इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य

कहीं भी पैसा लगाने से पहले यह इस बात को लेकर स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आप किस उद्देश्य से इन्वेस्ट करना चाहते हैं. क्या यह होम लोन की जरूरत को लेकर है या फिर भविष्य के खर्चों की पूर्ति के लिए? अगर इन्वेस्टर एक बार अपने निवेश उद्देश्य को लेकर स्पष्ट हो जाए तो वह टार्गेट रिटर्न, टाइम हॉरिजन और जोखिम जैसे अन्य महत्वपूर्ण फैक्टर्स के बीच चुनाव ज्यादा अच्छे से कर सकता है.
IDFC म्यूचुअल फंड ने शुरू किया ‘SIP in Fixed Income’ अभियान
IDFC म्यूचुअल फंड ने SIFI अथवा ‘SIP in Fixed Income’ नामक एक नया अभियान शुरू किया है। SIFI नामक नया कैंपेन निवेशकों को सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान्स के जरिए फिक्स्ड इनकम प्रॉडक्ट्स में निवेश के फायदों के बारे में जागरूक करने के लिए शुरू किया गया है।
SIFI बेहतर जोखिम-समायोजित रिटर्न दिलाने में मदद करेगा, और डेब्ट फंड SIP इक्विटी बाजारों में उच्च अस्थिरता के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे आवंटन को संतुलित किया जा सकता है। आईडीएफसी म्यूचुअल फंड की SIFI पहल का उद्देश्य निवेशकों को यह जानकरी देना है कि इक्विटी और डेट एसआईपी का संयोजन उन्हें कठिन समय में नेविगेट करने में कैसे मदद कर सकता है।
Mutual Funds: ये हैं पिछले 3 सालों में 110% से अधिक रिटर्न देने वाले बेस्ट SIP प्लान, जानें डिटेल
By: ABP Live | Updated at : 19 Dec 2021 11:59 AM (IST)
Edited By: Taruna
Mutual Funds: म्यूचुअल फंड (mutual fund) एक लोकप्रिय निवेश ऑप्शन बनता जा रहा है. खासकर म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए लोग निवेश करना अधिक पसंद कर रहे हैं. SIP के जरिए वह लोग भी बड़ा फंड बना सकते हैं जिनके पास निवेश के लिए बड़ी रकम नहीं है. आज हम आपको शानदार रिटर्न देने वाली कुछ म्युचुअल फंड स्कीम्स के बारे में बताएंगे लेकिन उससे पहले जानते हैं कि यह सिप क्या है.
क्या है SIP
- SIP में पैसा हर माह निवेश किया जाता है
- SIP में निवेश कभी भी बंद किया जा सकता है, कभी घटाया या बढ़ाया जा सकता है
- आप SIP बंद करने के बाद भी उसी स्कीम में निवेशित बने रह सकते हैं
SIP में कर रहे हैं निवेश तो मैच्योरिटी तारीख न भरने में है भलाई, जानिए कैसे
एसआईपी में निवेश करके हम छोटी शुरुआत करके बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं। आज हम इस विषय में और थोड़ा गहराई में जाएंगे ताकि आप सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान्स (SIP) में उपलब्ध अलग-अलग पेशकशों को बेहतर ढंग से समझ सकें।
नई दिल्ली, Lizzie Chapman। एसआईपी में निवेश करके हम छोटी शुरुआत करके बड़ी जीत हासिल कर सकते हैं। आज हम इस विषय में और थोड़ा गहराई में जाएंगे ताकि आप सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान्स (SIP) में उपलब्ध अलग-अलग पेशकशों को बेहतर ढंग से समझ सकें।
25 साल पहले जब SIP की शुरुआत की गई थी तब वे बहुत ही सीधा-सादा मामला था, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ने लगा, ग्राहक नियोजन और निवेश में ज्यादा लचीलेपन की मांग करने लगे। म्युच्युअल फंड (MF) कंपनियों ने अपने निवेशकों की मांगों के अनुसार एसआईपी पेशकशों को बदला। अब SIP के चार व्यापक रूप हैं जिनमें निवेश करके ग्राहक अपने पैसों से अधिकतम लाभ उठा सकते हैं। आइए उनके बारे में जानते हैं:
5. कोई नहीं जान सकता मार्केट की टाइमिंग
स्टॉक मार्केट अस्थिर है, इसमें उतार—चढ़ाव लगा रहता है और कोई भी इसके बारे में सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता. हालांकि कुछ लोग सही अंदाज लगा लेते हैं लेकिन ऐसा केवल एक या दो बार सही हो सकता है, हर बार नहीं. ज्यादातर इन्वेस्टर्स मानते हैं कि इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य वे सही समय पर मार्केट के उतार—चढ़ाव का सही और वक्त पर पता लगा सकते हें लेकिन मार्केट की टाइमिंग का पता रहना केवल एक मिथ है.
जिस तरह जिंदगी में अनुशासन होना जरूरी है, उसी तरह इन्वेस्टमेंट में भी अनुशासन मायने रखता है. अच्छा रिटर्न देने के बावजूद स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करने वालों की कमी है, जिसकी वजह इसका उतार—चढ़ाव है. हालांकि जिन इन्वेस्टर्स ने सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ पैसा लगाया है, उन्हें वक्त के साथ सही रिटर्न मिला है. इसलिए जरूरी है कि लॉन्ग टर्म सिनेरियो को ध्यान में रखने के अलावा धैर्य के साथ अनुशासनात्मक इन्वेस्टमेंट अप्रोच को फॉलो किया जाए.
7. फैसलों पर इमोशंस को न होने इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य दें हावी
स्टॉक मार्केट में इमोशंस के लिए जगह नहीं है, विशेषकर डर और लालच के लिए. ऐसे कई मामले हुए, जब इमोशंस पर कंट्रोल न कर पाने के चलते कई इन्वेस्टर्स को मोटा नुकसान उठाना पड़ा. यह सच है कि कम समय में छोटे इन्वेस्टमेंट का बड़ा रिटर्न पाने की कहानियां सुनने के बाद एक झटके में पैसा बनाने की ललक से दूर नहीं रहा जा सकता है. इसके चलते इन्वेस्टर्स बिना ज्यादा सोचे अनजान शेयरों को खरीद लेते हैं और बाद में मार्केट का रुख बदलते ही उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य यह सलाह दी जाती है कि अच्छा रिटर्न पाने के लिए अटकलों को न मानकर सही रिसर्च के साथ स्टॉक चुने जाएं.
निवेश से अच्छा रिटर्न पाने की चाहत गलत नहीं है लेकिन जो संभव न हो यानी अव्यावहारिक रिटर्न पाने की आशा गलत है. कई स्टॉक मार्केट स्टडीज दर्शाती हैं कि 12 फीसदी से ज्यादा रिटर्न अलार्म है कि आगे मार्केट गिरने वाला है. ऐसे में होने वाला नुकसान अर्निंग से कहीं ज्यादा होगा.
9. कभी न लगाएं जरूरत का पैसा
इन्वेस्टमेंट के लिए कभी भी अपनी जरूरत का पैसा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. हमेशा अतिरिक्त पैसे को ही इन्वेस्ट करना चाहिए. स्टॉक मार्केट के मामले में यह जरूरी नहीं है कि अगर आज नुकसान नहीं हो रहा है तो आगे भी कभी नहीं होगा. इसलिए सलाह दी जाती है कि अतिरिक्त फंड ही इन्वेस्ट करें ताकि अगर कभी नुकसान उठाना पड़े तो भी आपकी जिंदगी सही तरीके से चलती रहे. हालांकि नुकसान के बजाय प्रॉफिट भी हो सकता है, इसलिए जोखिम लें लेकिन संभलकर.
आज के दौर में विश्व के सभी राष्ट्रों के मार्केट अपनी-अपनी बाउंड्री तोड़कर एक साथ आ रहे हैं और मिलकर एक ग्लोबल विलेज तैयार कर रहे हैं. ऐसे में विश्व के किसी भी हिस्से में घटित कोई भी घटना या कोई भी महत्वपूर्ण ईवेंट, हर देश के फाइनेंशियल मार्केट को काफी ज्यादा प्रभावित करता है. इसलिए जरूरी है कि सभी ग्लोबल ईवेंट्स को लेकर अपडेट रहा जाए और पोर्टफोलियो को लगातार मॉनिटर किया जाए. अगर आप खुद से पोर्टफोलियो का रिव्यू नहीं कर सकते तो अच्छा रहेगा कि किसी फाइनेंशियल एडवायजर या प्लानर को हायर कर लिया जाए.
म्यूचुअल फंड डिविडेंड स्कीम से दूर क्यों रहना चाहिए
वर्षों पहले जब मैंने पहला म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट किया था, तो वो मैंने अपने पैसे बढ़ाने के लिए किया था। तब, म्यूचुअल फंड एजेंट, जो ख़ुद को “सलाहकार” बताता था और बैंक में RM था, उसने मुझे “डिविडेंड” प्लान के बदले “ग्रोथ” प्लान चुनने की सलाह दी- क्योंकि “ग्रोथ” प्लान लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर के लिए अनुकूल था, जबकि “डिविडेंड” प्लान उन लोगों के लिए ज़्यादा अनुकूल था जो नियमित डिविडेंड इंकम चाहते थे।
मैं ऐसा मानता था कि, म्यूचुअल फ़ंड्स के डिविड़ेंड प्लान में लगाया गया पैसा, डिविड़ेंड देने वाली कंपनियो में इन्वेस्ट किया जाता होगा और उन कंपनियो से मिला डिविड़ेंड हमें दिया जाता होगा। और फिर मुझे आश्चर्य होता था कि ज़्यादातर म्यूचुअल फंड कंपनीयाँ कैसे डिविड़ेंड दे पाती हैं! ज्यादातर भारतीय कंपनियाँ वार्षिक डिविड़ेंड देती है, तो म्यूचुअल फंड कम्पनियाँ हर तीन महीने में डिविड़ेंड कहाँ से देती है?
म्यूचुअल फंड डिविडेंड की ज़रूरी बातें
- भारतीय इन्वेस्टर को दी जाने वाली प्रत्येक इक्विटी ओरियंटेड म्यूचुअल फंड योजना में या तो ग्रोथ-प्लान या तो डिवीडेंड-प्लान का विकल्प होता है
- डिविडेंड प्लान: इन्वेस्टर को निश्चित समय के बाद डिविड़ेंड मिलता है
- ग्रोथ प्लान: कोई डिविडेंड नहीं दिया जाता है
- फंड मैनेजर के पास डिविड़ेंड देना,न देना और कितना देना यह निर्णय लेने की अंतिम सत्ता होती है
- फंड मैनेजर यह भी तय करता है कि आपको डिविड़ेंड देने के लिए ज़रूरत पड़ने पर किन शेर को बेचना है।
- इस अमाउंट को म्यूचुअल फंड के रिझर्व से भी लिया जा सकता है, खासकर उन वर्षों में जब म्यूचुअल फंड ने उतनी अच्छी कमाई नहीं की हो।
- म्यूचुअल फंड को डिविड़ेंड जारी करना ज़रूरी है, भले ही उसने नुकसान किया हो। क्योंकि ऐसा न करने पर कई इन्वेस्टर नाराज हो सकते है।
NAV पर डिविडेंड का प्रभाव
- डिविडेंड देने के विभिन्न विकल्प पहले से तय होते हैं और इन्वेस्टर उनमें से चुन सकते हैं
- क्वार्टरली(तीन महीने) और वार्षिक सबसे आम विकल्प हैं, हालांकि कई म्यूचुअल फंड में मासिक या अर्ध-वार्षिक(छह महीने) विकल्प भी उपलब्ध है
- डिविडेंड देने के अलग-अलग प्लान में अलग-अलग NAV होती हैं, अर्थात यदि किसी में 4 डिविडेंड प्लान हैं, तो उन 4 प्लान में हर एक की अपनी अलग NAV होगी
- इन्वेस्टर के खाते में जितना डिविडेंड जमा होता है, उतनी ही रक़म उस दिन उसकी NAV में से कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए,यदि स्कीम में NAV Rs100 है और डिविडेंड Rs5 / यूनिट है, तो जिस दिन डिविडेंड दिया जाएगा, उसी दिन NAV Rs95 हो जाएगी
- जब कम्पनी स्टॉक पर डिविडेंड देती हैं, तो मार्केट इसे एक मजबूत संकेत मानता है कि कंपनी इतना अच्छा प्रोफ़िट कर रही है की जिससे कम्पनी खुद का विकास करने के बाद भी कुछ रक़म इन्वेस्टर को वापस भी दे रही है।
- इससे होता यह है की जब कंपनियां डिविडेंड देती है तो आमतौर पर इस पोज़िटिव सिग्नल के कारण स्टॉक की क़ीमत डिविडेंड की रक़म जितनी कम नहीं होती है। स्टॉक डिविडेंड के सिग्नलिंग इफ़ेक्ट के बारे में ज़्यादा जानने के लिए , यह ब्लॉगपोस्ट देखें।
- म्यूचुअल फंड के ऊपर, सिग्नलिंग इफ़ेक्ट लागू ही नहीं होता है।
- डिविडेंड देने पर भी NAV नहीं बढ़ती है।
- असल में, चूंकि डिविडेंड नहीं देने से अक्सर इन्वेस्टर नाराज़ हो जाते हैं, इसलिए कई म्यूचुअल फंड को मार्केट से मजबूरन केपीटल निकालनी पड़ती है, जबकी नहीं निकालने से और फ़ायदा हो सकता था।
डबल टैक्सेशन
- म्यूचुअल फंड में डिवीडेंड पर पहले से ही टैक्स (DDT) लग जाता है, बाद में नहीं लगता है।
- यदि आप इन्वेस्टमेंट से निश्चित समय पर कुछ इंकम चाहते है, तो डिविडेंड प्लान के बजाय, ग्रोथ प्लान में इन्वेस्ट करके निश्चित समय पर पैसे निकालने की सिस्टम बना सकते हैं।
- डिविडेंड के रूप में मिली हुई पूरी रक़म पर टैक्स (DDT) देने के बजाय, इस मामले में इन्वेस्टर को केवल प्रोफ़िट पर ही टैक्स देना पड़ता है।
- म्यूचुअल फंड डिविडेंड पर टैक्स (DDT) लग जाएगा।
- यदि इन्वेस्टर ख़ुद उसी स्टॉक में उतना ही इन्वेस्ट करता है तो डिवीडेंड पर 10 लाख से पहले कोई टैक्स नहीं लगेगा।
- म्यूचुअल फंड डिविडेंड प्लान में आमतौर पर डिविडेंड से इंकम पाने पर ध्यान नहीं दिया जाता है। म्यूचुअल फंड ने पहले से लिखके दिया हो, तो ही उस पर ध्यान देते है।
- इसके बजाय, म्यूचुअल फंड का ध्यान इन्वेस्टर को निश्चित समय पर निश्चित रक़म देने में ही होता है, न कि इंकम पर।
- यदि इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य निश्चित समय पर कुछ निश्चित पैसे निकालने का है तो यह डिविडेंड प्लान की तुलना में अधिक कर-कुशल तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है।
- दूसरी तरफ, यदि इंवेस्टमेंट से निश्चित इंकम पाने का उद्देश्य है तो फिर इन्वेस्टर को सीधे स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना चाहिए।
- उसके लिए ऐसी कंपनियो को खोजना चाहिए जो पहले से ही डिविडेंड देती हो/बढ़ाती आई हो।
- यदि आपको यह मुश्किल लगता है या लगातार मार्केट रिसर्च करने और अपडेट रहने का समय नहीं है, तो हमने 4 अलग-अलग स्मॉलकेस बनाए हैं जो आपके लिए यह काम करके देते है ।