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आभासी मुद्रा

आभासी मुद्रा
क्रिप्टोकरेंसी की प्रतीकात्मक तस्वीर | विकीमीडिया कॉमन्स

भारत में भी अब होगी डिजिटल मुद्रा की एंट्री, नाम होगा ‘डिजिटल रुपया’

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को संसद में पेश आम बजट के मुताबिक 'डिजिटल रुपया' नामक यह मुद्रा, रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी किया जाएगा और इसे भौतिक मुद्रा के साथ बदला जा सकेगा.

क्रिप्टोकरेंसी की प्रतीकात्मक तस्वीर | विकीमीडिया कॉमन्स

नई दिल्ली: क्रिप्टो या डिजिटल मुद्राओं को लेकर दुनियाभर में दीवानगी है और भारत में भी एक अप्रैल से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में इसका देशी संस्करण पेश किया जाएगा, जो भौतिक रूप से प्रचलित मुद्रा के डिजिटल रूप को प्रतिबिंबित करेगा.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को संसद में पेश आम बजट के मुताबिक ‘डिजिटल रुपया’ आभासी मुद्रा नामक यह मुद्रा, रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी किया जाएगा और इसे भौतिक मुद्रा के साथ बदला जा सकेगा.

इस केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को नियंत्रित करने वाले विनियमन को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

सीबीडीटी एक डिजिटल या आभासी मुद्रा है, लेकिन इसकी तुलना निजी आभासी मुद्राओं या क्रिप्टो करेंसी से नहीं की जा सकती है, जिनका चलन पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है. निजी डिजिटल मुद्राएं किसी भी व्यक्ति की देनदारियों का प्रतिनिधित्व आभासी मुद्रा नहीं करती हैं, क्योंकि उनका कोई जारीकर्ता नहीं है. वे निश्चित रूप से मुद्रा नहीं हैं.

आरबीआई निजी क्रिप्टो करेंसी का कड़ा विरोध कर रहा है, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव डाल सकते हैं.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि सीबीडीसी की शुरुआत से डिजिटल अर्थव्यवस्था को बड़ा बढ़ावा मिलेगा.

उन्होंने कहा, ‘‘डिजिटल करेंसी से एक अधिक दक्ष तथा सस्‍ती करेंसी प्रबंधन व्‍यवस्‍था वजूद में आएगी. डिजिटल करेंसी ब्‍लॉक चेन तथा अन्‍य प्रौद्योगिकियों का उपयोग करेगी.’’

Patrika Opinion: आभासी मुद्रा के कारोबार का नियमन ही विकल्प

Patrika Opinion: सभी लोकतांत्रिक देशों को मिलकर तय करना होगा कि क्रिप्टोकरेंसी गलत हाथों में न जाए, अन्यथा युवाओं का भविष्य बर्बाद हो सकता है। क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार किसी सरकारी नियामक या प्राधिकरण के दायरे में न होने से निवेशकों के साथ-साथ सरकार के लिए भी खतरा है।

Patrika Opinion

Patrika Opinion: क्रिप्टो बाजार में जारी उथल-पुथल लगातार चिंता बढ़ा रही है। पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार की क्रिप्टोकरेंसी बिल लाने की घोषणा होते ही क्रिप्टो बाजार बुरी तरह धराशायी हुआ था। पिछले हफ्ते इसने फिर गहरा गोता लगाया। बिटकॉइन, इथेरियम, डॉजकॉइन, पोल्काडॉट समेत सभी आभासी मुद्राओं के दाम जमीन पर आ गए। ढाई महीने में यह बाजार निवेशकों को 110 लाख करोड़ रुपए का झटका दे चुका है। जिस बाजार में एक साल में 12 फीसदी रिटर्न के सपने दिखाए जाते हों, उस बाजार को शक के दायरे में होना चाहिए, लेकिन क्रिप्टो बाजार ने दुनियाभर में ऐसा मायाजाल रच दिया है कि लोग आंख मूंदकर दांव लगा रहे हैं।

चिंताजनक पहलू यह भी है कि दुनियाभर की सरकारों की चेतावनी के बावजूद क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वालों की आबादी बढ़ती जा रही है। क्रिप्टो डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दुनियाभर में क्रिप्टोकरेंसी रखने वालों की संख्या दोगुनी होकर करीब 22 करोड़ हो गई है। इनमें से 73 लाख भारत के हैं। भारत के बड़े शहरों में ही नहीं, गांव-कस्बों तक क्रिप्टो की लहर पहुंच चुकी है, जबकि भारत सरकार की ओर से इसे मान्यता नहीं दी गई है। भारतीय रिजर्व बैंक ने 2018 में सभी बैंकों को निर्देश दिए थे कि वे क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में किसी भी तरह का कामकाज नहीं करें।

न होने पाए स्थानीय भाषाओं की उपेक्षा

क्रिप्टोकरेंसी की अस्थिर और खतरनाक उछाल या गिरावट को लेकर बाजार विशेषज्ञ लगातार सतर्क कर रहे हैं। चूंकि क्रिप्टो बाजार पूरी तरह इंटरनेट के जरिए संचालित होता है, इसलिए बड़े घोटाले और धोखाधड़ी के खतरे भी कम नहीं हैं। ऐसे ही खतरों को भांपते हुए केंद्र सरकार संसद के पिछले शीतकालीन सत्र में क्रिप्टोकरेंसी नियामक और करेंसी बिल पेश करने वाली थी। तब यह संभव नहीं हुआ, पर अब बजट सत्र में यह बिल पेश कर क्रिप्टो बाजार पर अंकुश की दिशा में बढ़ा जा सकता है।

आपकी बात, क्या आम जनता का लोकतंत्र के प्रति विश्वास कम हो रहा है ?

प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि अनियंत्रित क्रिप्टो बाजार को धनशोधन और आतंकी फंडिंग का जरिया नहीं बनने दिया जा सकता। सभी लोकतांत्रिक देशों को मिलकर तय करना होगा कि क्रिप्टोकरेंसी गलत हाथों में न जाए, अन्यथा युवाओं का भविष्य बर्बाद हो सकता है। क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार किसी सरकारी नियामक या प्राधिकरण के दायरे में न होने से निवेशकों के साथ-साथ सरकार के लिए भी खतरा है। इसके नियमन और नियंत्रण पर फौरी कदम उठाना जरूरी हो गया है। इसके दुरुपयोग की आशंकाओं को टालने के साथ निवेशकों को इसके बाजार की अस्थिरता से बचाने के लिए फिलहाल यही प्रभावी विकल्प प्रतीत होता है।

बिटक्वाइन से अर्थव्यवस्था को खतरा

आभासी मुद्रा यानी वर्चुअल मुद्रा में लेन-देन की बढ़ती प्रवृत्ति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नया खतरा बन चुका है। न केवल इससे भारतीय रिजर्व बैंक चिन्तित है बल्कि सरकार भी चिन्तित है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस गैरकानूनी लेन-देन और कारोबार में लिप्त लोगों आैर प्रतिष्ठानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का […]

बिटक्वाइन से अर्थव्यवस्था को खतरा

आभासी मुद्रा यानी वर्चुअल मुद्रा में लेन-देन की बढ़ती प्रवृत्ति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नया खतरा बन चुका है। न केवल इससे भारतीय रिजर्व बैंक चिन्तित है बल्कि सरकार भी चिन्तित है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने इस गैरकानूनी लेन-देन और कारोबार में लिप्त लोगों आैर प्रतिष्ठानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का फैसला किया है। पिछले महीने बिटक्वाइन की कीमत 10000 डॉलर को छू गई थी। भारतीय करेंसी में इसकी कीमत देखें तो यह लगभग साढ़े छह लाख रुपए बैठती थी। लक्जमबर्ग आधारित बिटक्वाइन एक्सचेंज के मुताबिक वर्ष 2017 में बिटक्वाइन ने अपना सफर 1000 डॉलर से शुरू किया था यानी जनवरी की शुरूआत में एक बिटक्वाइन के बदले 1000 डॉलर मिलते थे।

2009 में बिटक्वाइन लांच होने के बाद इस आभासी मुद्रा के दाम में भारी उतार-चढ़ाव आता रहा है। बिटक्वाइन आैर अन्य आभासी मुद्राओं में भारी मुनाफे का जनता से वादा कर निवेशकों को भी आकर्षित किया गया है। बिटक्वाइन का बढ़ता प्रचलन देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरे का संकेत है। कहा तो यह भी जा रहा है कि बिटक्वाइन का हस्र कहीं 17वीं सदी की शुरूआत में ट्यूलिप के फूलों की कीमतों में आए अचानक उछाल जैसा न हो जाए। इसका अनुमान 1623 की एक घटना से लगा सकते हैं। एम्सटर्डम शहर में आज के टाउन हाउस के बराबर की कीमत में उस वक्त ट्यूलिप की एक खास किस्म की 10 गांठें खरीदी गई थीं।

1637 के आते-आते ट्यूलिप की गांठों का कारोबार बुलन्दी तक पहुंच चुका था। उस वक्त बड़े कारोबारी ही नहीं, समाज का निम्न माना जाने वाला वर्ग भी ट्यूलिप के धंधेे में लग गया था। 1637 में ही एक दिन ऐसा आया कि अचानक ट्यूलिप का बाजार देखते ही देखते ध्वस्त हो गया। वजह सिर्फ यही थी कि धनी लोग भी सस्ते से सस्ता ट्यूलिप खरीद नहीं सकते थे। बिटक्वाइन एक वर्चुअल मुद्रा है जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। इस मुद्रा को किसी बैंक ने जारी नहीं किया है। चूंकि यह किसी देश की मुद्रा नहीं है इसलिए इस पर कोई टैक्स भी नहीं लगता। यह पूरी तरह से गोपनीय करेंसी है आैर इसे सरकार से बचाकर रखा जाता है क्योंकि यह करेंसी सिर्फ कोड में होती है इसलिए न इसे जब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक इस समय डेढ़ करोड़ से भी अधिक बिटक्वाइन प्रचलन में है। ​बिटक्वाइन खरीदने के लिए यूजर को पता रजिस्टर करना होता है। यह पता 27-34 अक्षरों या अंकों के कोड में होता है और वर्चुअल पते की तरह काम करता है। इसी पर बिटक्वाइन भेजे जाते हैं।

बिटक्वाइन के माध्यम से हो रहे लेन-देन से कर राजस्व को भारी क्षति पहुंचती है। बिटक्वाइन गैरकानूनी आैर नियमन के दायरे से बाहर है इसलिए सेबी भी अभी नियामक की भूमिका निभाने को तैयार नहीं है। मैं नहीं जानता कि ऐसी खबरों में कितनी सच्चाई है कि शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन ने बिटक्वाइन से करोड़ों रुपए कमाए। हाल ही में ऐसी खबरें आई थ​ीं कि अमिताभ बच्चन ने कुछ वर्ष पहले आभासी मुद्रा खरीदी थी और बिटक्वाइन की कीमत बढ़ने के बाद उन्हें करोड़ों का लाभ हुआ। फिलहाल मौजूदा आभासी मुद्रा आयकर कानून के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जा रही है। देश में अनेक जगह छापे मारे गए हैं। आयकर विभाग ने बिटक्वाइन में लेन-देन करने वालों पर शिकंजा कसने के उद्देश्य से लगभग 5 लाख लोगों को नोटिस देने का फैसला किया है। बिटक्वाइन एक्सचेंजों के माध्यम से ट्रेनिंग ली जाती है और इसमें 4-5 लाख लोग सक्रिय हैं, जो लेन-देन आैर निवेश से जुड़े हैं। समस्या यह भी है कि अभी तक ​बिटक्वाइन से संबंधित वास्तविक आंकड़ा नहीं है। इसे वित्त राज्यमंत्री टी. राधाकृष्णन ने भी संसद में स्वीकार किया है। समूचे विश्व में बिटक्वाइन लेन-देन का प्रचलन बड़ी तेजी आभासी मुद्रा से बढ़ा है।

स्वाभाविक है कि भारत में कालेधन के कुबेरों की भी इसके प्रति रुचि बढ़ी है। डेबिट-क्रेडिट कार्ड के माध्यम से लेन-देन करने से 2 या 3 प्रतिशत शुल्क लगता है लेकिन बिटक्वाइन लेन-देन पर कोई शुल्क नहीं देना पड़ता। लेन-देन की इस समानांतर व्यवस्था के माध्यम से कर की भी भारी चोरी हो रही है जिसका प्रतिकूल असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। भारत के कई अमीरों ने अपने कालेधन से आभासी मुद्रा खरीद रखी है आैर वे इसी के माध्यम से लेन-देन कर रहे हैं। कई अरबपति भी बिटक्वाइन से ही लेन-देन कर रहे हैं। सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी आभासी मुद्रा को मान्यता नहीं देती। अब बिटक्वाइन की कीमत गिर रही आभासी मुद्रा है। सरकार का यह दायित्व है कि अत्यन्त जोखिम भरे इस गैरकानूनी लेन-देन के संबंध में जनता को चेतावनी दे क्योंकि इस लेन-देन को कोई कानूनी सुरक्षा भी नहीं है इसलिए यह बहुत ज्यादा जोखिम भरा है।

माना जा रहा है कि आज दुनियाभर में 2.5 करोड़ से अधिक बिटक्वाइन सर्कुलेशन में हैं। कहा जाता है कि होटल बुक कराने, सैर-सपाटा करने और हीरे-जवाहरात खरीदने से लेकर सट्टाबाजारी, कत्ल की सुपारी और फिरौती के लिए बिटक्वाइन का इस्तेमाल हो रहा है। सवाल यह भी है कि बिटक्वाइन भविष्य की करेंसी है या एक गुब्बारा जिसे फुलाया जा रहा है, जो कभी भी फट सकता है। सरकार का दायित्व है कि इस गैरकानूनी लेन-देन के संबंध में जनता को अवगत कराए लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि बिटक्वाइन का इस्तेमाल गरीब आैर मध्यम वर्ग तो करता नहीं है। इसका इस्तेमाल कालेधन के कुबेर ही कर रहे हैं। सरकार अभी तक यह तय नहीं कर पा रही कि आखिर उसे इस संबंध में करना क्या है क्योंकि बिटक्वाइन पर सरकारी नियंत्रण या सरकार की कोई गारंटी नहीं है इसलिए इस पर पाबंदी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है और सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक को चार हफ्ते के भीतर बिटक्वाइन पर फैसला करने का समय दिया है। देखना यह है कि सरकार बिटक्वाइन के खतरे से कैसे निपटती है?

आभासी मुद्राओं के विज्ञापन पर रोक का निर्णय नहीं

नई दिल्ली (एजेंसी)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि देश में आभासी मुद्रा (क्रिप्टोकरेंसी) से संबंधित विधेयक कैबिनेट की मंजूरी के बाद आयेगी लेकिन क्रिप्टो को लेकर विभिन्न माध्यमों पर आ रहे विज्ञापनों पर रोक लगाने का निर्णय अभी नहीं लिया गया है।

श्रीमती सीतारमण ने प्रश्नकाल के दौरान सदन में पूरक प्रश्नों के उत्तर में कहा कि यह एक जोखिम भरा है और यह पूरी तरह से नियामक फ्रेमवर्क भी नहीं है। इसके विज्ञापनों पर रोक लगाने का निर्णय भी नहीं लिया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी के माध्यम से लोगों में इसके प्रति जागरूकता लाने की कोशिश की गयी है। उन्होंने कहा कि आभासी मुद्राओं से अवांछित गतिविधियों को भी बढ़ावा मिल सकता है, इसलिए इस पर करीबी निगरानी की जायेगी। उन्होंने कहा कि सरकार इसके लिए एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है जिसमें पुराने विधेयक के साथ ही नये प्रावधान भी होंगे।

वित्त मंत्री ने कहा कि कहा कि नॉन फंगिबल टोकन्स (एनएफटी) के नियम पर भी चर्चा की जायेगी। भारतीय जनता पार्टी के सुशील कुमार मोदी द्वारा इस संबंध में पूछे गये पूरक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि एनएफटी के नियम पर भी चर्चा ही जायेगी।

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