमतों में गिरावट आए तो वे ऐसे अवसरों की पहचान के लिए वे प्रोग्राम तैयार कर सकते हैं। एल्गो कारोबार का ज्यादातर इस्तेमाल डेरिवेटिव सौदों के लिए होता है जिसे मल्टी-लेग स्ट्रेटजी यानी बहुआयामी रणनीति भी कहा जाता है। इसमें एक समय में एक से अधिक सौदे किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, टू-लेग स्ट्रेटेजी यानी दोतरफा रणनाति में निवेशक वायदा खरीद सकता है और साथ ही पुट को भी बेच सकता है। तकनीकी विश्लेषण का इस्तेमाल करने वाले निवेशक चार्ट और पैटर्न के आधार पर भी सौदे कर सकते हैं।

शुरू से ही ऐसे प्रोग्राम मौजूद हैं जो मौके की पहचान में निवेशकों की मदद करते रहे हैं। लेकिन ब्रोकरों ने ऐसे प्लेटफॉर्म की पेशकश नहीं की जो अवसर की पहचान करके अपने आप से सौदे कर सकें। लेकिन अब छोटे निवेशकों पर ध्यान दे रहे ब्रोकर उनके लिए अपने आप हो जाने वाले सौदों की पेशकश कर रहे हैं। एल्गो के इस्तेमाल का एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें सौदों से जुड़ी किसी तरह की धारणा नहीं होती है। विश्लेषकों का कहना है कि लगभग 95 प्रतिशत लोग दिन के कारोबार में रकम गंवाते हैं और लगभग 70 किस ब्रोकर का उपयोग करना है? प्रतिशत नए डीमैट खाते तीन महीने के अंदर बंद हो जाते हैं। छोटे निवेशकों को एल्गोरिदम ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर मुहैया कराने वाली कंपनी क्वांटइंडिया डॉट इन के संस्थापक रामकृष्णन एस कहते हैं, 'लोग ट्रेडिंग तो शुरू कर देते हैं, लेकिन जब उन्हें नुकसान होता है तो इसे बंद कर देते हैं। लोग बाजार में आते हैं, कुछ पैसा कमाते हैं, फिर बड़े नुकसान का शिकार हो जाते हैं और बाजार से निकल जाते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि इससे उनकी भावनाएं और इच्छाएं जुड़ जाती हैं।'

चूंकि सौदे स्वत: होते हैं। इसलिए निवेशक को अवसर तलाशने और सौदे करने के लिए हर समय कंप्यूटर के सामने बैठे रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रोग्राम-आधारित ट्रेडिंग अधिक तेज भी है और इसमें कई सौदे तुरंत और एक साथ किए जा सकते हैं। जीरोधा के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत कहते हैं, 'चूंकि इसमें ऑर्डरों का प्रबंधन कंप्यूटर ही करता है, इसलिए ऐसे कारोबार में भावनाएं हावी होने की कम आशंका रहती है।' इसमें अच्छी बात यह है कि यदि निवेशक की अपनी खुद की रणनीति है तो वह यह बहुत अच्छी तरह से समझ सकता है कि विभिन्न बाजार हालात में एल्गो ने किस तरह से काम किया।

निवेशक बाजार में अचानक उतार-चढ़ाव से स्वयं को बचाने के लिए भी एल्गो का इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, निफ्टी एक दिन में लगभग 15 मिनट के अंदर 300 अंक लुढ़क सकता है। अगर कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर बाजार पर नजर रखे हुए है तो वह अपने आप आपकी पोजीशन खत्म कर देगा। लेकिन यदि कारोबारी पारंपरिक तौर पर कारोबार कर रहा है तो उसे अपनी पूरी पूंजी से हाथ धोना पड़ सकता है।

निवेशकों के पास या तो एक्सचेंज से मान्यता प्राप्त उन रणनीतियों को इस्तेमाल करने का विकल्प होता है जो ब्रोकरों के प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध होती हों या फिर वे अपनी स्वयं की रणनीति बना सकते हैं। अपनी स्वयं की रणनीति बनाने के लिए किसी निवेशक को ब्रोकर के जरिये एक्सचेंज से संपर्क करने और अपनी रणनीति मंजूर करानी होगी। इस वजह से ब्रोकर द्वारा एल्गो ट्रेडिंग के लिए की जाने वाली पेशकश थोड़ी अलग होती है। 5पैसा और एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज के पास अपने प्लेटफॉर्मों पर एक्सचेंज-स्वीकृत रणनीतियां हैं। एल्गो ट्रेडिंग को अच्छी तरह से समझने के लिए नए निवेशक इन लोकप्रिय रणनीतियों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन जीरोधा जैसे ब्रोकर किसी तरह की रणनीति की पेशकश नहीं करते हैं। वे महज प्लेटफॉर्म मुहैया कराते हैं जहां उनके ग्राहक प्रोग्राम लिख सकते हैं और अपने सौदे अपने आप कर सकते हैं मगर तभी जब उनकी रणनीति एक्सचेंज मंजूर कर दे। चूंकि एल्गो ट्रेड के कारण दुनिया में कुछेक बार बाजार धराशायी हो चुके हैं। लिहाजा एक एक्सचेंज यह जांच करता है कि कोई प्रोग्राम कैसे समूचे कारोबार को प्रभावित कर सकता है। 5पैसा अपने प्लेटफॉर्म और रणनीति मंजूर कराने के लिए सालाना 25,000 रुपये वसूलती है। यदि कोई व्यक्ति यह नहीं जानता है कि कंप्यूटर प्रोग्राम किस तरह लिखा जाए तो ब्रोकर कोडिंग में उसकी मदद करता है और उसका शुरुआती शुल्क 25,000 रुपये है।

वर्ष 2012 में एक अमेरिकी वित्तीय सेवा कंपनी नाइट कैपिटल गु्रप ने ट्रेडिंग में चूक की वजह से 30 मिनट के अंदर 44 करोड़ डॉलर गंवा दिए। यह सही है कि एल्गोरिदम प्रणाली शेयर कारोबार का भविष्य है लेकिन एक्सचेंज, कारोबारी या ब्रोकर के छोर पर छोटी सी चूक भी आपकी पूंजी साफ कर सकती है। लिहाजा, यह जरूरी है कि कोई निवेशक ब्रोकर द्वारा पेश की जा रही प्रौद्योगिकी को अच्छी तरह से समझने में थोड़ा वक्त लगाए। आपको कुछ तकनीकी समझ होना जरूरी है। अगर आप कोई चूक करते हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि उसे कैसे दूर करें। निवेश के किसी दूसरे तौर-तरीके की तरह इसमें भी निवेशक को एल्गो ट्रेडिंग समझने के लिए भी अपना वक्त देना पड़ेगा जिससे कि इसका डर खत्म हो जाए। साथ ही उसे इस्तेमाल की जा रही अपनी रणनीति को और बेहतर बनाना होगा। कोई व्यक्ति अगर वाकई सार्थक मुनाफा कमाना चाहता है तो उसे कम से कम 3 से 6 महीने तक अपनी रणनीति का इस्तेमाल करना होगा। किस ब्रोकर का उपयोग करना है? यदि आपको शुरू में प्रतिफल नहीं मिले तो शुरुआती महीनों में ही एल्गो को अलविदा न कहें। चेन्नई के 41 वर्षीय प्रोग्रामर राजेश गणेश इस समय एक एल्गो-ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर के कोड लिख रहे हैं। गणेश किस ब्रोकर का उपयोग करना है? कहते हैं, 'कई प्लेटफॉर्म अपने निवेशकों को ऐतिहासिक डेटा के आधार पर अपनी रणनीतियां आजमाने की अनुमति देते हैं। उन रणनीतियों का इस्तेमाल न करें जो परखी हुई न हों। यदि आप तकनीक के शौकीन हैं और अपने स्वयं के कोड्ïस लिख सकते हैं तो ऐसे परिदृश्य के विपरीत रणनीति को आजमाएं जिसमें बाजार में गिरावट आई हो या बाजार में अचानक बड़ा उतार-चढ़ाव आया हो।' चूंकि छोटे निवेशकों के लिए एल्गो ट्रेडिंग अभी शुरुआती अवस्था में है, इसलिए अपने डायरेक्ट इक्विटी पोर्टफोलियो का छोटा हिस्सा ही इसमें इस्तेमाल करें। कई ब्रोकरों और विश्लेषकों का कहना है कि निवेशकों को एल्गो पर आधारित शेयरों में ट्रेडिंग के लिए अपने पोर्टफोलियो का 15-20 फीसदी से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाना चाहिए।

SEBI ने डीमैट अकाउंट को लेकर किया बड़ा बदलाव, ब्रोकर्स को अब करना होगा यह काम

Demat Accounts: डीमैट खाते खोलने वाले ब्रोकर्स की सही पहचान के लिए सेबी की तरफ से नियम कड़े कर दिए गए हैं.

30 जून तक ब्रोकर्स को करना होगा यह काम

Demat Accounts: शेयर बाजार के निवेशकों के लिए बड़ी खबर सामने आ रही है. सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने डीमैट खाते (Demat Account) को लेकर नियमों में कुध बदलाव कर दिए हैं. डीमैट खाते खोलने वाले ब्रोकर्स की सही पहचान के लिए सेबी की तरफ से नियम कड़े कर दिए गए हैं.सेबी के नियम के अनुसार, जिन लोगों के पास डीमैट अकाउंट है उन्हें अब कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा.

सेबी ने ज्यादा ट्रांसपैरेंसी के लिए ब्रोकर्स की अलग पहचान के लिए नियम कड़े किए हैं. सेबी ने सोमवार को जारी किए गए सर्कुलर में कहा कि सभी ब्रोकर्स को सभी कैटेगरी के डीमैट खातों का नामकरण करना होगा. ताकि पता चल सके कि ब्रोकर ने जो डीमैट खाता खोला है वो किस मकसद के लिए है. सेबी ने इसके लिए ब्रोकर्स को 30 जून तक का मौका दिया है.

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30 जून तक ब्रोकर्स को करना होगा यह काम

अगर 1 जुलाई से खातों की टैगिंग या नामकरण नहीं होगा तो उन खातों से किसी भी शेयर की खरीद नहीं हो सकेगी. लेकिन अगर किसी कॉरपोरेट एक्शन यानि बोनस आदि की वजह से शेयर क्रेडिट होते रहेंगे. जबकि ही 1 अगस्त से कंप्लायंस न होने पर इन खातों से शेयर बेचे भी नहीं जा सकेंगे. एक्सचेंजेज और डिपॉजिटरीज को 1 जुलाई को और किस ब्रोकर का उपयोग करना है? फिर 1 अगस्त को कंप्लायंस की रिपोर्ट सेबी को सौंपनी होगी. सेबी नियमों के तहत अभी कुल 5 किस्म के डीमैट खाते खोले जाते हैं.

जानिए सेबी ने क्या कहा

सेबी ने आगे कहा कि अगस्त से बिना टैग वाले किसी भी डीमैट खाते में प्रतिभूतियों के डेबिट की भी अनुमति नहीं होगी. स्टॉक ब्रोकर को 1 अगस्त से ऐसे डीमैट खातों को टैग करने की अनुमति देने के लिए स्टॉक एक्सचेंजों से अनुमति लेनी होगी और बदले में एक्सचेंजों को अपनी आंतरिक नीति के अनुसार जुर्माना लगाने के बाद दो कार्य दिवसों के भीतर इस तरह की मंजूरी देनी होगी. सेबी ने कहा कि स्टॉक ब्रोकरों के सभी डीमैट खाते जो बिना टैग के हैं, उन्हें 30 जून, 2022 तक उचित रूप से टैग करने की आवश्यकता है.

Explainer : क्‍या है अल्‍गो ट्रेडिंग और सेबी के किस नियम से ब्रोकर्स में मचा हड़कंप, क्‍या इस ट्रेडिंग से मिलता है तय रिटर्न?

सेबी ने अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.

सेबी ने हाल में ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर नियम बनाया है. देश में तेजी से बढ़ रही इस ट्रेडिंग को लेकर अभी तक किस ब्रोकर का उपयोग करना है? कोई रेगुलेश नहीं था. इसके बाद जिरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने भी अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर बयान दिया, जिसके बाद यह चर्चा उठी कि आखिर अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर सेबी को क्‍या संशय है.

  • News18Hindi
  • Last Updated : September 07, 2022, 15:15 IST

हाइलाइट्स

पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.
स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है.
इसमें जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

नई दिल्‍ली. अग्‍लो ट्रेडिंग जिसका पूरा नाम अल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algorithm Trading) है, यह वैसे तो भारत में नया कॉन्‍सेप्‍ट है लेकिन इसका इस्‍तेमाल साल 2008 से ही होता रहा है.

अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर अभी तक ब्रोकर तय रिटर्न का दावा करते थे, लेकिन पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं और इसके बाद से ट्रेडिंग की इस नई विधा पर बहस भी शुरू हो गई है. इस बहस को हवा तब मिली जब जिरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने अल्‍गो ट्रेडिंग के तय रिटर्न वाले दावे पर सवाल उठाए. उन्‍होंने कहा, अभी तक इसे लेकर काफी भ्रम फैलाया जा चुका है.

कैसे होती है अल्‍गो ट्रेडिंग
अल्‍गो ट्रेडिंग में स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है. इसमें स्‍टॉक चुनने के लिए जिस गणना का उपयोग होता है, वह भी कंप्‍यूटर द्वारा ही किया जाता है. इसीलिए इसका नाम ऑटोमेटेड या प्रोग्राम्‍ड ट्रेडिंग भी है. इसके लिए कंप्‍यूटर में पहले से ही अलग-अलग पैरामीटर्स के हिसाब से गणनाएं फीड की जाती हैं. साथ ही स्‍टॉक को खरीदना या बेचना है उसका निर्देश, शेयर बाजार का पैटर्न और सभी नियम व शर्ते भी पहले से फीड कर दी जाती हैं. जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

इस सिस्‍टम का लिंक स्‍टॉक एक्‍सचेंज के सर्वर से जुड़ा होता है, लिहाजा बाजार की पल-पल की अपडेट भी मिलती रहती है. इसकी मदद से ट्रेडिंग का समय काफी बच जाता है और ब्रोकर को भी सही स्‍टॉक चुनने में मदद मिलती है. यही कारण है कि अभी तक ब्रोकर यह दावा करते थे कि अल्‍गो ट्रेडिंग के जरिये तय रिटर्न मिलना आसान है. उनका तर्क था कि यह सिस्‍टम किसी स्‍टॉक की भविष्‍य की संभावनाओं और पुराने प्रदर्शन का सही व सटीक आकलन कर सकता है.

क्‍यों पड़ी सेबी की निगाह
बाजार नियामक सेबी ने दिसंबर, 2021 में ही कहा था कि वह जल्‍द ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर कुछ नियम बनाने वाला है. सेबी के दखल देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी भारतीय शेयर बाजार में होने वाली करीब 50 फीसदी ट्रेडिंग इसी विधा के जरिये की जाती है. इससे पहले तक यह ट्रेडिंग पूरी तरह नियंत्रण से बाहर थी, लेकिन अब सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम किस ब्रोकर का उपयोग करना है? बना दिए हैं.

क्‍या है सेबी का नया नियम
बाजार नियामक ने पिछले सप्‍ताह एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जो भी ब्रोकर अल्‍गो ट्रेडिंग की सेवाएं देते हैं, वे प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष किसी भी रूप में स्‍टॉक के पुराने प्रदर्शन या भविष्‍य की संभावनाओं की जानकारी अपने उत्‍पाद के साथ नहीं दे सकेंगे. यह कदम ब्रोकर्स के उन दावों के बाद उठाया गया है, जिसमें अल्‍गो ट्रेडिंग की मदद किस ब्रोकर का उपयोग करना है? से निवेशकों को तय और ऊंचे रिटर्न का झांसा दिया जाता था.

सेबी ने अपने सर्कुलर में यह भी कहा है कि अगर कोई ब्रोकर या उससे जुड़ी फर्म ने अपनी वेबसाइट या अन्‍य किसी माध्‍यम से किए गए प्रचार-प्रसार में अल्‍गो ट्रेडिंग से जुड़े इन कयासों का उल्‍लेख किया है तो सर्कुलर जारी होने के 7 दिन के भीतर उसे हटा दिया जाना चाहिए. निवेशकों के हितों को देखते हुए ब्रोकर भविष्‍य में ऐसा कोई प्रलोभन नहीं दे सकेंगे.

क्‍या सच में फायदेमंद है अल्‍गो ट्रेडिंग
भारतीय शेयर बाजार में अल्‍गो ट्रेडिंग का इस्‍तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और अब तो आधे से ज्‍यादा ब्रोकर इसी का इस्‍तेमाल करते हैं. ऐसे में यह तो तय है कि अल्‍गो ट्रेडिंग कुछ फायदेमंद है, लेकिन इसका सही उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि ब्रोकर को कुछ सटीक जानकारियां मिल सकें. इसमें स्‍टॉक की हिस्‍ट्री, उसके आंकड़ों का वेरिफिकेशन और रिस्‍क मैनेजमेंट की गणना सबसे जरूरी है.

क्‍यों बढ़ रहा इसका चलन
1-हिस्‍ट्री की सही समीक्षा : सबसे जरूरी है कि किसी स्‍टॉक के पिछले प्रदर्शन की सही समीक्षा और उसके बाजार पैटर्न को समझकर ही उसके भविष्‍य में प्रदर्शन का आकलन लगाना चाहिए, जो कंप्‍यूटर बेहतर तरीके से करता है.
2-गलतियों की कम गुंजाइश : अल्‍गो ट्रेडिंग का पूरा काम कंप्‍यूटर के जरिये होता है. ऐसे में ह्यूमन एरर जैसी चीजों की आशंका शून्‍य हो जाती है. साथ ही यह रियल टाइम के प्रदर्शन के आधार पर भी स्‍टॉक का चुनाव कर सकता है.
3-भावनात्‍मक प्रभाव में कमी : अल्‍गो ट्रेडिंग में किसी स्‍टॉक का चुनाव करते समय मानवीय भावनाएं आती हैं, क्‍योंकि इसकी गणना और चुनाव पूरी तरह से मशीन के हाथ में होता है.
4-ज्‍यादा रणनीति का सृजन : कंप्‍यूटर एल्‍गोरिद्म के जरिये एक ही समय में सैकड़ों रणनीति बनाई जा सकती है. इससे आपका जोखिम प्रबंधन मजबूत होता है और निवेश पर ज्‍यादा रिटर्न कमाने के कई रास्‍ते खुलते हैं.
5-एरर फ्री ट्रेडिंग : अल्‍गो ट्रेडिंग पूरी तरह मशीन पर आधारित होने के नाते इसके जरिये गलत ट्रेडिंग या मानवीय गलतियों की आशंका भी खत्‍म हो जाती है. यही कारण है कि खुदरा निवेशकों में भी अब अल्‍गो ट्रेडिंग का चलन बढ़ रहा है.

इसके नुकसान भी हैं
-अल्‍गो ट्रेडिंग में बिजली की खपत ज्‍यादा होती है और पावर बैकअप न होने पर कंप्‍यूटर क्रैश भी हो सकता है. इससे गलत ऑर्डर, डुप्लिकेट ऑर्डर या फिर लापता ऑर्डर भी हो सकते हैं.
-ट्रेडिंग के लिए बनाई जा रही रणनीति और उसकी वास्‍तविक रणनीति के बीच अंतर हो सकता है. कई बार कंप्‍यूटर में खराबी की वजह से भी ऐसी स्थिति आ सकती है.
-कंप्‍यूटर आपको कई रणनीति और रिटर्न का कैलकुलेशन और रास्‍ता बताएगा, जो आपका नुकसान भी करा सकता है, क्‍योंकि बाजार की वास्‍तविक स्थितियां मशीनी रणनीति से अलग हो सकती हैं.

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