एक व्यापार

व्यापारिक विदेशी मुद्रा

व्यापारिक विदेशी मुद्रा

भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में क्यों कर रहा है देरी?

सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए व्यापारिक विदेशी मुद्रा मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था.

By: ABP Live | Updated at : 27 Sep 2022 06:06 PM (IST)

केंद्र सरकार ने सोमवार यानी 26 सितंबर को इस समय लागू विदेश व्यापार नीति (2015-20) को छह महीनों के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि नई विदेश व्यापार नीति (FTP) लाने में अभी 6 महीने का और समय लगेगा.

दरअसल वर्तमान में लागू विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2015-20, 30 सितंबर तक थी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि इस समय सीमा के खत्म होते ही केंद्र सरकार नई विदेश व्यापार नीति लागू करेगी. लेकिन सरकार ने पुरानी नीति को ही छह महीने और बढ़ा दिया है. यह 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा.

बता दें कि सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था और अब एक बार फिर नई व्यापार नीति को लाने की समयसीमा 6 महीने आगे बढ़ा दी गई है. इस बीच सवाल उठता है कि आखिर भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में देरी क्यों कर रहा है?

दरअसल विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों का ऐसा मनना है कि विश्व की चुनौतियों और रुपये की स्थिति में आ रहे भारी उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए फिलहाल मौजूदा नीति को ही जारी रखना सही होगा. संगठनों का कहना है कि दुनियाभर के कई देश फिलहाल मंदी के हालात से गुजर रहा है और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट व्यापारिक विदेशी मुद्रा दर्ज की जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.'

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विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों के अनुसार नई विदेश व्यापार नीति को नए वित्त वर्ष की शुरुआत से लागू करना वाजिब होगा. मौजूदा नीति को अगले छह महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बारे में विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) एक अधिसूचना जारी करेगा.

इस फैसले को लेने के बाद वाणिज्य विभाग ने एक बयान जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि, निर्यात संवर्धन परिषदों और निर्यातकों से बार-बार अनुरोध प्राप्त करने के बाद, सरकार से ऐसा करने का आग्रह करने के बाद विस्तार दिया गया.

वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव अमित यादव कहा कि वर्तमान में चल रहे विदेश व्यापार नीति को मार्च 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इसकी अवधि 30 सितंबर को ही समाप्त होने वाली थी. यादव ने कहा कि उद्योग संगठनों और निर्यात संवर्धन परिषदों जैसे विभिन्न क्षेत्रों से मौजूदा व्यापार नीति को ही फिलहाल बनाए रखने का अनुरोध किया गया था. उन्होंने कहा कि विदेश व्यापार से जुड़े सभी संबंधित पक्षों के साथ चर्चा के बाद यह फैसला किया गया है.

क्या होती है विदेश व्यापार नीति

विदेश व्यापार नीति सरकार द्वारा जारी किया गया एक कानूनी दस्तावेज है, यह दास्तावेज विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत प्रवर्तनीय है. आसान शब्दों में समझे तो विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत इस नीति में बदलाव किया जा सकता है.

विदेश व्यापार नीति को बनाने का मुख्य उद्देश्य भारत में लागत, लेन-देन, समय को कम करके व्यापार को सुविधाजनक बनाना है. इस नीति में व्यापार करने के नियम होते हैं और प्रौद्योगिकी प्रवाह, अप्रत्यक्ष संपत्ति जैसे कई नियम को लेकर सरकार की स्थिति को दर्शाती है.

निर्यातक संगठनों के महासंघ फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि केंद्र के इस फैसले पर बात करते हुए कहा कि नई विदेश व्यापार नीति को लागू करने से टालने का यह फैसला समझदारी भरा है. उन्होंने कहा, “फिलहाल रूस यूक्रेन युद्ध, आर्थिक स्थिति खराब होने जैसे तमाम कारणों के बाद कई देशों में मंदी के हालात बन रहे हैं और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.”

बता दें कि भारत का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 17.68 प्रतिशत बढ़कर 193.51 अरब डॉलर रहा है. इसी दौरान आयात कहीं ज्यादा 45.74 प्रतिशत बढ़कर 318 अरब डॉलर हो गया. इस तरह अप्रैल-अगस्त की अवधि में देश का व्यापार घाटा बढ़कर 124.52 अरब डॉलर हो गया है.

उद्योग को बढ़ावा देने पर फोकस

नई विदेश व्यापार नीति के तहत केंद्र सरकार छोटे और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने पर काम कर सकती है. इसमें मुक्त व्यापार समझौता पर जोर रहेगा. फिलहाल सरकार FTA को लेकर कई देशों के साथ बात कर रही है. इस बीच ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते पर बात चल रही है. ऐसे में छोटे और मध्यम उद्योगों को मदद मिलेगी.

हर जिले में बनेगा एक्सपोर्ट हब

मिली जानकारी के अनुसार नई व्यापार विदेश नीति के तहत हर जिले में एक्सपोर्ट हब बनाने की कोशिश होगी. वाणिज्य मंत्रालय ने हर जिले के लिए एक्सपोर्ट प्रमोशन कमेटी बना दी है अब उसके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यापारिक विदेशी मुद्रा पर काम चल रहा है. इसमें लगभग 2500 करोड़ तक का खर्च आने की संभावना है.

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Published at : 27 Sep 2022 06:06 PM (IST) Tags: Commerce Ministry foreign trade policy हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

रुपये व्यापारिक विदेशी मुद्रा में विदेश व्यापार

वर्तमान वैधानिक व्यवस्था के अनुसार, नेपाल एवं भूटान के अलावा अन्य देशों से आयात और निर्यात में अंतिम लेन-देन किसी स्वतंत्र विदेशी मुद्रा में करना होता है. अब यह स्थिति बदल जायेगी और व्यापारी भारतीय मुद्रा में कारोबार कर सकेंगे. भारतीय रिजर्व बैंक की प्रस्तावित नयी व्यवस्था से रुपये में भारत के वैश्विक व्यापार के भुगतान में तेजी आयेगी.

देश के केंद्रीय बैंक के अनुसार, इससे निर्यात बढ़ाने में भी मदद मिलेगी तथा घरेलू मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी और बढ़ेगी. उल्लेखनीय है कि हम निर्यात की तुलना में आयात अधिक करते हैं. ऐसे में रुपये में कारोबार से विदेशी मुद्रा बचाने में बड़ी सहायता मिलेगी. पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपये के दाम में कमी हो रही है. डॉलर और कुछ बड़ी वैश्विक मुद्राओं में कारोबार पर भू-राजनीतिक घटनाओं का असर होता है.

वर्तमान समय में रूस-यूक्रेन युद्ध, रूस व कुछ देशों पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों तथा अन्य कारकों के कारण तेल व खाद्य पदार्थों की कीमतें दुनियाभर में आसमान छू रही हैं. भारी मुद्रास्फीति से वैश्विक मंदी की आशंकाएं भी जतायी जा रही हैं. इस तरह की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बड़ी व ताकतवर मुद्राएं तो झटके बर्दाश्त कर लेती हैं, पर रुपये जैसी मुद्राओं को नुकसान सहना पड़ता है.

रिजर्व बैंक के इस कदम से रुपये को वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण मुद्रा बनाने का बड़ा आधार मिलेगा. पड़ोसी देशों एवं विकासशील देशों से कारोबार बढ़ाना भी आसान हो सकेगा. कुछ समय से हो रही निर्यात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी से इंगित होता है कि दुनिया की आपूर्ति शृंखला में भारत अहम होता जा रहा है. रुपये में कारोबार की प्रक्रिया के तहत विदेशी बैंकों को भारत में खाता खोलना होगा, जिसके जरिये भुगतान होगा.

पहले ईरान और कुछ देशों तथा अभी रूस के साथ रुपये और उनकी मुद्रा में लेन-देन की चर्चा होती रही है. अगर स्थिति सामान्य होती, तो हमें रूस से तेल और गैस आयात करने के एवज में डॉलर में भुगतान करना पड़ता, पर पाबंदियों के चलते ऐसा नहीं हो सकता. ऐसे में रुपया और रूबल में भुगतान हमारे लिए फायदे का सौदा है. रिजर्व बैंक की इस पहल को उन उपायों के क्रम में देखा जा सकता है, जो विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करने तथा रुपये के दाम में कमी को रोकने के लिए किये जा रहे हैं.

उम्मीद है कि रुपये में वैश्विक व्यापार करने की इस व्यवस्था के बारे में रिजर्व बैंक जल्दी ही नियमों एवं प्रक्रियाओं की घोषणा करेगा. जिन कुछ देशों की मुद्राओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के लिए उपयोग में लाया जाता है, वे राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी इस स्थिति का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं. दबाव बनाने के लिए वे आर्थिक और वित्तीय पाबंदियां तक लगाते हैं. इसका असर उन देशों के अलावा दूसरों पर भी होता है. रुपये में व्यापार कर सकने की व्यवस्था ऐसी स्थितियों से बचा सकती है.

भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में क्यों कर रहा है देरी?

सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था.

भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में क्यों कर रहा है देरी?

केंद्र सरकार ने सोमवार यानी 26 सितंबर को इस समय लागू विदेश व्यापार नीति (2015-20) को छह महीनों के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि नई विदेश व्यापार नीति (FTP) लाने में अभी 6 महीने का और समय लगेगा.

दरअसल वर्तमान में लागू विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2015-20, 30 सितंबर तक थी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि इस समय सीमा के खत्म होते ही केंद्र सरकार नई विदेश व्यापार नीति लागू करेगी. लेकिन सरकार ने पुरानी नीति को ही छह महीने और बढ़ा दिया है. यह 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा.

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दरअसल विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों का ऐसा मनना है कि विश्व की चुनौतियों और रुपये की स्थिति में आ रहे भारी उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए फिलहाल मौजूदा नीति को ही जारी रखना सही होगा. संगठनों का कहना है कि दुनियाभर के कई देश फिलहाल मंदी के हालात से गुजर रहा है और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.'

विदेश व्यापार से जुड़े तमाम संगठनों के अनुसार नई विदेश व्यापार नीति को नए वित्त वर्ष की शुरुआत से लागू करना वाजिब होगा. मौजूदा नीति को अगले छह महीनों के लिए बढ़ाए जाने के बारे में विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) एक अधिसूचना जारी करेगा.

इस फैसले को लेने के बाद वाणिज्य विभाग ने एक बयान जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि, निर्यात संवर्धन परिषदों और निर्यातकों से बार-बार अनुरोध प्राप्त करने के बाद, सरकार से ऐसा करने का आग्रह करने के बाद विस्तार दिया गया.

वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव अमित यादव कहा कि वर्तमान में चल रहे विदेश व्यापार नीति को मार्च 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इसकी अवधि 30 सितंबर को ही समाप्त होने वाली थी. यादव ने कहा कि उद्योग संगठनों और निर्यात संवर्धन परिषदों जैसे विभिन्न क्षेत्रों से मौजूदा व्यापार नीति को ही फिलहाल बनाए रखने का अनुरोध किया गया था. उन्होंने कहा कि विदेश व्यापार से जुड़े सभी संबंधित पक्षों के साथ चर्चा के बाद यह फैसला किया व्यापारिक विदेशी मुद्रा गया है.

क्या होती है विदेश व्यापार नीति

विदेश व्यापार नीति सरकार द्वारा जारी किया गया एक कानूनी दस्तावेज है, यह दास्तावेज विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत प्रवर्तनीय है. आसान शब्दों में समझे तो विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत इस नीति में बदलाव किया जा सकता है.

विदेश व्यापार नीति को बनाने का मुख्य उद्देश्य भारत में लागत, लेन-देन, समय को कम करके व्यापार को सुविधाजनक बनाना है. इस नीति में व्यापार करने के नियम होते हैं और प्रौद्योगिकी प्रवाह, अप्रत्यक्ष संपत्ति जैसे कई नियम को लेकर सरकार की स्थिति को दर्शाती है.

निर्यातक संगठनों के महासंघ फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि केंद्र के इस फैसले पर बात करते हुए कहा कि नई विदेश व्यापार नीति को लागू करने से टालने का यह फैसला समझदारी भरा है. उन्होंने कहा, “फिलहाल रूस यूक्रेन युद्ध, आर्थिक स्थिति खराब होने जैसे तमाम कारणों के बाद कई देशों में मंदी के हालात बन रहे हैं और मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट देखी जा रही है. यह एक नई व्यापार नीति लाने का वक्त नहीं है.”

बता दें कि भारत का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 17.68 प्रतिशत बढ़कर 193.51 अरब डॉलर रहा है. इसी दौरान आयात कहीं ज्यादा 45.74 प्रतिशत बढ़कर 318 अरब डॉलर हो गया. इस तरह अप्रैल-अगस्त की अवधि में देश का व्यापार घाटा बढ़कर 124.52 अरब डॉलर हो गया है.

उद्योग को बढ़ावा देने पर फोकस

नई विदेश व्यापार नीति के तहत केंद्र सरकार छोटे और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने पर काम कर सकती है. इसमें मुक्त व्यापार समझौता पर जोर रहेगा. फिलहाल सरकार FTA को लेकर कई देशों के साथ बात कर रही है. इस व्यापारिक विदेशी मुद्रा बीच ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते पर बात चल रही है. ऐसे में छोटे और मध्यम उद्योगों को मदद मिलेगी.

हर जिले में बनेगा एक्सपोर्ट हब

मिली जानकारी के अनुसार नई व्यापार विदेश नीति के तहत हर जिले में एक्सपोर्ट हब बनाने की कोशिश होगी. वाणिज्य मंत्रालय ने हर जिले के लिए एक्सपोर्ट प्रमोशन कमेटी बना दी है अब उसके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम चल रहा है. इसमें लगभग 2500 करोड़ तक का खर्च आने की संभावना है.

विदेशी मुद्रा भंडार: रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद आई गिरावट, जानिए कितना रह गया स्वर्ण भंडार

विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार

पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। 13 अगस्त 2021 को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.099 करोड़ डॉलर घटकर 619.365 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

इसलिए आई गिरावट
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले छह अगस्त 2021 को समाप्त सप्ताह में इसमें 88.9 करोड़ डॉलर की तेजी आई थी और यह 621.464 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। विदेशी मुद्रा संपत्तियों (एफसीए) में आई गिरावट से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। एफसीए 1.358 अरब डॉलर घटकर 576.374 अरब डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा संपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है।

स्वर्ण भंडार में भी कमी
इस दौरान देश का स्वर्ण भंडार 72 करोड़ डॉलर कम हुआ और 36.336 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास मौजूद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.4 करोड़ डॉलर घटकर 5.111 अरब डॉलर रह गया और विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर घटकर 1.544 अरब डॉलर रह गया।

जानें क्या है विदेशी मुद्रा भंडार
विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे
साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है। अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीद का निर्णय भी व्यापारिक विदेशी मुद्रा ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

विस्तार

पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। 13 अगस्त 2021 को समाप्त सप्ताह में व्यापारिक विदेशी मुद्रा देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.099 करोड़ डॉलर घटकर 619.365 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

इसलिए आई गिरावट
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले छह अगस्त 2021 को समाप्त सप्ताह में इसमें 88.9 करोड़ डॉलर की तेजी आई थी और यह 621.464 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। विदेशी मुद्रा संपत्तियों (एफसीए) में आई गिरावट से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी व्यापारिक विदेशी मुद्रा आई है। एफसीए 1.358 अरब डॉलर घटकर 576.374 अरब डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा संपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है।

स्वर्ण भंडार में भी कमी
इस दौरान देश का स्वर्ण भंडार 72 करोड़ डॉलर कम हुआ और 36.336 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास मौजूद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.4 करोड़ डॉलर घटकर 5.111 अरब डॉलर रह गया और विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर घटकर 1.544 अरब डॉलर रह गया।

जानें क्या है विदेशी मुद्रा व्यापारिक विदेशी मुद्रा भंडार
विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।


विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे
साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है। अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीद का निर्णय भी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

वित्तीय उत्पाद विदेशी निवेश वित्त कार्यक्रम

हम बीते तीन दशकों से अधिक समय से देश में निर्यात अवसर बढ़ा रहे हैं और देश की आर्थिक तरक्की में हमारा अहम योगदान रहा है| हमने विदेश व्यापार और निवेश अवसरों को जोड़ने का प्रयास किया है, ताकि लंबी अवधि में उसके बेहतर परिणाम मिलें| ऐसे समय में जब भारत वैश्विक फलक पर विनिर्माण केंद्र के रूप में छाप छोड़ने को तैयार है, हम भारतीय कंपनियों को विदेशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उनका रास्ता सुगम बनाते हैं|

प्रमुख विशेषताएं

हम निम्नलिखित के जरिए विदेशी बाजारों तक आपकी पहुंच आसान बना सकते हैं:

भारतीय कंपनियों को मियादी ऋण देकरः

भारतीय कंपनियों के विदेशी संयुक्त उपक्रमों / पूर्ण स्वाधिकार वाली सहायक संस्थाओं में इक्विटी निवेश|

भारतीय कंपनियों के संयुक्त उपक्रमों / पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगियों को ऋण|

भारतीय कंपनियों के विदेशी संयुक्त उपक्रमों / पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगियों को आंशिक वित्तपोषण के लिए मियादी ऋणः

आस्तियों के अधिग्रहण के लिए किया गया पूंजी खर्च

कार्यशील पूंजी जरूरतें

दूसरी कंपनी में इक्विटी निवेश

ब्रांड /पेटेंट /अधिकार/ अन्य बौद्धिक संपदा अधिकारों का अधिग्रहण

किसी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण

कोई अन्य गतिविधि जिसके लिए वह कंपनी तब एक्ज़िम बैंक से वित्तपोषण हासिल करने के लिए पात्र होती जब वह भारतीय होती

विदेशी संयुक्त उपक्रमों/ पूर्ण स्वामित्व वाली सहयोगी संस्थाओं को मियादी ऋण / कार्यशील पूंजी जुटाने के लिए गारंटी की सुविधा|

पात्रता

हम भारतीय प्रमोटर कंपनी को निधिक/ गैर-निधिक सहायता प्रदान करते हैं|

हमारा वित्तपोषण भारतीयों के लिए भारतीय रुपए में और विदेशी इकाई के लिए विदेशी मुद्रा में उपलब्ध है| (भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार)

मियादी वित्तपोषण पर वाणिज्यिक ब्याज दरें लागू होती हैं|

हमारे ऋण की अवधि सुविधानुसार आम तौर पर 5-7 साल तक होती है|

सिक्योरिटी में विदेशी इकाई की आस्तियों पर समुचित प्रभार, भारतीय प्रमोटर की कॉर्पोरेट गारंटी, जोखिम कवर और विदेशी उपक्रम में भारतीय प्रमोटर की हिस्सेदारी की गिरवी शामिल हैं|

एक्ज़िम से
फायदे

निर्यातकों की जरूरतों की जानकारी|

विशाल अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का लाभ उठाने की क्षमता|

भारतीय रुपए और विदेशी मुद्रा दोनों में ऋण सुविधा|

प्रतिस्पर्द्धी ब्याज दरें और चुकौती में लचीलापन|

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