व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा

व्यापारियों के समर्थन में हर संघर्ष को तैयार है भारतीय किसान यूनियन: चढ़ूनी
भाकियू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसान व व्यापारी का एक दूसरे के बिना जीवन यापन मुश्किल है। इसलिए वे किसानों के साथ खड़े हैं। बाढड़ा उपमंडल मुख्यालय पर कई पीढि़यों से मकान और दुकान बनाकर अपने परिवार की आजीविका चलाने वाले व्यापारियों को शामलाती ठोलेदार के रूप में किसी सूरत में उजड़ने नहीं दिया जाएगा।
संवाद सहयोगी, बाढड़ा: भाकियू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसान व व्यापारी का एक दूसरे के बिना जीवन यापन मुश्किल है। इसलिए वे किसानों के साथ खड़े हैं। बाढड़ा उपमंडल मुख्यालय पर कई पीढि़यों से मकान और दुकान बनाकर अपने परिवार की आजीविका चलाने वाले व्यापारियों को शामलाती, ठोलेदार के रूप में किसी सूरत में उजड़ने नहीं दिया जाएगा। सांसदों को इसी सत्र में बिल लाकर व्यापारी हितों की रक्षा करनी चाहिए। यह बात उन्होंने कस्बे के व्यापारियों से मुलाकात के दौरान मुख्य क्रांतिकारी चौक पर कही।
उन्होंने कहा कि आजादी के संघर्ष में किसान परिवारों ने अपनी भूमि तक को गिरवी रखकर आजादी के वीरों की मदद की वहीं व्यापारी वर्ग ने अपनी नेक कमाई को इस लड़ाई में लगा दिया है, लेकिन विडंबना है कि उसी किसान व व्यापारी समाज को उनकी रिहायश व दुकानों से बेदखल किया जा रहा है। कारीमोद के किसान हों या बाढड़ा के व्यापारी सभी ने दिन रात मेहनत कर भूमि की खरीद कर कहीं कृषि तो कहीं मकान व कामर्शियल गतिविधियों के लिए दुकान बनाई, लेकिन आज उनको बेदखल करना अन्याय है। क्षेत्र के किसानों को अपने अपने विधायकों व सांसदों पर दबाव बनाकर संसद व विधानसभा में इस बिल के खिलाफ अध्यादेश लाने की मांग करने चाहिए। जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदे जनहितों की आवाज बनने के बजाय मूकदर्शक बनकर गरीब किसान मजदूर के आशियाने तुड़वाने का काम कर रहे हैं। कृषि में प्रयोग होने वाले उपकरण, खाद बीज व दवाओं को मनमर्जी दामों पर बेचकर उसे कर्ज की दलदल में फंसाया जा रहा है वहीं व्यापारी वर्ग पर कभी जीएसटी, कभी ईडी की छापेमारी कर उनका शोषण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब समाज के सभी वर्गों को एकजुट होकर सरकार के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़नी चाहिए। गांव कारीमोद व बाढड़ा की भूमि को बचाने के लिए पांच अगस्त को गांव कारीमोद में होने वाली भूमि बचाओ रैली में बढ़चढ़ कर भागेदारी करनी चाहिए।
इस अवसर पर व्यापारियों ने उनको बताया कि वे कस्बे में पिछले सौ साल से रह रहे हैं, लेकिन अब उनको जानबूझ कर भूमि से बेदखल किया जा रहा है। जिस पर किसान नेता ने दावा किया कि वह हजारों किसानों के साथ प्रशासन से सीधे टकराव करने से पीछे नहीं हटेंगे। इस मौके पर व्यापार मंडल के पूर्व अध्यक्ष रामकिशन फौजी, भाकियू अध्यक्ष धर्मपाल बाढड़ा, हरपाल सिंह भांडवा, राजेंद्र डोहकी, संदीप कारीमोद, नवीन कारी, प्रेरक संघ प्रदेश अध्यक्ष विनोद मांढी, धर्मबीर सिंह, ईश्वर सिंह, गिरधारी मोद, रणधीर सिंह हुई, किसान नेता महेंद्र जेवली, कमल सिंह हड़ौदी, प्रताप हंसावास, सुरेंद्र हड़ौदी, महेंद्र शर्मा भी मौजूद रहे।
ब्रिटिश शासन के दौरान पश्चिमी शिक्षा का प्रसार
इस स्वदेशी शिक्षा ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बजाय भाषाओं की विद्वता पर अधिक बल दिया और जब तक अंग्रेज व्यापारियों के रूप में भारत आए, फ़ारसी अदालत की भाषा थी और धार्मिक आस्था के बावजूद, हिंदू और मुस्लिम दोनों ने शासकों के अधीन रोजगार प्राप्त करने के लिए फ़ारसी सीखी। औपनिवेशिक भारत के पूर्व।
मदरसों और पातशालों के अलावा, मौखिक शिक्षा और ग्रंथों के संस्मरण पर आधारित भाषा प्रवीणता सिखाने वाले साधारण स्कूलों के साथ-साथ भाषाओं में सीखने के उन्नत केंद्र भी मौजूद थे। ब्रिटिश जिन्होंने क्षेत्रीय नियंत्रण हासिल कर लिया और राजनीतिक स्वामी बन गए, उन्होंने 1813 तक शैक्षिक क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया। 1813 के बाद, भारतीयों के सहयोग या सीमित संख्या के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में शिक्षा की पश्चिमी प्रणाली शुरू की।
भारतीयों और अंग्रेजों के बीच एक बड़ी बहस हुई, जिसे 'ओरिएंटलिस्ट' और 'एंग्लिसिस्ट' के रूप में जाना जाता है, जो कि भारतीयों द्वारा आवश्यक शिक्षा के प्रकार के बारे में था। लगभग आधी सदी से अधिक समय तक, अंग्रेजों ने स्वदेशी लोगों के धर्म और संस्कृति के मामलों में तटस्थता या गैर-हस्तक्षेप की नीति का पालन किया।
लेकिन विभिन्न वर्गों के लगातार दबाव के कारण - ईसाई मिशनरियों, उदारवादियों, उपयोगितावादियों और अंग्रेजों - अंग्रेजों ने उपज ली और पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए सहमत हुए। एक विचार यह भी है कि शैक्षिक नीति को ब्रिटिश औपनिवेशिक जरूरतों के वर्चस्व को वैध बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
इसमें कोई संदेह नहीं है, अंग्रेजों के बीच कुछ लोग भी मौजूद थे, जो वास्तव में प्राच्य विद्या के प्रचार में रुचि रखते थे, जैसे कि वॉरेन हेस्टिंग्स जिन्होंने 1781 में कलकत्ता मदरसा शुरू किया था, जोनाथन डंकन जिन्होंने 1791 में बेनेरस संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की थी और विलियम जेम्स, जिन्होंने स्थापना की 1784 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल। इस महान बहस में, अंत में एंग्लिसिस्ट, भारत में शिक्षा की पश्चिमी प्रणाली को शुरू करने में सफल रहे। भारत में शिक्षा के विकास की देखभाल के लिए सार्वजनिक अनुदेश की एक सामान्य समिति 1823 में स्थापित की गई थी।
मैकाले, जनरल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष और लॉर्ड बेंटिंक ने प्राच्यवादी दृष्टिकोण की ओर इशारा किया और घोषणा की, "भारत में ब्रिटिश सरकार की महान वस्तु इसलिए भारत के मूल निवासियों के बीच यूरोपीय साहित्य और विज्ञान को बढ़ावा देना है।" शिक्षा के उद्देश्य के लिए विनियोजित धनराशि अकेले अंग्रेजी शिक्षा पर नियोजित होगी ”। मैकाले और विलियम बेंटिन के अलावा, चार्ल्स ग्रांट और विलियम विल्बरफोर्स के प्रयासों को इस पहलू में याद रखने योग्य है।
विलियम बेंटिक ने 1835 में घोषणा की कि अंग्रेजी ने फ़ारसी को अदालत की भाषा के रूप में बदल दिया, अंग्रेजी में किताबें कम कीमतों पर उपलब्ध कराई गईं और अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन करने के लिए अधिक धनराशि आवंटित की गई, और प्राच्य विद्या के समर्थन के लिए निधि को बंद कर दिया गया। गवर्नर जनरल के रूप में बेंटिक सफल होने वाले लॉर्ड ऑकलैंड ने डक्का, पटना, बनारस, इलाहाबाद, आगरा, दिल्ली और बरेली में अंग्रेजी कॉलेज खोलकर अंग्रेजी सीखने को बढ़ावा देने के लिए भी प्रोत्साहन जारी रखा।
1841 में, सार्वजनिक निर्देश की सामान्य समिति को समाप्त कर दिया गया था और इसके स्थान पर शिक्षा परिषद की स्थापना की गई थी। 1854 में पश्चिमी शिक्षा के विकास में एक और मील का पत्थर वुड का डिस्पैच था। स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "जिस शिक्षा को हम भारत में विस्तारित करना चाहते हैं, वह वह है जिसमें बेहतर कला, विज्ञान और दर्शन और साहित्य के प्रसार की वस्तु है। यूरोप, संक्षेप में, यूरोपीय ज्ञान में।
चार्ल्स वुड ने कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में विश्वविद्यालयों की शुरुआत के लिए भी सिफारिश की, ग्रेडेड स्कूलों, हाई स्कूलों, मिडिल स्कूलों और प्राथमिक स्कूलों के नेटवर्क की स्थापना के लिए, शाब्दिक स्कूलों को बढ़ावा देने और शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना और परिचय धर्मार्थ निकायों और व्यक्तियों द्वारा खोले गए गैर-सरकारी स्कूलों को अनुदान सहायता प्रणाली वुड की सिफारिश के अनुसार, 1857 में मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता में तीन विश्वविद्यालय स्थापित किए गए थे।
वुड्स डिस्पैच ने भारत में शिक्षा के विकास के लिए एक मॉडल के रूप में काम किया। भारत में पश्चिमी शिक्षा के लिए सरकारी समर्थन के अलावा, ईसाई मिशनरियों और अन्य लोगों ने गहरी दिलचस्पी ली। हिंदू कॉलेज की स्थापना, जिसे बाद के समय में डेविड हरे द्वारा कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज कहा जाता था और अन्य ने हिंदुओं के बीच धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को बढ़ावा देने में मदद की। पश्चिमी शिक्षा के साथ-साथ महिला शिक्षा को भी व्यापक संरक्षण मिला। बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी में भी शिक्षा के प्रचार के इसी पैटर्न को देखा जा सकता है।
हम भारत में पश्चिमी शिक्षा के धीमे और धीरे-धीरे बढ़ावा देने पर ध्यान देते हैं, जिससे अंततः भारतीयों में एक नई भावना और एक नया आलोचनात्मक दृष्टिकोण पैदा हुआ, जिसके कारण अंततः राष्ट्रवाद की भावना पैदा हुई; स्व-शासन और आत्मनिर्भरता का चैंपियन। इसका यह अर्थ नहीं है कि पश्चिमी शिक्षा उपरोक्त वर्णित प्रक्रिया के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार थी, लेकिन इसने औपनिवेशिक आर्थिक शोषण की जागरूकता को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक के रूप में काम किया।
पश्चिमी शैक्षिक प्रणाली के प्रसार के परिणाम के रूप में, कारण, न्याय और कल्याण की उपयोगी चिंताओं की नई धारणाओं ने गरीबी और मंदी की समस्याओं के जवाब की तलाश में शिक्षित भारतीयों के दिमाग को ढालना शुरू कर दिया, जिसने बाद के भारतीय समाज को त्रस्त कर दिया। 19 वी सदी। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उस व्यापारी-विजेता से शासकों के परिवर्तन का एक दिलचस्प दुष्परिणाम ब्रिटिश औपनिवेशिक और शाही हितों की सेवा के लिए एक मध्यम वर्ग के पेशेवर समूह का उदय था।
GST के विरोध में व्यापारियों का प्रदर्शन, कानपुर में ट्रेन रोकी
एक तरफ सरकार जीएसटी लॉन्च करने की तमाम तैयारियां कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ जीएसटी का विरोध भी हो रहा है. देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है. कानपुर के कारोबारियों ने झांसी एक्सप्रेस ट्रेन नंबर 4102 रोककर जीएसटी का विरोध किया और पूरे दिन कानपुर बंद रखने का भी ऐलान किया है.
कानपुर में एक दिन के बंद का 50 से अधिक व्यापारी मंडल समर्थन कर रहे हैं. इस बंदी से एक दिन में 2000 करोड़ रुपए के कारोबार का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है.
मध्य प्रदेश में GST का विरोध
वहीं मध्य प्रदेश के व्यापारी भी जीएसटी का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने एक दिन के लिए भारत बंद रखने का ऐलान किया है. इसी के मद्देनजर एमपी की राजधानी भोपाल का अधिकतर बाजार बंद है.
व्यापारियों का कहना है कि वे जीएसटी के विरोध में नहीं है, मगर इसमें कई प्रावधान ऐसे हैं जो व्यापारियों को मुसीबत में डालने वाले हैं, जैसे एक माह में तीन बार रिटर्न भरना, थोक कारोबारी का टैक्स न दिए जाने पर दोषी छोटे कारोबारी को भी मानना, सजा का प्रावधान आदि. कुल मिलाकर सात ऐसे प्रावधान है, जिसका व्यापारी विरोध कर रहे हैं.
इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर, जबलपुर से लेकर राज्य के अन्य हिस्सों में भी व्यापारी संगठनों के बंद का असर साफ नजर आ रहा है.
मुरादाबाद में विरोध प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में भी कई कारोबारी जीएसटी के विरोध में प्रदर्शन व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा कर रहे हैं. उनकी मांग है कि इस नई टैक्स प्रणाली को सरकार वापस ले लें.
गुवाहाटी में विरोध प्रदर्शन
असम के शहर गोवाहाटी में सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर फॉर इंडिया (एसयूसीआई) के सदस्य सड़कों पर जीएसटी का विरोध कर रहे हैं.
आधी रात से देशभर में लागू होगा GST
देशभर में आज आधी रात से GST लागू हो जाएगा, संसद के सेंट्रल हॉल में खास तैयारी की जा रही है. इस खास मौके पर फिल्म से लेकर उद्योग जगत की कई जानी-मानी हस्तियां शामिल होने वाली हैं. इस भव्य कार्यक्रम में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहेंगे. इसके लिए सेंट्रल हॉल को तैयार किया जा रहा है, इस कार्यक्रम में करीब 1500 लोगों के हिस्सा लेने की संभावना है.
प्रोग्राम रात 10:45 से शुरू होगा, सबसे पहले जीएसटी पर 10 मिनट की एक फिल्म दिखाई जाएगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली लोगों को संबोधित करेंगे उसके बाद पीएम मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का भी भाषण होगा. इसके साथ ही देश में जीएसटी व्यवस्था शुरू हो जाएगी.
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कोरोना वायरस से बचाव : नैनीताल में 22 से 25 मार्च तक बाजार बंद
कोरोना संक्रमण के को रोकने के लिए रविवार को घोषित जनता कर्फ्यू के समर्थन में नगर के व्यापारियों ने 22 मार्च के साथ ही 23, 24 और 25 मार्च को भी बाजार बंद रखने का ऐलान किया है। प्रांतीय उद्योग व्यापार.
कोरोना संक्रमण के को रोकने के लिए रविवार को घोषित जनता कर्फ्यू के समर्थन में नगर के व्यापारियों ने 22 मार्च के साथ ही 23, 24 और 25 मार्च को भी बाजार बंद रखने का ऐलान किया है। प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल से संबद्ध नगर व्यापार मंडल के तहत मल्लीताल और तल्लीताल व्यापार मंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया। बंद में आवश्यक सेवाओं को छूट दी गई है।
मल्लीताल और तल्लीताल व्यापार मंडल की शनिवार को व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा हुई अलग-अलग बैठक में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का समर्थन किया गया। इसके साथ ही मल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष किशन सिंह नेगी तथा तल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष भुवन व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा लाल साह ने 23, 24 और 25 को भी बंद रखने का ऐलान किया है।
व्यापार मंडल पदाधिकारियों का कहना है कि 22 को पूर्ण बंदी रहेगी। जबकि 23, 24 और 25 को आवश्यक सेवाओं के तहत दूध, दवा, सब्जी और राशन की दुकानों को छूट दी गई है। वह अपनी सुविधा अनुसार आंशिक समयावधि में दुकान खोलने के लिए स्वतंत्र हैं।
मल्लीताल व्यापार मंडल की बैठक में अध्यक्ष किशन नेगी के अलावा रुचिर साह, त्रिभुवन फत्र्याल, राजेश वर्मा, देव कंसल, एस बिष्ट, विक्की वर्मा, तरूण कांडपाल, जुनैद अहमद, बॉबी साह, श्रवण नागपाल, दीप गुरूरानी जबकि तल्लीताल व्यापार मंडल की बैठक में अध्यक्ष भुवन साह के अलावा हेमंत रूबाली, भगवत पंत, हरीश लाल, अजय वर्मा, रांजेंद्र मनराल, कनक साह, शनि आनंद आदि मौजूद रहे।
कुछ व्यापारियों ने 31 तक बंद का ऐलान किया
नगर के कुछ व्यापारियों ने 31 मार्च तक प्रतिष्ठान बंद रखने का ऐलान किया है। अनुपम रेस्टोरेंट के स्वामी रुचिर साह का कहना है कि उनके साथ ही शिवा रेस्टोरेंट के स्वामी मयंक तथा गुडलक सैलून ने 31 मार्च तक प्रतिष्ठान बंद रखने का ऐलान किया है। इस दौरान वह अपने कार्मिकों को पूरे वेतन का भुगतान करेंगे।
जनसुविधाएँ
हमारे देश में निजी शैक्षिणक संसथान- स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्व कम होता जा रहा है। आपकी राय में इसका क्या असर हो सकता है? चर्चा कीजिए
हमारे देश में निजी शैक्षिणक संसथान बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्व कम होता जा रहा है। इसके निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं-
(i) धीरे-धीरे सरकारी संस्थानों का महत्व समाप्त हो जाएगा।
(ii) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग उच्च शिक्षा से वंचित रह जायेगा क्योंकि निजी शैक्षिणक संसथानों की फीस बहुत महँगी होती है जिसे उठाना गरीब व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है।
ज़्यादातर निजी अस्पताल और स्कूल कस्बों या ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही है, क्योंकि-
(i) शहरों में लोगो की जिंदगी भागदौड़ से भरी है उनकी आमदनी अच्छी होती है। यहां लोग यह चाहते हैं कि उनके सभी काम निर्धारित समय से पूर्व हो जाये बजाय इसके कि सरकारी स्कूल और अस्पतालों में लंबी कतारों में खड़ा होना पड़े।
(ii) कस्बों या ग्रामीण इलाकों की अपेक्षा यातायात, बिजली, जलापूर्ति आदि सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
क्या आपको लगता है कि हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष हैं? अपनी बात के समर्थन में एक उदाहरण दीजिए।
नहीं, हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष नहीं है।
उदाहरण के लिए दिल्ली में विभिन्न जन सुविधाओं जैसे जल,बिजली, परिवहन सेवा, स्कूल-कॉलेज आदि सुलभ रूप से मौजूद है जबकि दिल्ली के कुछ किलोमीटर दूर ही स्थित मथुरा, अलीगढ़ में इनका आभाव है।
किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी बेचने से स्थानीय लोगों पर क्या असर पड़ रहा है? क्या आपको लगता है कि स्थानीय लोग भूमिगत पानी के इस दोहन का विरोध कर सकते हैं? क्या सरकार इस बारे में कुछ कर सकती है?
(i) किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी भेजने से स्थानीय लोगों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।पीने हेतु शुद्ध पानी की कमी पड़ रही है। सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं है जिसे फसल गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।
(ii) हाँ, लोग भूमिगत पानी के दोहन का विरोध कर सकते हैं क्योंकि पानी एक प्राकृतिक संसाधन है। जिसका निजी कंपनियां अपने स्वार्थ हेतु अनावश्यक रूप से दोहन नहीं कर सकती।
(iii) हाँ, सरकार उन जलव्यपारियों दोनों के खिलाफ कदम उठा सकती है।उनसे जुर्माना वसूल किया जा सकता है तथा उन्हें दंड भी दिया जा सकता है।
चेन्नई एक ऐसी जगह है जहाँ पानी की बहुत कमी है। न्यायपालिका केवल शहर की लगभग आधी जरूरत को ही पूरा कर पाती है। कुछ इलाकों में पानी नियमित रूप से पानी आता है और कुछ इलाकों में बहुत कम पानी आता है। उन स्थानों में जहाँ पानी का भंडारण किया गया है। उसके आसपास के इलाके में ज़्यादा पानी आता है और दूर की बस्तियों में कम पानी मिलता है।
इस समस्या का सामना ज़्यादातर गरीब व्यक्ति को करना पड़ता है क्योंकि उच्च या माध्यम वर्ग का व्यक्ति इस समस्या का हल आसानी से ढूंढ़ लेता है। वे बोरवेल खोद कर या बोतलों का पानी खरीद कर अपना काम चला लेते हैं।
आपको ऐसा क्यों लगता है कि दुनिया में निजी जलपूर्ति के उदाहरण कम है?
जल एक आवश्यक जनसुविधा है इसलिए यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है कि वह इसे सफलतापूर्वक लोगों तक पहुँचाए। यह जनसुविधा सभी को मुहैया होनी चाहिए। इस कार्य के लिए नुकसान और फायदे को अलग करना आवश्यक होता है। निजी कंपनियां केवल अपने मुनाफे के बारे में सोचती है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि व्यक्ति तक वह वस्तु पहुँच रही है या नहीं। जलपूर्ति का निजीकरण करने का अर्थ है कि लोगों की जनसुविधा की उपलब्धता में अनियमितता, इससे देश में अराजकता फैल सकती है। यही कारण है कि निजी जलापूर्ति के उदाहरण कम देखने को मिलते हैं।